मध्य प्रदेश के इंदौर में रहने वाले विष्णु पाटीदार पेशे से सिविल इंजीनियर हैं और एक कंपनी में काम करते हैं। लेकिन इसके साथ ही साथ वह अपने घर में गार्डनिंग भी करते हैं। वह जैविक तरीके से छत पर ही सब्जियाँ उगाते हैं।
पिछले 12 सालों से गार्डनिंग कर रहे विष्णु ने द बेटर इंडिया को बताया, “साल 2006 में जब हमारा घर बना तो मैंने गार्डन की खास जगह रखवाई और छत पर भी मैंने क्यारियाँ बनवाई। इसके बाद मैंने फल-फूल और सब्जियों के बीज लगाए और तब से ही हम गार्डनिंग कर रहे हैं।”
छत पर गार्डनिंग की वजह से कोई समस्या न हो इसलिए उन्होंने छत को वाटरप्रूफ कराया। इससे अब उन्हें लीकेज आदि होने की चिंता नहीं है। सब्जियाँ उगाने के लिए क्यारियाँ बनवाने के साथ-साथ उन्होंने खाद बनाने के लिए भी तीन गड्ढे बनवाए, जो आज उनकी वर्मीकम्पोस्टिंग यूनिट हैं।
विष्णु बताते हैं, “मेरा दिन सुबह 5 बजे से शुरू होता है। सुबह-सुबह अपने गार्डन में पेड़-पौधों की देखभाल करता हूँ और शाम को अपनी ड्यूटी से लौटकर भी अपने गार्डन में समय बिताता हूँ। पेड़-पौधों को पानी-खाद देना, स्प्रे करना और यह देखते रहना कि किसी पौधे में कोई बीमारी तो नहीं लगी है, यह मेरा रोज का रूटीन है।”
खुद बनाते हैं खाद:
विष्णु पहली यूनिट में घर का सारा ग्रीन (गीला) कचरा (फलों, सब्जियों के छिलके, सूखे पत्ते, चाय पत्ती, फलपत्ती, गार्डन वेस्ट, गोबर आदि सड़ने वाली चीजें) डालते जाते हैं, जब कचरा सड़ जाता है तब उसमें केंचुआ डाल दिया जाता है। इसके ऊपर खाली बोरी या पराली (घास-फूस) डालकर पानी डाला जाता है। हजारों केंचुए कचरे को 3 से 4 माह में 250 से 300 किलो बहुमूल्य गुणकारी वर्मी काम्पोस्ट (खाद) में परिवर्तित कर देते हैं।
इसी प्रकार, दूसरी यूनिट (गड्ढे) में कचरा और कुछ मिट्टी डाल दिया जाता है। विष्णु बताते हैं, “जब यह सड़ जाता है, तब पहली यूनिट के खाद को छान कर खाली कर देते हैं और केंचुए को दूसरी यूनिट में डाल देते हैं। ये केंचुए इसे भी खाद बना देते हैं। हमने यूनिट के भीतर पाईप डाल दिया है, जिससे निकलने वाले पानी को कीटनाशक के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है।”
विष्णु पेड़-पौधों के लिए केवल जैविक कीटनाशक का ही प्रयोग करते हैं। इसके लिए वह छाछ, गोमूत्र, गोबर, मिर्च, लहसुन, तम्बाकू, धतुरा, नीम, कनेर, करंज आदि से बनाए गए घरेलू उत्पाद और नीम तेल का उपयोग करते हैं।
पूरे साल होती है सब्ज़ियों की आपूर्ति:
विष्णु के घर में लगभग 2000 पेड़-पौधे हैं और हर मौसम में वह मौसमी सब्जी उगाते हैं। उनके गार्डन में पीपल, नीम, बरगद जैसे बड़े पेड़ हैं और वहीं छत पर वह लौकी, करेला, गोभी, गाजर, मूली, बटला पालक, मैथी, ककड़ी, करेला, पत्तागोभी आदि उगा रहे हैं। वह सभी सब्जियाँ इस तरह लगाते हैं कि पूरे मौसम उन्हें उपज मिलती रहे।
वह थोड़े-थोड़े समय के अंतराल पर बीज बोते हैं। जैसे अगर उन्हें गोभी लगानी है तो वह कुछ बीज अभी लगाएंगे और फिर कुछ बीज दो हफ्तों बाद। इससे जब तक उनकी एक फसल खत्म होती है, उन्हें दूसरी फसल से सब्जियाँ मिलने लगती हैं।
उन्होंने अपने गार्डन में 21 इंच की लौकी, 18 इंच की तोरई, 11 इंच के करेले और 10 इंच के केले भी उगाएं हैं। वह बताते हैं, “बाजार से हम न के बराबार सब्जी खरीदते हैं। साल भर हमें कुछ न कुछ हरी सब्जियाँ गार्डन से मिलती ही रहती है। गार्डन में एक केले का भी पेड़ है। लॉकडाउन के दौरान हमें सब्जी और फल की कोई दिक्कत नहीं हुई। केले को तो हमने पड़ोसियों में भी बांटा। अब उसी केले के पेड़ से मैंने 6 छोटे-छोटे और केले के पौधे लगाए हैं।”
विष्णु कहते हैं कि वह मिट्टी में खाद और वर्मीकंपोस्ट मिलाकर तैयार करते हैं। इसके अलावा समय-समय पर पौधों को पोषक तत्व भी देते हैं। पिछले 3-4 साल से वह वेस्ट डीकंपोजर इस्तेमाल कर रहे हैं। उनके घर में गार्डन होने से अब उनके यहाँ तरह-तरह के पक्षी भी आते हैं। हरियाली की वजह से उनके यहाँ अलग-अलग प्रजाति की चिड़ियों ने घोंसला बना लिया है, इन पक्षियों के लिए वह नियमित तौर पर दाना और पानी रखते हैं।
“घर पर सब्ज़ियाँ उगाने की वजह से हमें हर साल पैसे की भी काफी बचत होती है और साथ ही, हमारी सब्जियां ताज़ा और जैविक हैं। ये स्वास्थ्य और सेहत के लिए भी अच्छी हैं। अब इससे ज्यादा हमें और क्या चाहिए,” उन्होंने अंत में कहा।
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