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मुंबई में नौकरी करनेवाली अनुजा और स्नेहा, दोनों बचपन की सहेलियां हैं। स्नेहा महाशब्दे एक आर्किटेक्ट हैं, जबकि अनुजा के पास इकोनोमिक्स की डिग्री है। दस साल तक अपनी-अपनी फील्ड से जुड़ा काम करने के बाद, दोनों सहेलियों ने नौकरी छोड़, एक होमस्टे (The Kokum Tree Home Stay) बनाने का मन बनाया। दोनों ने यह फैसला सोच-समझकर लिया और इसके लिए उन्होंने अच्छी-खासी बचत भी कर ली थी।
अब फैसला तो कर ही लिया था, पैसे भी थे ही, बस ज़रूरत थी जगह की। तो जगह भी मिल गई, वह भी बिल्कुल जंगल के बीचो-बीच। होमस्टे बनाने के लिए अनुजा ने अपनी अज्जी यानि दादी के घर को इस्तेमाल किया। उनकी दादी ने 5 एकड़ की जमीन पर बगीचे के साथ-साथ, पूरा का पूरा एक जंगल बनाया है, जो होमस्टे को और भी खूबसूरत बनाता है। हालांकि यह काम इतना भी आसान नहीं था।
"पुरुष मजदूर हमसे नहीं लेते थे ऑर्डर"
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सब कुछ तैयार था, सब ठीक था। अब बस कुछ बाकी था, तो वह था इम्प्लीमेंटेशन। लेकिन इससे पहले कि चेक इन करके इस जगह का लुत्फ उठाने मेहमान आते, मुश्किलें पहले ही आ गईं।
स्नेहा और अनुजा स्थाई रुप से मुंबई से महाराष्ट्र के रायगढ़ के लोनेरे गांव में आने के लिए पूरी तरह से तैयार थीं। लेकिन उन्हें रास्ते में आने वाली बाधाओं के बारे में जरा भी अंदाजा नहीं था। करीब छह महीने तक बचपन की ये दो सहेलियां कड़ी मेहनत करती रहीं।
द बेटर इंडिया से बात करते हुए स्नेहा ने बताया, "सारा शारीरिक श्रम हम दोनों को खुद ही करना पड़ा। हमारी बचत खत्म हो रही थी, पैसे बस जा रहे थे और हमें पता भी नहीं था कि हमारे पास पैसे आने कब शुरू होंगे। ज्यादातर शहरी लोगों की तरह शुरुआत में हम, यहां बिल्कुल अकेला और अलग-थलग महसूस कर रहे थे। प्लंबर, इलेक्ट्रीशियन और खेतीहर लेबर जैसे पुरुष मजदूरों को हमसे ऑर्डर लेने में परेशानी होती थी, वे हमें बिल्कुल सीरीयस नहीं लेते थे।"
Kokum Tree होमस्टे का ही ख्याल क्यों आया?
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दरअसल, अनुजा और स्नेहा को घूमने-फिरने का काफी शौक था। ट्रेकिंग और ट्रेल्स से उनका परिचय अनुजा के पिता ने कराया था। दोनों को ही बैकपैकिंग, साइकिलिंग और एडवेंचर में काफी दिलचस्पी थी और अपने इसी शौक के कारण वे भारत और विदेशों में कई जगह घूम चुकी थीं।
ताजी हवा और शारीरिक गतिविधियों के अलावा, दोनों दोस्त एक बेहतर जिंदगी चाहती थीं और होमस्टे बनाने का सबसे बड़ा कारण भी यही था। उन्होंने 2019 में होमस्टे की शुरुआत की और इसका नाम रखा 'द कोकम ट्री (The Kokum Tree Home Stay) '। तब से लेकर अब तक करीब 2,000 से ज्यादा मेहमान यहां आ चुके हैं, जिनमें से कई तो रेग्युलर गेस्ट हैं।
अनुजा कहती हैं कि बिजनेस शुरु करने का फैसला उन्होंने एकदम से नहीं लिया। उन्होंने बताया, "एक दशक तक काम करने के बाद, हमने महसूस किया कि नौकरी छोड़ने का यही सही समय है। हमने सोचा कि अगर बिजनेस नहीं चलता है, तो हम वापस मुबंई आकर फिर से नौकरी पर लग जाएंगे। बिजनेस के लिए नई संपत्ति में निवेश करने के बजाय, हमने अपने अज्जी के घर का इस्तेमाल करने का फैसला किया।"
अनुजा की अज्जी ने बड़े प्यार और कड़ी मेहनत से एक जंगल बनाया था और वे चाहती थीं कि दूसरे भी इस जंगल और प्रकृति का अनुभव करें।
अुनभव नहीं था, फिर कैसे किया काम?
