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किसी जमाने में हर घर में क्रोशिया से बुनी हुई तकिये के कवर, रुमाल, शो पीस और अन्य सामान आसानी से देखे जाते थे। बदलते वक्त और भागदौड़ भरी जिंदगी में घरों और बाजारों से क्रोशिया की बुनी हुई चीजें गायब सी होती चली गई थी लेकिन इन दिनों एक बार फिर क्रोशिया से बने कपड़ों और ज्वेलरी के प्रति लोगों का आकर्षण बढ़ा है। आज हम आपको पटना में रहने वाली 52 वर्षीया विभा श्रीवास्तव से मुलाकात करवाने जा रहे हैं जो क्रोशिया से बच्चों के कपड़े, तकियों के कवर से लेकर खूबसूरत और ट्रेंडी ज्वेलरी बना रहीं हैं। पटना में इन्हें 'The Crochet Queen' के नाम से जाना जाता है।
द बेटर इंडिया से बात करते हुए विभा ने बताया कि कैसे समय के साथ उन्होंने अपने शौक और हुनर को अपना बिज़नेस बना लिया और अब दूसरी महिलाओं को भी सिखा रही हैं।
विभा कहती हैं, "मेरा मायका, वाल्मीकि नगर में है, जो नेपाल बॉर्डर पर है। उन दिनों मेरे मायके में स्कूल और कॉलेज नहीं हुआ करता था, जिस वजह से सिर्फ 10वीं तक ही पढ़ पाई। मैं आगे पढ़ना चाहती थी लेकिन ऐसा संभव नहीं हो सका। मायूस होने की बजाय मैंने अपने हुनर पर काम किया। मेरे आस-पड़ोस में बहुत सी महिलाएं क्रोशिया का काम करती थीं। मेरी मम्मी भी इस काम में अच्छी थीं। इसलिए मैंने भी स्कूल के समय से ही उनसे यह सब चीजें सीखना शुरू कर दिया था।"
हालांकि, क्रोशिया सीखना भी उनके लिए कोई जंग जीतने से कम नहीं था। उस जमाने में उनके इलाके में ज्यादा सुविधाएं नहीं थी। हाल ऐसा था कि उनके गांव में बुनाई करने के लिए क्रोशिया भी नहीं मिलता था। इसलिए जब उन्होंने यह काम सीखने की इच्छा जताई तो समस्या थी कि क्रोशिया लाने के लिए शहर जाना पड़ेगा। उनके पिताजी का शहर जाना हो नहीं पा रहा था। ऐसे में, विभा ने एक एल्युमीनियम के तार को मोड़-तोड़कर क्रोशिया का आकार दिया और इसी की मदद से अपने सपनों को बुनने लगी। लेकिन अपने इस जुगाड़ू क्रोशिया से वह उतना अच्छा नहीं बना पाती थी।
"बहुत बार लोग मेरी बनाई हुई चीजों को देखकर हंस देते थे। उस समय बहुत गुस्सा आता था और मन ही मन सोचा करती थी कि एकदिन मैं भी सुंदर डिज़ाइन बनाऊंगी," उन्होंने कहा।
फ्रॉक बनाने से की शुरुआत
विभा ने बताया कि उनकी शादी बिहार के छपरा जिले में हुई और वहां भी वह गांव में आसपास की लड़कियों को यह काम सिखाने लगीं। लेकिन जैसे-जैसे उनके बच्चे बड़े हो रहे थे तो उन्होंने फैसला किया कि उन्हें बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए ऐसी जगह जाना चाहिए जहां उनकी पढ़ाई अच्छे से हो। उनके पति पटना में नौकरी कर रहे थे और इसलिए वह भी अपने बच्चों के साथ उनके साथ रहने लगीं। "लेकिन शहर में खर्च बहुत थे इसलिए मैंने सोचा कि क्यों न अपने हुनर को कमाई का जरिया बनाया जाये ताकि मैं भी घर-परिवार में योगदान दे सकूं। लेकिन समझ नहीं आ रहा था कि कैसे," उन्होंने कहा।
विभा ने एक दिन डीडी बिहार चैनल पर बिहार महिला उद्योग संघ की अध्यक्ष ऊषा झा की बातचीत सुनी। वह महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने का काम करतीं हैं। विभा ने उषा झा से मिलने की योजना बनाई और इसमें वह सफल भी हुईं। उन्होंने ऊषा झा को बताया कि वह काम करना चाहती हैं लेकिन ऊषा उस समय मिथिला पेंटिंग पर ज्यादा काम कर रही थीं। लेकिन जब विभा ने उन्हें बताया कि वह क्रोशिया का अच्छा काम कर लेती हैं तो उन्होंने विभा को एक 'बेबी फ्रॉक' बनाने के लिए कहा।
