मुंबई में पली बढ़ी नीता अडप्पा ने महज़ 6 महीने काम कर के फार्मा कंपनी की नौकरी इसलिए छोड़ दी क्योंकि वह नौकरी से जुड़ी सीमाओं में अपनी क्षमताओं को बांधना नहीं चाहती थी।
इनकी आकांक्षाओं को पंख तब लगे जब शादी के बाद ये बेंगलुरु चली गयी जहां इनकी मुलाक़ात अपनी कॉलेज की जूनियर अनीशा देसाई से हुई।
23 साल पहले, एक-सा जज़्बा लिए दोनों ने महज़ 10,000 रुपये की लागत से अपने गैरेज से एक उद्योग की शुरुआत की।
सपने बड़े थे, मुश्किलें कई, पर हौसला इन सब से बड़ा था!
शुरुआती दिनों में कर्ज़ पर चलने वाला यह उद्योग ‘प्रकृति हर्बल’ देश भर के प्रतिष्ठित होटल और हॉस्पिटल आदि को 10,000 हर्बल किट सप्लाई कर रहा है। इसके अलावा इंटरनेट के माध्यम से इसके 5000 प्रोडक्ट सीधे ग्राहकों को बेच रहा है।
प्रकृति हर्बल अपने प्रोडक्ट जैसे शैम्पू, कंडीशनर,हेयर मास्क,हेयर जेल, फ़ेस मास्क आदि बनाने में केवल प्रकृतिक समग्रियों जैसे आलो वेरा, हल्दी, दालचीनी आदि का प्रयोग करता है।
उद्यम की शुरुआत
मुंबई के एसएनडीटी यूनिवर्सिटी से पोस्ट ग्रेजुएशन की पढ़ाई करने के बाद नीता 1992 में एक दवा कंपनी में नौकरी करने लगी। हालांकि 6 महीने बाद ही अपनी सगाई के समय इन्होंने इस नौकरी से इस्तीफा दे दिया और शादी के बाद बेंगलुरु चली आई। कुछ अपना करने को इच्छुक नीता के दिमाग में ब्यूटि- प्रोडक्ट के क्षेत्र में कदम रखने का ख्याल तब आया जब शादी के बाद किसी प्रोडक्ट के बुरे प्रभाव के कारण इनकी त्वचा में धब्बे उभरने शुरू हुए।
द बेटर इंडिया को दिये साक्षात्कार में वह बताती हैं, “ मज़े की बात है कि जिस एलर्जी से मैं तब सबसे अधिक डर रही थी, दरअसल वही मेरे व्यावसायिक व पारिवारिक जीवन के लिए भाग्यशाली सिद्ध हुआ”।
बेंगलुरु पहुंचने के कुछ दिनों बाद ही इन्हें पता चला कि अनीशा भी बेंगलुरु में ही है। इन्होंने एक दूसरे से संपर्क किया और शुरुआत हुई इस व्यवसाय की। आरंभिक साल शैम्पू और एलो वेरा मोइश्चराइजर की शोध व सैंपल बनाने में निकल गए। इसके 2 साल बाद, 1994 में इन दोनों ने अपनी कंपनी को औपचारिक रूप से लॉन्च किया।
मेहनत से मिलती गयी सफलता
इस काम की शुरुआत में एक बड़ी परेशानी यह थी कि नीता व अनीशा के पास न ग्राहक थे और न ही इनके पास मार्केटिंग का कोई अनुभव था। इसलिए इन्होंने सबसे पहले अपने प्रोडक्ट को नजदीकी दोस्तों व परिवारजनों के बीच वितरित किया। बड़े ग्राहकों का इंतज़ार करने के बजाय ये पार्लरों में सैंपल देने लगीं । हर तरफ से मिली सकारात्मक प्रक्रिया ने इनका आत्मविश्वास बढ़ाया और साथ ही इनको इनका पहला बड़ा ऑर्डर भी मिला।
