बड़े शहर में जमा-जमाया काम छोड़कर अपने मन की सुनना और अपनी जड़ों की ओर लौट जाना आसान नहीं होता, लेकिन उत्तराखंड स्थित रानीखेत ब्लॉक के बिल्लेख गाँव के रहने वाले गोपाल दत्त उप्रेती ने अपने दिल की सुनी और दिल्ली में बिल्डिंग कंस्ट्र्क्शन का काम छोड़कर गाँव का रूख कर लिया। वहाँ उन्होंने चार साल पहले सेब की जैविक बागवानी शुरू की।
गोपाल इन दिनों अपने आठ एकड़ के बगीचे से लाखों की कमाई कर रहे हैं। इसके अलावा पाँच एकड़ में उन्होंने हल्दी और अदरक उगाया है। इसके साथ ही 7.1 फीट ऊंचा धनिया उगाकर उन्होंने गिनीज बुक आफ वर्ल्ड रिकार्ड में भी नाम दर्ज करवाया है। गोपाल को उत्तराखंड सरकार ने उद्यान पंडित और देवभूमि पुरस्कार से भी सम्मानित किया है।
यूरोप दौरे से आया सेब की बागवानी का ख्याल
सिविल इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर चुके 47 वर्षीय गोपाल ने द बेटर इंडिया को बताया, “मैंने 2012 में दोस्तों के साथ यूरोप की यात्रा की। फ्रांस में सेब के घने बगीचे देखे। मन में आया कि यहाँ और उत्तराखंड की जलवायु में कोई ज्यादा अंतर नहीं है। क्यों न इसी तरह के बागान उत्तराखंड में विकसित किए जाएं। यूरोप से लौटा तो यह बात मन में घूमती रही। इस बीच उत्तराखंड के चक्कर लगाए। चकराता स्थित एक मित्र के सेब के बागान भी देखे। देखा कि किस तरह उन्होंने दुर्गम गाँव होने के बावजूद अपने बागानों को विस्तार दिया है। उनसे बागवानी के बारे में विस्तार से जानकारी हासिल की। कुछ अन्य कृषि विशेषज्ञों से भी सलाह की। इसके बाद लौटकर परिजनों को अपने मन की बात से अवगत करा दिया।”
गोपाल बताते हैं, “शुरू में परिवार का कोई भी सदस्य कंस्ट्र्क्शन का काम छोड़कर गाँव जाकर सेब की बागवानी करने के मेरे फैसले के साथ नहीं था। पत्नी ने भी मेरे फैसले को सिरे से खारिज कर दिया। उन्हें लग रहा था कि मैं भावनाओं में बह रहा हूँ। उनका सवाल था कि ऐसे लगे लगाए काम को कौन छोड़ता है। लेकिन मैंने भी सोच लिया था कि उन्हें मनाकर ही रहूँगा। मैंने पत्नी को सेब बागान दिखाया। खेती के साथ ही उससे होने वाली आय के बारे में उन्हें बताया। कुछ दिन के सोच-विचार के बाद वह गाँव में जाकर बागवानी के लिए राजी हो गईं। बागवानी शुरू करने से पहले मैंने हॉलैंड जाकर सेब की नर्सरी, सेब उत्पादन, इसकी मार्केटिंग से जुड़ी तकनीकी हासिल की। मैं काम शुरू करने से पहले सारी जानकारी हासिल करना चाहता था। अपनी तैयारी पुख्ता करना चाहता था।”
70 नाली जमीन खरीद कर बागवानी शुरू की
गोपाल ने 2015 में गाँव के पास 70 नाली जमीन खरीदी और इस पर सेब के पौधे लगा दिए। करीब तीन साल तक मुनाफे की आकांक्षा छोड़ दी। क्योंकि सेब के पौधे करीब तीन साल बाद ही फल देते हैं। अच्छी बात यह है कि इसके लिए अधिक पानी की भी जरूरत नहीं होती। तीन साल बाद फसल पकी तो हाथों-हाथ उठ गई। कुछ लोग बागवानी के दौरान ही मफसल बुक करने के लिए कह चुके थे। गोपाल कहते हैं, “ सेब से मुझे प्रति एकड़ करीब 10 लाख रूपये तक कमाई हुई। इसके साथ ही अब मैंने पाँच एकड़ में हल्दी और अदरक की खेती भी शुरू कर दी है। इसका फायदा यह है कि इन फसलों को बंदर, लंगूर जैसे जानवर नष्ट नहीं करते। इस कार्य में कई ग्रामीणों को रोजगार भी दिया।”
1.5 टन सेब खराब हुआ तो जैम बनाकर बेचा
गोपाल ने बताया कि पिछले साल सेब उत्पादन के दौरान डेढ़ टन के करीब सेब खराब हो गया था तो उन्होंने उससे जैम बनाकर बेचा। इससे अच्छी आय हुई। वह कहते हैं कि उनकी कोशिश यही है कि पैदावार से बाय प्रोडक्ट बनाकर भी कमाई की जाए।
हल्दी का प्रोसेसिंग प्लांट लगाने की भी तैयारी
गोपाल अब हल्दी का प्रोसेसिंग प्लांट लगाने की तैयारी कर रहे हैं। वह अपने खेत में उगाई गई हल्दी को खुद प्रोसेस करके बेचना चाहते हैं। वह दावा करते हैं कि उनका सेब का बगीचा उत्तराखंड का पहला आर्गेनिक सर्टिफाइड बगीचा है। वह किसानों को पौध और बीज वितरण भी करते हैं। साथ ही उन्हें बागवानी से जुड़ी तकनीकी जानकारी भी मुहैया कराते हैं। उनका मकसद उत्तराखंड में प्रगतिशील और प्रशिक्षित किसानों को तैयार करना और आगे बढ़ाना है।
पहले ट्रेनिंग लें फिर आगे बढ़ें
गोपाल कहते हैं कि खेती प्रोफेशनल तरीके से की जानी चाहिए। इसके लिए युवाओं को चाहिए कि वह पहले इससे जुड़ी सारी जानकारी लें। आवश्यक ट्रेनिंग लें। अपने उत्पाद की मार्केटिंग, सर्टिफिकेशन के गुर सीखें, ताकि खेती उनके लिए फायदे का सौदा साबित हो। और वह इस कार्य में आगे जा सकें। गोपाल इस बात को मानते हैं कि आने वाला समय जैविक खेती का है। इसके संकेत अभी से मिल रहे हैं, क्योंकि लोग अपने स्वास्थ्य को लेकर बहुत सचेत हो गए हैं। खास तौर पर कोरोना संक्रमण काल ने इस संबंध में लोगों की सोच को बहुत प्रभावित किया है।
आप गोपाल दत्त उप्रेती से 8368328560 पर संपर्क कर सकते हैं।
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