विभा कहती हैं, " ऊषा जी ने फ्रॉक का ऑर्डर दिया। मैंने बाजार से 80 रुपए की ऊन खरीदकर फ्रॉक तैयार किया। फ्रॉक के एवज में मुझे 250 रुपए मिले और ऊषा जी ने मुझसे कहा कि तुम्हारे पास तो पहले से ही हुनर है। इसी पर काम करो। बाद में उनकी मदद से मुझे ऑर्डर मिलने लगे।"
देखते ही देखते विभा का काम चल गया। कपड़ों के ऑर्डर मिलने के साथ-साथ, महिलाएं उनसे सीखने भी आने लगी। वह महिलाओं को मुफ्त में ट्रेनिंग देती हैं। वह कहती हैं कि अगर कोई सरकारी संगठन ट्रेनिंग के लिए बुलाता है तो उन्हें फीस दी जाती है। वह अबतक 1000 से ज्यादा महिलाओं को यह काम सिखा चुकी हैं।
कपड़ों के बाद शुरू किया ज्वेलरी का काम
उन्होंने आगे बताया कि बहुत से लोग उनके काम की कॉपी करने लगे थे। ऐसे में, उन्हें लगा कि उन्हें कुछ अलग और नया करना पड़ेगा। तब उन्होंने 2012 में क्रोशिया से ज्वेलरी बनाने का काम शुरू किया। आज विभा को क्रोशिया ज्वेलरी के लिए जाना जाता है। वह बताती हैं कि उन्होंने छोटी-छोटी चीजों से शुरुआत की थी लेकिन आज वह रेशम और जरी का इस्तेमाल करके नए-नए डिज़ाइन की ज्वेलरी बना रही हैं।
ज्वेलरी के लिए भी विभा को बहुत से ऑर्डर मिलते हैं। कुछ लोग उनसे सीधा ऑर्डर करके चीजें बनवाते हैं तो बहुत से लोग उनसे उत्पाद खरीदकर बेचते हैं। इस तरह से वह दूसरे लोगों को भी रोजगार का जरिया दे रही हैं। इसके अलावा, उनके साथ 10 -12 महिलाएं भी काम करती हैं। उन्होंने बताया कि सभी ऑर्डर्स को पूरा करने उनके लिए सम्भव नहीं है। इसलिए वह दूसरी महिलाओं को भी अपने साथ जोड़कर रखती हैं, जिससे उनके ऑर्डर्स पूरे हो जाते हैं और महिलाओं को लगातार रोजगार मिलता रहता है।
पिछले तीन सालों से विभा के साथ काम कर रहीं शालिनी कहतीं हैं कि उन्हें पहले से ही थोड़ा-बहुत क्रोशिया आता था और विभा से मिलने के बाद उन्होंने ज्वेलरी का भी काम सीख लिया। इससे उन्हें हर महीने लगभग 6000 रुपए की कमाई हो जाती है। विभा कहती हैं कि बीच-बीच में वह अलग-अलग आयोजनों में अपना स्टॉल भी लगाती हैं। इस तरह से उन्हें महीने में कभी 25-30 हजार रुपए तो कभी 50 हजार रुपए तक भी आमदनी होती है।
विभा से ज्वेलरी खरीदने वाली छाया कुमार बताती हैं, "मुझे खुद विभा जी की ज्वेलरी काफी पसंद हैं। मैं अपने लिए तो उनसे ज्वेलरी लेती ही हूं, साथ ही इसे आगे प्रोमोट भी कर रही हूं। एक उद्यमी के तौर पर मेरी कोशिश है कि इस तरह की हैंडमेड चीजों को आगे बढ़ावा मिले। इसलिए मैं उनसे काफी मात्रा में ज्वेलरी खरीदकर अपने नेटवर्क में आगे लोगों को उपलब्ध कराती हूं।"
विभा को उनकी कला के लिए कई तरह के सम्मानों से भी नवाजा जा चुका है। उन्हें कर्मवीर अवॉर्ड, बिहार मेरिट अवॉर्ड जैसे कई सम्मान मिले हैं। वह इन दिनों ग्रामीण महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए मुफ्त में ट्रेनिंग दे रहीं हैं।
अगर आप विभा श्रीवास्तव से संपर्क करना चाहते हैं या फिर उनकी बनाई ज्वेलरी खरीदना चाहते हैं तो उन्हें 093040 60401 पर कॉल कर सकते हैं।
सम्पादन: जी. एन. झा
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