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घरेलु सहायिका की, अपना व्यवसाय खोलने में मदद करके, मनाया क्रिसमस

वास्तव में ये उपहारों का मौसम है। बोरीवली निवासी कसान्द्रा ने क्रिसमस (Christmas) मनाने का अनुठा तरीका निकाला है —इस क्रिसमस पर उन्होंने अपनी घरेलु सहायिका को आर्थिक रूप से स्वतंत्र बनने में मदद की।

सुमी, कसान्द्रा  के यहाँ पिछले १६ सालो से काम कर रही है और अब कसान्द्रा सुमी को  अपने  व्यवसाय को स्थापित करने में मदद कर रही है। कसान्द्रा, जो की खुद भी एक आर्थिक रूप से स्वतन्त्र महिला है और अपना व्यवसाय पिछले २० सालों से चला रही है ,भलीभांति समझती है कि महिलाओं को स्वतन्त्र बनाना कितना आवश्यक है।

उनका रिश्ता काफी मजबूत है, जहाँ परस्पर प्यार और सम्मान है।

सूमी साथ साथ कसान्द्रा की माँ लेसी मेंडोसा के साथ काम करती है।

जब कसान्द्रा के बच्चे छोटे थे तब सुमी ने काफी मदद की थी। उन दिनों में दोनों के बीच जो विश्वास की डोर बंधी थी, वो आज भी काफी मजबूत है। और कसान्द्रा को विश्वास है कि सुमी के व्यवसाय में मदद करना उसका फ़र्ज़ है।

“यह पूरी तरह से सुमी का व्यवसाय है, मैं तो बस उसकी नेटवर्किंग करती हूँ। “

– कसान्द्रा कहती है।

सुमी ने अब आई.सी कॉलोनी में अपना एक स्टाल स्थापित कर लिया है। बोरीवली में  वो मर्ज़िपैन, आलू के चौप और बारबेक्यूड चिकन बनाने और बेचने का काम करती है।

“जब वो गाँव से आई थी तब उसे चाय बनाना भी नही आता था। पर जब उसने मेरी माँ के साथ काम करना शुरू किया तब उसने काफी चीज़ें बनानी सीखी फिर मुझे लगा कि वो अब काफी अच्छा खाना बना लेती है जैसे की ये स्वाभाविक ही हो।  वो अभी भी मेरी माँ के साथ काम करती है।

– कसान्द्रा ने बताया।

मौखिक प्रचार और आने जानेवालों को सामान बेचने से अब सुमी का व्यापार काफी अच्छा चल पड़ा है।

कसान्द्रा ने सुमी का हर कदम पर साथ दिया है –फिर चाहे वो बिज़नस प्लान बनाना हो, आर्डर लेना हो, आर्डर तैयार करना हो या फिर पैकिंग करनी हो।

सुमी कहती है कि कसान्द्रा ने हमेशा उसे बहन की तरह ही माना और भरोसा किया है। कसान्द्रा भी मानती है कि सुमी एक परिवार के सदस्य की तरह है और उसे हर वो सुविधा मिलती है जो एक परिवार के सदस्य को दी जाती है।

सुमी अपने व्यापार में होने वाले फायदे से ही अपना व्यवसाय चलाती है। इसके अलावा सुमी कसान्द्रा के टेरेस गार्डन में पौधे भी उगाती है जिन्हें वो कभी कभार बेच देती है जैसे की शिमला मिर्च के पौधों के बदले गुलाब।

कसान्द्रा के मुताबिक़ सुमी बागवानी में भी उतनी ही कुशल है जितनी खाना बनाने में।
कसान्द्रा की मदद से सुमी के पास अब गाँव में एक जमींन भी है जो आत्मनिर्भरता की ओर एक और ठोस कदम है।

अपनी दूरदर्शिता से कसान्द्रा को पता है कि सुमी की सहायता के लिए वो हमेशा नही होंगी इसलिए सुमी का आत्मनिर्भर बनना बहुत जरुरी है।

कसान्द्रा से बात कर के ये लगता है कि वो किसी की मदद दिखावे के लिए नही करती है। उन्हें लगता है कि किसी की मदद करना उनका स्वाभाव है, बस!

“मुझे विशवास है कि इश्वर जो करते है उसके पीछे कोई न कोई वजह होती है।”

-कसान्द्रा कहती है।

कसान्द्रा और सुमी का रिश्ता हमें एक नयी सीख देता है। ऐसे कई रिश्ते है, जिन्होंने इन्सान के इंसान के साथ प्रेम को खून के रिश्तों से भी उपर का दर्ज़ा दिलाया है। इन दोनों का रिश्ता कुछ वैसा ही है। क्रिसमस के त्यौहार को मानवता का त्यौहार भी माना जाता है, इस त्यौहार को कसान्द्रा ने अपनी नेकदिली से सार्थक कर दिखाया है!

मूल लेख वंदिता कपूर द्वारा लिखित 



Christmas, Christmas, Christmas

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