यह ऑर्डर था बेंगलुरु के नाहर हेरीटेज होटल का जिन्हे शैम्पू और मॉइस्चराइज़र की आवश्यकता थी। समय से दी गयी डिलीवेरी और प्रोडक्ट की गुणवत्ता देख इस होटल ने अपनी आवश्यकता के सारे सामानों का ऑर्डर इन्हें ही दे दिया। यह उनके लिए एक बड़ी उपलब्धि थी।
और इस तरह 18 प्रोडक्ट के किट, जिनमे शावर प्रोडक्ट, कंघी, जेल आदि शामिल है, को वर्ष 2000 के आरंभ में तैयार किया गया। आज यह किट कई बड़े अस्पताल व होटलों में भेजे जाते हैं।
नीता बताती हैं, “देखा जाए तो, होटल इंडस्ट्री में जुबानी तारीफ मार्केटिंग का महत्वपूर्ण जरिया है। हमारे 70 प्रतिशत ऑर्डर इसी लो-प्रोफ़ाइल मार्केटिंग से हमें मिले हैं।”
नीता ने अपना नेटवर्क अपने ग्राहकों को बेहतर सेवा दे कर बनाया। इनका काम ही इनकी पहचान बनता गया ।
लेकिन यह सफर आसान नहीं रहा। कुछ सालों बाद अनिशा को बेंगलुरु छोड़ना पड़ा। उस समय नीता अपने काम में अकले पड़ गयी और इन्हें थोक बिक्री, पैकेजिंग समेत अन्य कई समस्याओं का सामना करना पड़ा ।
नीता बताती हैं, “मैंने कड़ी मेहनत की। इन परेशानियों के बीच भी संतुलन बनाने का मेरा संकल्प पक्का था और मैंने बच्चों को पालते हुए समय पर प्रोडक्ट की डिलेवरी चालू रखी।” जल्द ही कंपनी को देश भर के प्रतिष्ठित होटलों जैसे रॉयल ओरकिड होटल, द गोल्डमैन साक्स स्पा, पार्क होटल, मनिपाल होटल आदि से ऑर्डर आने लगे।
रीटेल मार्केट में कदम
रीटेल मार्केट में आने के अपने निर्णय के बारे में बताते हुए नीता बताती हैं कि किस तरह इनके प्रोडक्ट खरीदने वाले एक होटल में रुकी महिला के कॉल ने इन्हें इसकी प्रेरणा दी –
“उस महिला ने हमारे शैम्पू का प्रयोग किया और उन्होंने पाया कि इससे उनकी बालों की समस्या कम हो गयी। लेबल पर हमारा नाम देख कर उन्होंने हमे कॉल किया और हमसे शैम्पू के एक 500 लीटर के बोतल की मांग की। उस समय हम रीटेल प्रोडक्ट नहीं बेचा करते थे मगर उस कॉल के बाद मैंने ठान लिया था कि इस मार्केट में अब मैं कदम रखूंगी ।”
इसके बाद नीता से व्यवसाय संबंधी कई सेमिनार, वर्कशॉप व मीटिंग में भाग लिया जिससे उन्हें व कंपनी को काफी फायदा मिला। उनके आत्मविश्वास में बढ़ोत्तरी हुई और कम मुनाफा होने के बाद भी उन्होंने बड़ी जगह ली जहां का किराया चार गुना अधिक था। पर अंत में उनके द्वारा लिया गया यह जोखिम सफल सिद्ध हुआ।
सोशल मीडिया को भी बनाया जरिया
रीटेल मार्केट में उतरने के पहले ग्राहकों की ज़रूरत समझने और उनके बीच अपनी जगह बनाने के लिए नीता ने एक फ़ेसबुक पेज बनाया और साथ ही ब्लॉग भी लिखने लगी।
उन्होने देखा कि लोगों के पास ब्लॉग पढ़ने का समय नहीं था और वो उनके प्रोडक्ट के लेबल पर दिये गए निर्देशों के अनुसार ही प्रयोग करते थे। इसी बात को ध्यान में रख कर कंपनी ने फ़ेस व हैयर मास्क और स्क्रब बनाया ।