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दोनों को हॉस्पिटैलिटी का कोई अनुभव नहीं था, लेकिन पिछली नौकरी में क्लाइंट और सहकर्मियों के साथ बातचीत करने के अनुभव से उन्हें शुरुआत में काफी मदद मिली। जब तक इस जगह को रेनोवेट किया जा रहा था, इन दोनों ने वेबसाइट और सोशल मीडिया पेजों पर काम किया, ताकि लोगों को इस बिजनेस के बारे में जानकारी मिल सके।
उन्होंने कोंकण बेल्ट के होमस्टे का दौरा भी किया, ताकि वे पूरी प्रक्रिया समझ सकें और पता कर सकें कि वहां क्या ऑफर मिल रहे हैं। उनके दो विज़न थे- कम्युनिटी इंटरैक्शन के लिए एक जगह बनाना और इसे पर्यावरण के अनुकूल बनाना और इसके लिए उन्होंने महीनों काम किया और फिर बुकिंग लेना शुरू किया।
शुरुआत में, उन्होंने अपने पूर्व सहयोगियों और परिचितों की मेजबानी की और उनसे फीडबैक लिया। जल्द ही, होमस्टे ने मीडिया का ध्यान खींचा और वे अखबारों में आ गए। स्नेहा आगे कहती हैं कि अखबार में आर्टिकल प्रकाशित होने के बाद, उनके पास बुकिंग के लिए कई कॉल्स आईं और कई लोगों ने इस बात की सराहना की कि दो महिलाओं ने अपने जुनून और पैशन के लिए अपनी नौकरी छोड़ दी।
अनुचित मांगों वाले गेस्ट को ना कहना सीखने से लेकर मेन्यू ठीक करने और ज्यादा से ज्यादा अनुभव से लेकर अपने पैसों को बैलेंस करने तक, लगभग सब कुछ दोनों ने खुद ही किया।
Kokum Tree होमस्टे में क्या-क्या हैं सुविधाएं?
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यह विला, आधुनिक सुविधाओं और पर्यावरण के अनुकूल जीवन शैली का एक मिश्रण है। इसमें चार कमरे हैं और हर कमरे के साथ बाथरूम है। साथ में, एक किचन, कॉमन लिविंग रूम और एक बरामदा है। उन्होंने दोस्तों के साथ आने वाले मेहमानों के लिए बांस के कॉटेज भी बनाए हैं।
दोनों सहेलियां अपने खेत में ज्यादातर चीज़ें खुद उगाती हैं, कचरे को अलग करके, उससे खाद बनाती हैं और पूरी कोशिश करती हैं कि कैंपस के अंदर कोई भी प्लास्टिक का इस्तेमाल न करे। वे मेहमानों को प्रकृति से जुड़ने के लिए प्रोत्साहित भी करती हैं।
अनुजा कहती हैं, "हम यहां आने वाले बच्चों को पेड़ों की पहचान करना सिखाते हैं, उन्हें पेड़ों पर चढ़ने, कीचड़ में खेलने और किताबें पढ़ने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। इसके अलावा, बड़ों के लिए योग, साइकिल चलाना, ट्रेल्स और मिट्टी के बर्तनों जैसी कई एक्टिविटीज़ कराती हैं।" उनके यहां हर कमरे में टीवी नहीं है, लेकिन वे कॉमन एरिया में फिल्में स्क्रीन करते हैं।
यहां मेहमानों को फार्मिंग करने और हाइकिंग साइट्स देखने का भी मौका मिलता है। इसके अलावा, यहां आने वाले मेहमान तालाब के ऊपर लकड़ी के डेक से सन सेट का मज़ा ले सकते हैं, पापड़ बनाने जैसी एक्टिविटी में शामिल हो सकते हैं या बस काजू के पेड़ों की छाया में आराम कर सकते हैं।
मेन्यू में क्या है?
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अनुजा बताती हैं कि आमतौर पर सुबह के नाश्ते के लिए, फल, पोहा, चाय, कॉफी, शीरा, पैनकेक्स आदि दिया जाता। दोपहर के भोजन के लिए एक महाराष्ट्रीयन थाली परोसी जाती है, जिसमें दाल, तली हुई चीजें, कोशिमबीर, फिश फ्राई, रोटी और भाकरी होता है। वहीं, रात के खाने में ब्रेड, पिज्जा, फलाफेल, बिरयानी और केक होता है। खास बात यह है कि यहां के किचन में खाना मक्खन और घी में ही बनाया जाता है।
मुंबई के रहनेवाले अक्षय कामत पिछले 16 महीने में चार बार यहां आ चुके हैं। उनके अनुसार, यह जगह प्रकृति और आधुनिक सुविधाओं का एक बेहतरीन मिश्रण है। द बेटर इंडिया से बात करते हुए अक्षय ने बताया, “एक कपल के रूप में, हम प्रकृति में एक साथ समय बिताना पसंद करते थे। इस होमस्टे (The Kokum Tree Home Stay) का सबसे अच्छा हिस्सा मेजबानों की भागीदारी है। उन दोनों ने हमें घर जैसा महसूस कराया और कई गतिविधियों के साथ हमारे लिए एक बहुत ही जीवंत माहौल बनाया।”
दोनों जल्द ही सोलर पैनल लगाने और पूरी तरह से ऑफ-ग्रिड होने पर विचार कर रहे हैं। वे एक रिटायरमेंट होम बी बना रहे हैं। अपने रिटायरमेंट के बाद, वे अपना एडिबल फॉरेस्ट बनाना चाहती हैं, जैसे अज्जी ने कोकम ट्री के लिए किया है।
मूल लेखः गोपी करेलिया
संपादनः अर्चना दुबे
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