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सिविल सेवा परीक्षा में निबंध के प्रश्न-पत्र की प्रासंगिकता और महत्त्व के संबंध में किसी को कोई संदेह नहीं है। दरअसल निबंध का यह 250 अंकों का प्रश्न-पत्र मुख्य परीक्षा में सफलता की एक बड़ी अनिवार्यता है। सिविल सेवा परीक्षा 2014 की टॉपर इरा सिंघल और मुझे, दोनों को ही निबंध में 160 अंक प्राप्त हुए थे, जो उस साल के सर्वाधिक अंक थे। सुखद तथ्य यह है कि मेरे द्वारा हिंदी माध्यम में लिखे गए निबंधों को भी सुश्री इरा सिंघल के अंग्रेजी माध्यम में लिखे गए निबंधों के बराबर अंक प्राप्त हुए। इससे मोटे तौर पर यह माना जा सकता है कि निबंध के प्रश्न-पत्र में भाषा माध्यम कोई समस्या नहीं है और यदि बेहतर व सटीक रणनीति बनाकर अच्छे निबंध लिखे जाएँ तो श्रेष्ठ अंक हासिल किए जा सकते हैं।
पहली नजर में आपको लगेगा कि निबंध उन सात प्रश्न-पत्रों की तरह ही एक 250 अंकों का प्रश्न-पत्र है, जिसके अंक मुख्य परीक्षा के कुल स्कोर (1750 अंक) में जोड़े जाते हैं, पर बारीकी से समझने पर यह बात सामने आती है कि निबंध का प्रश्न-पत्र इसमें प्राप्त हो सकने वाले अंकों के लिहाज से कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण और उपयोगी है।
निबंध के प्रश्न-पत्र में मिलने वाले गत वर्षों के अंक यह बताते हैं कि निबंध में प्राप्तांकों की रेंज बहुत व्यापक है। इसका अर्थ है कि एक ओर जहाँ यह प्रश्न-पत्र 50 अंक या उससे भी कम अंकों का स्कोर दे देता है, वहीं दूसरी ओर कुछ लोग इसमें 150 या उससे अधिक अंक भी प्राप्त कर पाते हैं। इस तरह यह 100 अंकों का गैप न केवल आपकी रैंक को प्रभावित करता है, बल्कि अंतिम रूप से आपके चयन को भी।
हालाँकि निबंध एक सब्जेक्टिव प्रकृति का प्रश्न-पत्र है और इसकी तैयारी करने का कोई रटा-रटाया फॉर्मूला नहीं हो सकता और इसके प्राप्तांकों को लेकर कोई सटीक भविष्यवाणी कर पाना भी उचित नहीं है लेकिन फिर भी कुछ ऐसी प्रविधियाँ, तकनीकें और तथ्य जरूर हो सकते हैं, जो निबंध के प्रश्न-पत्र में बेहतर प्रदर्शन का मार्ग न केवल प्रशस्त कर सकते हैं, बल्कि मेरी समझ में, कम-से-कम यह तो सुनिश्चित कर ही सकते हैं कि एक अभ्यर्थी को औसत से बेहतर अंक प्राप्त हों। मेरा विश्वास है कि निबंध की समुचित तैयारी और सटीक रणनीति से इस अति महत्त्वपूर्ण प्रश्न-पत्र का मजबूती से सामना कर इसमें बेहतर और उत्कृष्ट प्रदर्शन किया जा सकता है।
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सबसे पहले समझें कि संघ लोक सेवा आयोग की इस प्रश्न-पत्र में अभ्यर्थियों से क्या अपेक्षा है। आधिकारिक पाठ्यक्रम के अनुसार, ‘‘उम्मीदवारों को विविध विषयों पर निबंध लिखने होंगे। उनसे अपेक्षा की जाएगी कि वे निबंध के विषय पर ही केंद्रित रहें तथा अपने विचारों को सुनियोजित रूप से व्यक्त करें और संक्षेप में लिखें। प्रभावी और सटीक अभिव्यक्ति के लिए अंक प्रदान किए जाएँगे।’’
आइए, सबसे पहले निबंध के इस निर्धारित पाठ्यक्रम का अभिप्राय समझने की कोशिश करते हैं। उपर्युक्त पैरा में चार बिंदुओं पर बल दिया गया है।
