तेलंगाना के एक छोटे से शहर निर्मल के रहनेवाले राहुल कोप्पुला ने अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई के दौरान ही यह फैसला कर लिया था कि उन्हें आगे चलकर नौकरी नहीं, बिज़नेस करना है। राहुल के पिता एक डॉक्टर हैं और उनकी माँ एक गृहिणी। राहुल ने इंजीनियरिंग की आखरी साल की पढ़ाई के साथ-साथ, अलग-अलग स्टार्टअप के बारे में सोचना शुरू कर दिया था। लेकिन घूमने-फिरने के शौक़ीन होने के बावजूद, उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि एक दिन वह टूरिज़्म से जुड़ा कोई व्यवसाय भी करेंगे।
27 वर्षीय राहुल, आज हिमाचल प्रदेश के छोटे से गांव में एक होटल चला रहे हैं और इसके ज़रिए गांव के कई लोगों को रोजगार देने का काम कर रहे हैं। उन्होंने हिमाचल के जीभी गांव में सबसे पहली बार देवदार की लकड़ियों से ओक के पेड़ पर एक ट्री हाउस(Tree House) बनाया, जो लोगों को खूब पसंद आया। इस होटल को बनाने के पहले वह कभी किसी ट्री हाउस में रुके भी नहीं थे। लेकिन फिल्मों और यूट्यूब में उन्होंने कई ट्री हाउस देखे थे, जो उन्हें काफी रोमांचित भी करते थे।
द बेटर इंडिया से बात करते हुए वह बताते हैं, “साल 2018 में जब मैं जीभी घूमने आया था, तब यहां ज्यादा पर्यटक घूमने नहीं आया करते थे। यहां 100 साल पुराने पेड़ों को देखकर मुझे ट्री हाउस बनाने का ख्याल आया। एक दूसरा कारण ट्री हाउस बनाने का यह था कि मैं लोगों को बताना चाहता था कि पैसे पेड़ से भी कमाए जा सकते हैं।”
कैसे बना पहला ट्री हाउस(Tree House)?
इलेक्ट्रॉनिक और कम्युनिकेशन में इंजीनियरिंग की पढ़ाई के दौरान ही राहुल अलग-अलग बिज़नेस सेमिनार में भाग लेते रहते थे। साल 2016 में उन्होंने सबसे पहले कपड़ों का बिज़नेस शुरू किया था। कुछ कारण से वह बिज़नेस ज्यादा चल नहीं पाया, जिसके बाद वह दूसरे बिज़नेस विकल्पों के बारे में सोच ही रहे थे।
राहुल कहते हैं, “मैं कभी अपनी डिग्री लेने कॉलेज गया ही नहीं, क्योंकि मुझे हमेशा से पता था कि मुझे बिज़नेस करना है। मेरे माता-पिता ने भी कभी मुझपर नौकरी करने का दबाव नहीं बनाया।”
साल 2018 के मार्च महीने में उन्होंने हिमाचल के अपने ट्रिप एक दौरान, ट्री हाउस बनाने का फैसला किया तब उनके पास ट्री हाउस बनाने की ज्यादा जानकारी नहीं थी।
लेकिन उन्होंने इंटरनेट पर इसके बारे में पढ़ना शुरू किया। उन्होंने दुनियाभर के अलग-अलग ट्री हाउस की जानकारियां इकट्ठा की और जुलाई 2018 में कुछ लोकल कारीगरों के साथ काम करना शुरू किया।
उन्होंने गांववालों की ज़मीन लीज़ पर लेकर ट्री हाउस बनाए हैं।
अपने इस प्रोजेक्ट को सस्टेनेबल बनाने के लिए उन्होंने ज्यादा से ज्यादा स्थानीय चीजों का प्रयोग किया। उन्होंने ट्री हाउस बनाने के लिए लकड़ियां भी स्थानीय जंगलों के उन पेड़ों से लीं, जो वहां जल्दी उग जाते हैं और फिर कुछ महीनों की मेहनत के बाद, उनका पहला ट्री हाउस The hidden burrow बनकर तैयार हो गया।
राहुल कहते हैं, “मैंने सोशल मीडिया के ज़रिए अपने ट्री हाउस के बारे में लोगों को बताना शुरू किया। आपको विश्वास नहीं होगा कि बनने से पहले ही मेरे पास लोग इसकी बुकिंग कराने आते थे। तभी मैं समझ गया था कि यह एक अच्छा बिज़नेस साबित होगा।”
उन्होंने इस ट्री हाउस को बनाने में शुरुआती दस लाख रुपये का निवेश किया था। पहले साल के मुनाफ़े के बाद, उन्होंने अगले साल एक और ट्री हाउस बनाया और फ़िलहाल उनके पास पर्यटकों के लिए कुल तीन ट्री हाउसेज़ हैं।
गांव में पहला ट्री हाउस(Tree House) बनाकर दिया कइयों को रोज़गार
राहुल ने जब इस गांव में ट्री हाउस बनाया था, तब यहां गांव में पर्यटको के रहने के लिए सात से आठ विकल्प ही थे। ज्यादातर होटल्स, सीमेंट और कंक्रीट के बने थे। उस दौरान ट्री हाउस शिमला या कुल्लू में ही हुआ करते थे। लेकिन राहुल ने इस गांव में पहला ट्री हाउस बनाकर गांव के कई लोगों को रोजगार देने के साथ- साथ, पर्यटकों की संख्या बढ़ाने में मदद भी की है।
वह कहते हैं, “पहले यहां 10 होटल्स भी नहीं थे और आज मात्र तीन सालों में यहां 300 से अधिक छोटे-बड़े होटल्स बन गए हैं। कुछ लोकल लोगों को ट्री हाउस बनाने में मैंने मदद भी की है।”
ट्री हाउस की सफलता के बाद, राहुल ने किराए पर जमीन लेकर, कुछ पत्थर के कॉटेज और एक कैफ़े भी बनाया है। राहुल ने अपने इस पूरे प्रोजेक्ट को पर्यावरण के अनुकूल बनाने के लिए कम से कम सीमेंट का उपयोग किया है। ताकि लोगों को प्रकृति के साथ रहने का असली आनंद दे सकें।
आज राहुल अपने इस होटल बिज़नेस से सालाना एक करोड़ से ज्यादा का टर्नओवर कमा रहे हैं और इस बात को साबित कर रहे हैं कि पैसे सच में पेड़ से भी कमाए जा सकते हैं।
आप राहुल के ट्री हाउस के बारे में ज्यादा जानने के लिए यहां संपर्क कर सकते हैं।
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