गाँव में उपलब्ध साधनों से ही की पानी की समस्या हल, 25 साल में 500 गांवों की बदली तस्वीर!

सिर्फ़ इतना ही नहीं, खेतों की उपज बढ़ाने से लेकर घर-घर में शौचालय बनवाने तक, अवनी मोहन सिंह ने 4 राज्यों के सैकड़ों गांवों को आत्म-निर्भर बनाया है!

गाँव में उपलब्ध साधनों से ही की पानी की समस्या हल, 25 साल में 500 गांवों की बदली तस्वीर!

पिछले 25 सालों से अवनी मोहन सिंह अपने एनजीओ 'हरीतिका' के ज़रिए उत्तर-प्रदेश के बुन्देलखंड इलाके में पानी की समस्या पर काम कर रहे हैं। उनके प्रयासों से यहाँ के सूखाग्रस्त गांवों को ज़िंदगी की नई उम्मीद मिली है और अब उनकी यह पहल मध्य-प्रदेश, महाराष्ट्र और उड़ीसा के भी सैकड़ों गांवों तक भी पहुँच चुकी है।

हमेशा से ही सामाजिक कार्यों के लिए तत्पर रहे 50 वर्षीय अवनी सिंह बताते हैं कि बुन्देलखंड का नाम सूखाग्रस्त क्षेत्रों में आता है। हर दो साल में यहाँ सूखे के हालात हो जाते थे और इस वजह से यहाँ पलायन बढ़ गया था। कभी खेती-किसानी करके अपने घर में सम्मान से दो वक़्त की रोटी खाने वाले किसान, शहरों में जाकर दिहाड़ी-मजदूरी करते हैं। क्योंकि गांवों में सिंचाई के लिए तो क्या पीने के लिए भी पानी नहीं था।

इन सभी परेशानियों ने अवनी सिंह को प्रेरित किया कि वे कोई समाधान ढूंढे और उन्होंने साल 1994 में 'हरीतिका' एनजीओ की नींव रखी। लोगों के लिए कुछ करने का जुनून उनमें इस कदर था कि उन्होंने एक फार्मा कंपनी, सिप्ला की अच्छी-ख़ासी नौकरी को छोड़ दिया। द बेटर इंडिया से बात करते हुए उन्होंने बताया,

"साल 1991 में अपनी मास्टर्स की पढ़ाई पूरी करने के बाद, मैंने अहमदाबाद के सेंटर फॉर एन्वायरमेंट एजुकेशन से वाइल्डलाइफ पर एक कोर्स किया। उस दौरान मुझे बहुत कुछ सीखने को मिला। क्लास के अलावा हम गांवों में, घने जंगलों में जाकर भी बहुत कुछ सीखते थे।"

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अवनी मोहन सिंह

कोर्स पूरा करने के बाद अवनी सिंह ने सोशल वर्क की राह पर ही आगे बढ़ने का फ़ैसला किया। वैसे तो उन्हें वाइल्डलाइफ मैनेजमेंट के क्षेत्र में आगे बढ़ना था लेकिन बुन्देलखंड की एक ट्रिप ने उनका इरादा बदल दिया। एक बार, वे अपने किसी रिश्तेदार के यहाँ बुन्देलखंड आए थे और जब उन्होंने यहाँ पर लोगों की हालत देखी तो उन्होंने ठान लिया कि वे उनके लिए ज़रूर कुछ करेंगे।

उन्होंने बुन्देलखंड के एक पिछड़े हुए गाँव, रौंद करारी से अपनी पहल शुरू की। उनका संगठन नया था तो उनके लिए एक दम से फंड्स जुटाना मुमकिन नहीं था, इसलिए उन्होंने डिस्ट्रिक्ट रूरल डेवलपमेंट एजेंसी (DRDA) की मदद से अपना पहला प्रोजेक्ट किया। उन्होंने गाँव के घरों में शौचालय बनवाए और वाटर पाइपलाइन भी डलवायी।

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इस गाँव में उनके सफल कार्यों ने उन्हें पहचान दी और साथ ही, उन्हें समझ में आ गया कि सरकारी योजनाएं विकास कार्यों में काफ़ी मददगार हो सकती हैं। अवनी सिंह ने सबसे ज़्यादा इंटीग्रेटेड वाटरशेड डेवलपमेंट प्रोग्राम की मदद ली। इस स्कीम का उद्देश्य जल संरक्षण के तरीकों और उपज बढ़ाने के लिए फार्मिंग तकनीकों पर काम करना है। इस स्कीम के तहत हरीतिका ने बहुत से किसानों को किसानी के अलग-अलग तरीके सिखाये और साथ ही, उन्हें सरकार की अन्य कृषि योजनाओं से भी जोड़ा।

इसके अलावा, उन्होंने अलग-अलग संगठनों जैसे कि वाटरऐड, यूनिसेफ, महिंद्रा एंड महिंद्रा आदि के सीएसआर फण्ड की मदद से पहले जल-संरक्षण के लिए बने हुए, डैम, तालाब, झील आदि को भी सुधरवाया। ताकि यहाँ के लोगों को पानी वापस मिल सके। वे बताते हैं कि उनका संगठन रिवर बेसिन एप्रोच पर काम करता है। सबसे पहले जिस भी गाँव में उन्हें काम करना होता है वे वहां के लोगों को साथ में लेकर एक समिति बनाते हैं। फिर उनसे विचार-विमर्श करके वॉटर प्रोजेक्ट के लिए अपनी योजना तैयार करते।