1. विषय पर ही केंद्रित रहना।
2. विचारों को सुनियोजित रूप से व्यक्त करना।
3. संक्षेप में लिखना।
4. प्रभावी और सटीक अभिव्यक्ति।
निबंध के प्रश्न- पत्र की तैयारी के कुछ और भी महत्त्वपूर्ण बिंदु हो सकते हैं, लेकिन उपर्युक्त चार बिंदु निश्चित तौर पर बेहद महत्त्वपूर्ण हैं-
1. विषय पर ही केंद्रित रहना-
निबंध लेखन में बेहतर प्रदर्शन का मंत्र है विषय की मूल भावना से स्वयं को जोड़े रखना। समूचे निबंध का झुकाव निरंतर विषय की ओर बने रहना चाहिए और परीक्षक को ऐसा बिल्कुल भी प्रतीत नहीं होना चाहिए कि आप विषय से भटक गए हैं। प्रायः निबंध के विषय बहुत सामान्य, पर अमूर्त किस्म के होते हैं। यदि किसी विषय विशेष के सभी पहलुओं (सकारात्मक व नकारात्मक) को कवर करते हुए विचारों को व्यवस्थित ढंग से प्रस्तुत किया जाए तो अच्छे अंक हासिल करना कोई कठिन कार्य नहीं है।
2. विचारों को सुनियोजित रूप से व्यक्त करना-
दरअसल निबंध न केवल हमारी लेखन शैली का प्रतिबिंब है, बल्कि यह हमारे अब तक के अर्जित ज्ञान, अनुभव और चिंतन-प्रक्रिया का भी निचोड़ प्रस्तुत करता है। अगर हमारा सोचने का ढंग अव्यवस्थित और उलझाऊ होगा तो इसका प्रभाव हमारे निबंध पर भी पडे़गा।
बहुत से अभ्यर्थी विचारों की दृष्टि से बहुत समृद्ध और अनुभवी होते हैं; पर निबंध लिखते समय उन विचारों को क्रमबद्ध, सुनियोजित व व्यवस्थित तरीके से अभिव्यक्त नहीं कर पाते। ‘कहीं की ईंट, कहीं का रोड़ा’ की प्रवृत्ति से बचने की कोशिश करें। विचारों को सुनियोजित ढंग से व्यक्त करने के लिए एक संक्षिप्त रूपरेखा बना लेना बेहतर रहता है। इस रूपरेखा में आप विषय के विभिन्न संभावित पहलुओं के साथ-साथ कुछ प्रासंगिक उदाहरणों, उक्तियों, पंक्तियों को भी शामिल कर सकते हैं।
3. संक्षेप में लिखना-
कम लिखें, पर प्रभावी लिखें। ध्यान रखें, ‘अति’ हर चीज की बुरी होती है। चूँकि तीन घंटे के निर्धारित समय में दो निबंध लिखने होते हैं, अतः अब निर्धारित शब्द-सीमा का उल्लंघन करने से बचें। पैराग्राफ में लिखें और बहुत लंबे पैराग्राफ न बनाएँ। संक्षेप में लिखना और ‘कम शब्दों में अधिक कहना’ एक कला है और यह निबंध लेखन में ही नहीं, बल्कि अभिव्यक्ति के अन्य तरीकों, यथा—संवाद, भाषण, साक्षात्कार, परिचर्चाऔर व्याख्यान—सभी में काम आती है।
4. प्रभावी और सटीक अभिव्यक्ति-
अभिव्यक्ति एक अच्छे निबंध का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण पक्ष है। इस बिंदु पर हम विस्तार से चर्चा करेंगे। दरअसल उपर्युक्त तीनों बिंदुओं को समझकर निबंध लिखते समय उनका समावेश करना निबंध को प्रभावी और सटीक बनाता है।
आयोग द्वारा निर्धारित इन चारों बिंदुओं की कसौटी पर खरा उतरने के लिए इन बातों का ध्यान रखना आवश्यक है—
1. प्रवाह-
निबंध लेखन का सबसे आकर्षक पक्ष है,निबंध का प्रवाह (Flow)। यदि निबंध में एक सहज प्रवाह होगा तो परीक्षक की रुचि आरंभ से लेकर अंत तक उसमें बनी रहेगी और यह निश्चित तौर पर अंकदायी होगा। पर प्रश्न यह है कि आखिर निबंध लिखते समय प्रवाह कैसे बनाए रखें?
