दुबई से लौटकर शुरू की जैविक खेती, यात्रियों के लिए बनाया 400 साल पुराने पेड़ पर ट्री हाउस

Kerala homestay Jungle Jive Tree House

केरल के मुन्नार में पॉलसन और एलज़ा ने मिलकर अपने खेतों पर 400 साल पुराने जंगली जामुन के पेड़ पर ट्री हाउस बनाया है।

हम सबका का बचपन अक्सर अपने दादा-नाना के जमाने की कहानियां सुनते हुए बीता है। हम जब भी उनके जमाने के बारे में सुनते हैं, तो लगता है कि क्या ऐसा अभी नहीं हो सकता? आज भी मेरी दादी मुझे अपने गांव की पुरानी हवेली की कहानियां सुनाती हैं। वह कहती हैं कि पत्थर से बनी उस हवेली में गर्मियों में न ताप लगता था और सर्दियों में न जाड़ा लगता था। इसलिए आज भी उन्हें एसी या पंखे की जरूरत नहीं होती है, क्योंकि उनका शरीर उसी तरह से ढला हुआ है। जबकि आज की पीढ़ी गर्मियों में दो दिन भी बिना एसी-कूलर के नहीं बिता सकती है। खासकर कि शहरों में रहने वाले लोग। 

केरल से संबंध रखने वाले पॉलसन भी अपने दादाजी के जमाने के किस्से सुनते हुए बड़े हुए। उनके दादाजी के कुछ किस्से इतने मजेदार थे कि उन्होंने ठान लिया था कि एक दिन वह भी अपने दादाजी की तरह प्रकृति के करीब ज़िंदगी गुजारेंगे। इसलिए दुबई में कई सालों तक अच्छी-खासी नौकरी करने के बाद 2012 में वह अपनी पत्नी, एलज़ा और बच्चों के साथ भारत लौट आए। यहां आकर किसी शहर में नहीं बसे, बल्कि अपने पैतृक जगह देवगिरि में रहकर जैविक खेती करते हुए एक बेहतर ज़िंदगी बिता रहे हैं। 

उनके खेतों में मौसमी फसलों के साथ-साथ, कई सारे पुराने नारियल, कटहल और जंगली जामुन के पेड़ भी हैं। इनके अलावा, उनका चाय, इलायची और कॉफ़ी का बागान भी है। 15 एकड़ जमीन पर फैले उनके इस बागान में बना ट्रीहाउस उनके फार्म की विशेषता है। जिसे वह अलग-अलग जगहों से आने वाले यात्रियों के लिए होम-स्टे के तौर पर चला रहे हैं। द बेटर इंडिया से बात करते हुए उन्होंने अपने ‘Jungle Jive Tree House’ और खेती के बारे में बताया। 

दादाजी की कहानी ने किया प्रेरित 

Paulson and Elza running home stay in Tree house
Paulson and Elza running home stay in Tree house

वे बताते हैं, “पॉलसन के दादाजी ने यह जमीन खरीदी थी। यह जगह मुन्नार से मात्र 15 किमी की दूरी पर है। दादाजी हमेशा बताते थे कि यहां पर घना जंगल हुआ करता था और उसी के बीच वह खेती किया करते थे। उन्होंने एक भी पेड़-पौधे को नहीं काटा था क्योंकि उन्हें प्रकृति से बहुत ही ज्यादा प्रेम था। दादाजी हमेशा एक किस्सा दोहराते थे कि उस जमाने में हाथियों का बड़ा झुंड हमारे खेतों से गुजरता था। इसलिए दादाजी ने एक ऊंचे पेड़ पर छोटा-सा ट्री हाउस जैसा ठिकाना बनाया हुआ था। उसी ट्री हाउस में रहते हुए वह अपने खेतों की देखभाल करते थे।”

दादाजी से ट्री हाउस की कहानियां सुनकर पॉलसन बहुत ही प्रभावित होते थे। उनके दिल में हमेशा यह इच्छा रही कि अगर उन्हें कभी मौका मिला तो वह जरूर एक ट्री हाउस बनाएंगे। 

अपने इस नए जीवन के बारे में एलज़ा बताती हैं कि 2012 तक उनका परिवार दुबई में ही रहता था। लेकिन वहां सबसे बड़ी कमी थी हरियाली की। पॉलसन और एलज़ा दोनों ही हरियाली और प्रकृति के करीब ज़िन्दगी की कमी को महसूस करते थे। इसलिए उन्होंने वापस मुन्नार में आकर बसने का फैसला किया। 

एलज़ा कहती हैं कि ऐसा नहीं था कि हमने बस फैसला किया और आ गए। यह बात उनके मन में हमेशा से थी कि उन्हें अपने घर लौटना है। इसलिए उन्होंने कई साल पहले से इसकी तैयारी शुरू कर दी थी। ताकि जब वे वापस मुन्नार लौटे और खेती-बाड़ी से जुड़ें तो उनके पास इतने साधन हों कि कुछ सालों तक उनका परिवार अपनी जरूरतें पूरी कर सके। “खेती करने में कोई बुराई नहीं है लेकिन जरुरी नहीं कि सब कोई खेती में सफल हो सके। हमने पहले इस जमीन को लीज पर दिया हुआ था और वे किसान रसायनों का प्रयोग करते थे। लेकिन हम सिर्फ जैविक खेती करना चाहते थे। इसलिए हमें पता था कि खेती में सफलता के लिए हमें समय लगेगा और उसी के आधार पर हमने तैयारी की,” वह कहती हैं। 

400 साल पुराने जंगली जामुन के पेड़ पर बनाया ट्रीहाउस

Jungle Jive Treehouse in Kerala, Munnar
Tree house on 400 year old tree (Source)