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सामुदायिक सहभागिता है ज़रूरी

अपने प्रोजेक्ट्स की सफलता का सबसे बड़ा कारण वे सामुदायिक सहभागिता को मानते हैं। उनके हर एक काम में स्थानीय लोग प्रोजेक्ट की बेसिक योजना से लेकर बजट तक की सभी गतिविधियों में शामिल होते हैं। इतना ही नहीं, सभी गाँव वाले मिलकर स्वच्छ पेय जल के लिए फंड भी इकट्ठा करते हैं। इसके अलावा, जिन भी गांवों में अब तक हरीतिका ने वाटरशेड प्रोजेक्ट्स पर काम किया है, उन गांवों में इन प्रोजेक्ट्स की मेन्टेनेन्स के लिए ग्रामीण लोग मासिक शुल्क भी देने से पीछे नहीं हटते हैं।

अपने एक बड़े प्रोजेक्ट के बारे में अवनी सिंह बताते हैं कि एक कंपनी की सीएसआर फंडिंग की मदद से उन्होंने बुन्देलखंड के परसाई-सिंध इलाके में एक इंटीग्रेटेड वाटरशेड प्रोजेक्ट किया। इस प्रोजेक्ट के तहत उन्होंने इस इलाके में रेनवॉटर हार्वेस्टिंग और जल-संरक्षण पर काम किया। उन्होंने इसमें आठ चेक डैम बनाए, जो कि 1, 25,000 क्यूबिक मीटर स्टोरेज की क्षमता के थे। इससे इस इलाके की भूजल स्तर में काफ़ी बढ़ोतरी हुई। इसका सबसे ज़्यादा फायदा यहाँ के किसानों को हुआ क्योंकि पानी की कमी पूरी होने से उनकी उपज काफ़ी बढ़ गई।

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अपने एक और प्रोजेक्ट में उन्होंने मध्य-प्रदेश के 40 गांवों में 440 कुएं भी खुदवाए, जिससे बारिश के पानी से ये कुएं भरे और साथ ही, ग्राउंडवॉटर टेबल में भी सुधार आए। इस तरह से, हरीतिका संगठन अब तक उत्तर-प्रदेश, मध्य-प्रदेश, महाराष्ट्र और उड़ीसा के लगभग 500 गांवों को स्वच्छ पेय जल उपलब्ध करवा चुका है और इससे करीब 10 लाख लोगों के जीवन में बदलाव आया है।

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हरीतिका के किये हुए कुछ प्रोजेक्ट्स

साथ ही, नाबार्ड (NABARD) से मिली एक फंडिंग से उन्होंने उत्तर-प्रदेश के झाँसी और मध्य-प्रदेश के छतरपुर जिले के 36 गांवों में 2,000 एकड़ ज़मीन पर एक फलों का बगीचा भी तैयार किया है ताकि यहाँ के किसानों की आमदनी बढ़े।

जल-संरक्षण के अलावा हरीतिका संगठन गांवों की अन्य समस्याओं पर भी काम कर रहा है। अवनी सिंह और उनकी टीम ग्राम पंचायत से संबंधित, महिलाओं व बच्चों की समस्याएं और शिक्षा व स्वास्थ्य के मुद्दों पर भी काम कर रहे हैं। हरीतिका कृषि के क्षेत्र में भी काफ़ी अच्छा काम कर रहा है।

उनका उद्देश्य किसानों को न सिर्फ़ फसल उत्पादक बल्कि देसी बीज उत्पादक बनाने पर भी है। वे चाहते हैं कि किसान खुद अपने बीज बनाएं और अपनी वैरायटी बाज़ार में बेचें। किसानों के विकास के लिए उन्होंने नवगाँव एग्रीकल्चरल प्रोड्यूसर लिमिटेड कंपनी शुरू करवाई। इस कंपनी को किसानों द्वारा ही चलाया जा रहा है। इसके ज़रिए किसानों को सीधा बाज़ार से जोड़ा जाता है ताकि उन्हें उनकी फसल का उचित दाम मिल सके।

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अवनी सिंह बताते हैं कि अब वे नवीकरणीय उर्जा के क्षेत्र में भी काम कर रहे हैं। जिसके माध्यम से वे गांवों में सोलर पैनल लगवा कर, सौर उर्जा के उपयोग को बढ़ावा दे रहे हैं। फ़िलहाल, उनकी टीम में 25 लोग नियमित रूप से कार्यरत हैं और इसके अलावा, अपने प्रोजेक्ट्स के हिसाब से उन्हें वॉलिन्टियरिंग करने के लिए हर उम्र के लोग मिल जाते हैं।

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अंत में अवनी सिंह सिर्फ़ यही कहते हैं, "

हमें अपनी सोच बदलनी होगी। ऐसा कुछ भी नहीं जो हम और आप मिलकर नहीं कर पाएं। लोग जब तक ये सोचते रहेंगे कि उनकी सभी परेशानियों का हल सरकार करेगी तब तक कुछ नहीं होगा। क्योंकि आप किसी और पर निर्भर रहकर आगे नहीं बढ़ सकते, आपको खुद आगे आकर काम करना होगा।"

द बेटर इंडिया, अवनी मोहन सिंह की मेहनत और जज़्बे को सलाम करता है और हमें उम्मीद है कि उनकी यह कहानी पढ़कर, सभी लोग पानी का महत्व समझेंगे और अपनी दिनचर्या में 'जल-संरक्षण' के लिए छोटे-छोटे कदम उठायेंगें!

संपादन: भगवती लाल तेली


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