दरअसल, निबंध विचारों का व्यवस्थित, सुनियोजित और क्रमबद्ध प्रस्तुतीकरण है। लिहाजा, विचारों को व्यक्त करते समय उनके मध्य निहित अंतर्संबंध को पहचानने की कोशिश करें और सुनिश्चित करें कि यह अंतर्संबंध आपके निबंध में झलके।
जब एक पैराग्राफ का अंत होता है तो कोशिश करें कि अगले पैराग्राफ की शुरुआत पहले पैराग्राफ के अंत से जुड़ी हो, यानी दोनों में एक संबंध होना चाहिए। परीक्षक को ऐसा नहीं लगना चाहिए कि आप कहीं से भी, कुछ भी, अव्यवस्थित ढंग से लिखे जा रहे हैं। निबंध में यह प्रवाह निरंतर अभ्यास से विकसित किया जा सकता है।
2. संतुलित दृष्टिकोण/मध्यम मार्ग-
विचारधाराएँ और दृष्टिकोण सबके अलग-अलग हो सकते हैं, पर सत्य इन सभी विचारधाराओं के बीच में कहीं निहित होता है। अतः दो विपरीत ध्रुवों पर जाने के बजाय एक संतुलित और व्यावहारिक पक्ष लेना हमेशा बेहतर होता है, विशेषकर निष्कर्ष लिखते समय। बुद्ध का ‘मध्यम मार्ग’ यहाँ विशेष रूप से उपयोगी हो सकता है।
3. विषय वस्तु का व्यापक दायरा/सभी पहलुओं को कवर करना-
अभिव्यक्ति प्रभावी और सटीक हो सकती है, जब आपका कथ्य अच्छा और व्यापक हो। विचारों पर हावी संकीर्णता से बचते हुए कोशिश करें कि संतुलित दृष्टिकोण अपनाते हुए चीजों को समग्रता में देखें। इसके लिए निबंध के विषय में निहित विभिन्न पहलुओं/पक्षों को पहचानना और उन पर सुनियोजित ढंग से चर्चा करना निबंध को प्रभावी बना सकता है।
अकादमिक जगत् में यह युग ‘अंतर अनुशासनात्मक अध्ययन’ (Inter-disciplinery Studies) का है। ज्ञान के विभिन्न संकाय/विषय/अनुशासन परस्पर संबद्ध हैं। यह वैसा ही है जैसे हमारे सिविल सेवा पाठ्यक्रम में सामान्य अध्ययन के विभिन्न हिस्से आपस में जुडे़ हुए हैं।
ज्ञान के विभिन्न आयामों के बीच परस्पर जुड़ाव और इन सबकी एक-दूसरे को प्रभावित करने की ताकत को समझने के बाद हम पाते हैं कि निबंध दरअसल ‘विषय विशेष का उसके सभी प्रासंगिक पहलुओं को कवर करते हुए सुनियोजित व व्यवस्थित विस्तार’ है।
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निबंध की विषय-वस्तु के दायरे को व्यापक करने और इसके सुनियोजित विस्तार के लिए इसके विभिन्न पहलुओं को समझना जरूरी है। किसी भी विषय विशेष के कुछ संभावित पहलू (अनिवार्य तौर पर नहीं) इस प्रकार हो सकते हैं—
1. सामाजिक —(Social)
2. सांस्कृतिक/साहित्यिक —(Cultural/literary)
3. आर्थिक—(Economic)
4. राजनीतिक/प्रशासनिक/प्रबंधकीय—(Political/Administration/Managerial)
5. दार्शनिक—(Philosophical)
6. धार्मिक/आध्यात्मिक—(Religious/spiritual)
7. वैज्ञानिक/तकनीकी—(Scientific/Technical)
8. ऐतिहासिक—(Historical)
9. भौगोलिक—(Geographical)
10. कूटनीतिक—(Diplomatic)
11. जनसांख्यिकीय—(Demographic)
12. पर्यावरणीय/पारिस्थितिकीय—(Environmental/Ecological)
13. लैंगिक-आदि—(Gender Based)