एलज़ा ने बताया कि मुन्नार लौटने के बाद उन्होंने सबसे पहले अपनी जमीन पर खुद जैविक तरीके से खेती करने की ठानी। “जब हम लौटे तब मुन्नार एक टूरिस्ट जगह की तरह विकसित हो रहा था। बहुत से लोग अपनी जमीनों से पेड़-पौधे काटकर उनमें रिसोर्ट बना रहे थे। हमने भी अपने फार्म को ‘होम स्टे’ की तरह तैयार करने की सोची। लेकिन हमने यह तय किया कि हम एक भी पेड़ नहीं काटेंगे। इसी सोच के साथ पॉलसन को अपना बरसों पुराना सपना सच करने का मौका मिल गया,” उन्होंने बताया। 

उन्होंने अपने खेतों में पहले से लगे हुए बड़े और घने पेड़ों को जांचकर एक 400 साल पुराने जंगली जामुन के पेड़ पर ट्री हाउस बनाने का फैसला किया। ट्री हाउस के निर्माण के साथ-साथ, उन्होंने अपनी जमीन पर चाय, कॉफ़ी, काली मिर्च और इलायची की खेती भी शुरू की। वे बताते हैं, “हमारा ट्री हाउस दो फ्लोर का है और जमीन से लगभग 10 फ़ीट की ऊंचाई पर है। इसमें कुल चार कमरे हैं और सभी में अटैच बाथरूम है। ट्री हाउस को सपोर्ट देने के लिए इसके नीचे चार खंबे बनवाये गए हैं ताकि यह मजबूती से टिका रहे,” उन्होंने बताया। 

ट्री हाउस के निर्माण में बांस, लकड़ी और मेटल का ज्यादा इस्तेमाल हुआ है। उन्होंने बताया कि सामान्य निर्माण सामग्री जैसे ईंट-पत्थरों का ज्यादा प्रयोग वे नहीं कर सकते थे। इसलिए उन्होंने ज्यादातर प्राकृतिक चीजें चुनी। ट्री हाउस में जाने के लिए बांस और मेटल का इस्तेमाल करके सीढ़ियां बनाई गयी हैं। पहले फ्लोर पर दो कमरे हैं और दोनों में बाथरूम और बालकनी की सुविधा है। पहले फ्लोर के कमरों से आप उनके बागान को देख सकते हैं। 

वहीं, दूसरे फ्लोर के कमरों से आपको माउंटेन व्यू मिलेगा। इस जगह का तापमान लगभग पूरे साल काफी अच्छा रहता है। इसलिए ट्री हाउस में एसी-कूलर की जरूरत नहीं पड़ती है। बल्कि प्राकृतिक रूप से ही यह ट्री हाउस काफी ठंडा और आरामदायक है। 

एक बार में रह सकते हैं 12 लोग 

Jungle Jive Homestay In Kerala Tea estate and coffee farm
Tourists from other countries visit them (Source)

एलज़ा बताती हैं कि उनके इस इको फ्रेंडली ट्री हाउस में एक बार में 12 लोग रह सकते हैं। हर साल सितंबर से लेकर मार्च-अप्रैल तक, उनके यहां बहुत से यात्री आते-जाते रहते हैं। हालांकि, मुन्नार में जब बारिश ज्यादा होती है तब वे होम स्टे को बंद रखते हैं। “हम लोगों को यह संदेश देना चाहते थे कि वे बिना पेड़ काटे भी होम स्टे बना सकते हैं। हमें लगातार लोगों की बुकिंग के लिए कॉल आती रहती है। हमारे यहां आने वाले लोगों को हम एकदम प्रकृति को करीब से देखने, महसूस करने का मौका देना चाहते हैं। इसलिए हम उनके लिए कैंपफायर, झूला जैसे चीजों का इंतजाम भी करते हैं,” उन्होंने कहा। 

कई बार यात्रियों के लिए खाना भी एलज़ा खुद तैयार करती हैं। वह अलग-अलग इलाकों से आने वाले लोगों को मुन्नार के स्थानीय खाने का स्वाद चखाती हैं। इससे यात्रियों को घर से दूर होकर भी स्वस्थ और शुद्ध खाना मिलता है। उनके ट्री हाउस में समय बिता चुके अमल टी कहते हैं कि यह जगह कमाल की है। यहां ढेरों पेड़-पौधे हैं और क्लाइमेट भी अच्छा है। “मैं एक आईटी प्रोफेशनल हूं और हमेशा काम में इतना बिजी रहता हूं कि मुझे ढंग से नींद नहीं आती। लेकिन यहां पहुंचकर मुझे शांति और सुकून का अहसास हुआ,” उन्होंने कहा। 

वे कहते हैं कि यहां पर सफलतापूर्वक जैविक खेती करने और सेटल होने में उन्हें लगभग पांच साल का समय लग गया था। लेकिन अब वे अच्छी कमाई करते हुए स्वस्थ और सुकून भरी ज़िन्दगी जी पा रहे हैं। दूसरों को वे हमेशा यही सलाह देते हैं कि अगर आप ऐसा कुछ करना चाहते हैं तो पहले अच्छे से प्लान करें। अगर आपके पास इतने साधन हैं कि आपका आईडिया फेल हुआ तो भी आप खुद को सस्टेन कर सकेंगे तभी आप इस तरह का कुछ करें। क्योंकि अगर आप सिर्फ दूसरों को देखकर जल्दबाजी में फैसला लेंगे तो नुकसान होने की सम्भावना है। 

संपादन- जी एन झा

कवर फोटो: फार्मिंग लीडरअश्वती कृष्णन

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