आइए आपको बताते हैं पालागुट्टापल्ले बैग्स और एक ऐसे महिला समूह की कहानी, जिन्होंने आंध्र प्रदेश के चित्तूर में दूर बसे छोटे से गांव को अलग पहचान दिलाई।
लेकिन गांव की कुछ महिलाओं ने हार न मानने का फैसला किया और अपने सिलाई के हुनर से रोज़गार का ज़रिया ढूंढ निकाला।
कोई एनजीओ नहीं, कोई फंड नहीं। उन्होंने अपना पैसा लगाया, चेन्नई जाकर एक दोस्त से स्क्रीन प्रिंटिंग सीखी, एक दोस्त की माँ से कढ़ाई सीखी और अकाउंटिंग सीखा।
उन्होंने हर चुनौती को विश्वास और साहस के साथ स्वीकार किया गया और उनके बैग्स लोगों को इतने पसंद आए कि ऑर्डर बढ़ते गए और साथ ही टीम भी।
जिन महिलाओं ने कभी अपने गांव से बाहर कदम नहीं रखा था, वे खुद तनुकी, बैंगलोर, गॉड, हैदराबाद, चेन्नई की यात्रा कर चुकी हैं। सभाओं को संबोधित किया, अवॉर्ड्स रीसीव किए और प्रदर्शनियों में भाग ले चुकी हैं।