इस सूची को अपने मानस-पटल पर रखकर विषय के विभिन्न पक्षों को सुव्यवस्थित तरीके से उभारा जा सकता है।
4.भूमिका और निष्कर्ष-
भूमिका और निष्कर्ष लिखने के तरीके को लेकर बहुत सी ऊहापोह और उलझनें होती हैं। दरअसल भूमिका लिखने का कोई तय फॉर्मूला न तो है और न ही होना चाहिए। भूमिका लेखन में मौलिकता जरूरी है। कुछ लोग किसी उक्ति/उद्धरण से शुरुआत करते हैं तो कुछ लोग किसी कहानी से। कुछ विषय की पृष्ठभूमि से शुरुआत करते हैं तो कुछ विषय की आधारभूत जानकारी से। आप इनमें से या इनके अतिरिक्त कोई भी तरीका अपना सकते हैं। बस, इतना अवश्य सुनिश्चित करें कि भूमिका दूरदर्शी (Visionary) और प्रभावी (effective) हो।
भूमिका लिखने के बाद निबंध के विषय का विस्तार करते हुए निरंतर प्रवाह बनाए रखें। अंत में निष्कर्ष लिखना न भूलें। निष्कर्ष लिखने के भी अनेक ढंग हो सकते हैं, पर कोशिश करें कि ‘अतिवाद’ से बचते हुए संतुलित व विनम्र राय रखें। अतिशय भावुकता या उग्रता से लाभ मिलना संदिग्ध ही होता है। यदि संभव हो तो सकारात्मक नजरिया अपनाते हुए आशावादी बने रहें और निराशापूर्ण निष्कर्ष लिखने से बचें। कोशिश करें कि निष्कर्ष में टॉपिक का निचोड़ आ जाए।
5.लेखन शैली व प्रस्तुतीकरण-
‘भोजन कैसा बना है’ और ‘कैसे परोसा गया है’—ये दो अलग-अलग बातें हैं। अगर स्वादिष्ट भोजन को अच्छे ढंग से परोस भी दिया जाए तो सोने पर सुहागा हो जाता है। यदि आपके विचार, तथ्य और तर्क श्रेष्ठ व प्रभावी हैं तो उनका प्रस्तुतीकरण भी प्रभावी होना चाहिए। यद्यपि आयोग की परीक्षा में ‘पठनीय हस्तलिपि’ (Legible Hand-writing) को छोड़कर प्रस्तुतीकरण की शैली को लेकर स्पष्ट तौर पर कुछ नहीं कहा गया है; पर फिर भी मेरी समझ में यदि निम्नलिखित बातों का ध्यान रखा जाए तो प्रस्तुतीकरण को बेहतर बनाया जा सकता है—
*पैराग्राफ बनाकर लिखें- पैराग्राफ ज्यादा बड़े न हों। उत्तर-पुस्तिका के एक पृष्ठ पर दो से तीन पैराग्राफ होना अच्छा प्रभाव छोड़ता है।
*अशुद्धियों से बचें-व्याकरण की अशुद्धियाँ परीक्षक पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकती हैं। अतः सामान्यतः भाषा की इन त्रुटियों से बचें और वर्तनी का ध्यान रखें।व्याकरणिक शुद्धता का अभिप्राय ‘शुद्ध हिंदी का प्रयोग’ नहीं है। सरल और सहज हिंदी का प्रयोग करें। आम बोल-चाल के शब्द प्रवाह बनाए रखने में सहायता ही करते हैं; पर ध्यान रखें कि कोई शब्द जान-बूझकर थोपा हुआ न लगे। जहाँ तक तकनीकी/पारिभाषिक शब्दों के प्रयोग का प्रश्न है, तो जरूरत पड़ने पर ऐसा कर सकते हैं। भाषा के प्रयोग के दौरान हमेशा ध्यान रखें कि भाषा यांत्रिक या कृत्रिम न होकर सहज और नैसर्गिक होनी चाहिए।
*हस्तलिपि (Hand writing)-हस्तलिपि (Hand writing) को लेकर कई अभ्यर्थी चिंतित रहते हैं। इसमें कोई संदेह नहीं है कि अच्छी हैंड राइटिंग प्रस्तुतीकरण में चार चाँद लगा देती है और इसका परीक्षक के मनोविज्ञान पर सकारात्मक असर पड़ता है, पर यह असर कमोबेश थोड़ा ही होता है। यथासंभव स्वच्छ और स्पष्ट लिखें। पठनीयता बनी रहे और परीक्षक को निबंध पढ़ने के लिए अत्यधिक श्रम न करना पड़े।