नीता अपने फ़ेसबुक के इनबॉक्स द्वारा लोगों को मुफ्त सलाह दिया करती थी।
अपने प्रोडक्ट की बिक्री से जुड़ा वह एक दिलचस्प किस्सा हमें बताती हैं, “एक महिला ने मुझसे बहुत सारे सवाल किए और मैं धैर्य के साथ उनके सवालों के जवाब देती रही। कुछ मिनट बाद उन्होंने हमारे सारे प्रोडक्ट खरीद लिए।उनका कहना था, ‘अगर सवालों के जवाब देने में आपने इतना जोश दिखाया है तो मैं समझ सकती हूं कि हर प्रोडक्ट को अपने कितने उत्साह से बनाया होगा’। यह प्रोत्साहन बहुत बड़ा था।”
सोशल मीडिया पर हर तरह के लोग होते हैं, इसलिए सिर्फ प्रोडक्ट को बढ़ावा देना काफी नहीं था। तभी नीता की 25 वर्षीय बेटी अनुषा जिसने यूके के मैंचेस्टर यूनिवर्सिटी से अपनी पढ़ाई पूरी की थी, इस कंपनी से पिछले साल जुड़ गयी।
यह जोड़ी अब वेबसाइट बनाने के अलावा, प्रोडक्ट की री-डिज़ाइनिंग भी कर रही है साथ ही उन बिन्दुओं पर भी काम कर रही है जिससे इनके प्रोडक्ट को राष्ट्रीय व अंतराष्ट्रीय मार्केट में जगह मिल पाये।
इन दोनों ने हाल ही में अपने प्रोडक्ट के पैकिंग में भी बदलाव किया और अब बायो- डीग्रेडेबल पैकिंग कर रहे हैं।
अनुषा बताती हैं, “ हमने पाया कि एक होटल में एक व्यक्ति करीब 1 किलो चीज़ें प्रतिदिन बर्बाद करता है, जिसमें टॉइलेटरीज़( बाथरूम संबंधी वस्तुएं) भी शामिल है। इसलिए हम इको-फ्रेंडली पैकिंग के लिए री-सायकल होने वाले कागज़, कॉफी- भूसा, जूट आदि का प्रयोग कर रहे हैं। हमें आगे बढ़ना तो है पर प्रकृति की कीमत पर नहीं नहीं”।
निष्कर्ष
अपने रास्ते में आई मुसीबतों के बारे में बात करते हुए नीता बताती है, “कई बैंको ने मेरे लोन के आवेदन को इसलिए खारिज कर दिया क्योंकि उन्हें लगा कि यह बस मेरा शौक है, कुछ ने यह तक कहा कि अगर मुझे लोन चाहिए तो इसमें किसी आदमी को शामिल करना होगा। चाहे वो प्रतियोगी हो या निवेशक, मुझे कई लोगों ने गंभीरता से नहीं लिया। बाहर वालों ने मेरी महत्वाकांक्षा का मज़ाक भी बनाया। पर इन सब के बीच मेरा परिवार मेरी ताकत बना रहा और आज भी है।”
उभरते हुए उद्यमियों को ये क्या सलाह देना चाहेंगी?
अपनी बात पर विराम लगाते हुए नीता कहती हैं, “ खुद पर भरोसा रखिए, क्योंकि अगर आप नहीं रखेंगे तो आप दुनिया से यह उम्मीद कैसे कर सकते हैं? अगर आपको लगता है कि उद्योग की आपकी योजना बहुत बड़े बदलाव नहीं कर पाएगी तब भी जोखिम उठाइए। अगर ग्राहकों की जरूरतों को आपका व्यवसाय पूरा कर रहा है तो सफलता ज़रूर मिलेगी। घबराना छोड़ें और अपने इस सफर पर निकल पड़ें।”
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प्रकृति हर्बल से आप यहां संपर्क कर सकते हैं!