*महत्त्वपूर्ण बात को रेखांकित करें-यदि उचित समझें तो किसी महत्त्वपूर्ण बात को रेखांकित (Underline) कर सकते हैं।
*सूक्तियों/कथनों/उद्धरणों का प्रयोग-सूक्तियों/कथनों/उद्धरणों का प्रयोग करें या नहीं, करें तो कितना करें, ये कुछ प्रासंगिक प्रश्न हैं। मुझे लगता है कि यदि किसी महापुरुष/विचारक/दार्शनिक की उक्ति विषय के अनुरूप है तो उसका प्रयोग बेझिझक किया जा सकता है। हो सके तो निबंध की रूपरेखा बनाते समय इन सूक्तियों को भी लिख लें। सूक्तियों का प्रयोग प्रसंगानुकूल और सहज होना चाहिए। सूक्ति निबंध के विषय से मेल खाती हो और थोपी हुई न लगे। विवादास्पद कथनों को उद्धृत करने से बचें और प्रवाह बनाए रखें।
*गुणात्मक सामग्री (content) का प्रयोग-जितना गुड़ डालें, उतना ही मीठा होता है। अच्छी और स्तरीय विषय सामग्री निबंध को उत्कृष्ट बनाने में सहायता करती है। अतः भूलकर भी वैचारिक संकीर्णता या हलकापन प्रदर्शित न होने दें। जैसे-
1. आपके लेखन में व्यक्त विचारों से जातिवाद, क्षेत्रवाद, भाषावाद और सांप्रदायिकता की गंध नहीं आनी चाहिए।
2. यद्यपि बहुत से विचारकों/महापुरुषों के जीवन-दर्शन और कथनों को उद्धृत किया जा सकता है; पर कुछ सर्वमान्य विचारकों, यथा—अरस्तू, सुकरात, प्लेटो, बुद्ध, महावीर, गुरु नानक, कबीर, रैदास, तुलसी, गांधी, नेहरू, टैगोर, अंबेडकर, विवेकानंद, अरविंदो आदि को उद्धृत करना सामग्री की गुणवत्ता को बढ़ाता है। धर्म, दर्शन, अध्यात्म तक ही सीमित न रहकर इतिहास, भाषा, साहित्य, मनोविज्ञान, राजनीति-शास्त्र, समाज-शास्त्र, विज्ञान, प्रौद्योगिकी, प्रबंधन-विधि, प्रशासन आदि विभिन्न क्षेत्रों के भारतीय व पाश्चात्य जगत् के श्रेष्ठ विद्वानों को प्रसंगानुकूल उद्धृत किया जा सकता है।
भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के मूल्य व आदर्श और भारतीय संविधान का दर्शन हमेशा हमारे पथ-प्रदर्शक और प्रेरणा-स्रोत हैं। प्रसंग के अनुरूप भारतीय संविधान की उद्देशिका (preamble), मूल कर्तव्य, राज्य-नीति के निर्देशक तत्त्वों और मूल अधिकारों का संदर्भ लिया जा सकता है।
3. आवश्यकतानुसार अपनी बात की पुष्टि के लिए तथ्यों व आँकड़ों का सहारा लेना बेहतर विकल्प है; पर यह इतना अधिक न हो कि निबंध की सहजता और प्रवाह टूटने लगे।
4. जहाँ तक सरकार की नीतियों की आलोचना का प्रश्न है, मुझे लगता है कि कोरी आलोचना करना किसी समस्या का समाधान नहीं हो सकता। शिव खेड़ा का एक प्रसिद्ध कथन है, ‘‘अगर हम समाधान का हिस्सा नहीं हैं तो हम स्वयं ही समस्या हैं।’’
अतः इस संबंध में मेरी यही राय है कि कल्याणकारी राज्य नागरिकों की बेहतरी के लिए ही योजनाएँ और कार्यक्रम बनाता है; पर उनमें सुधार की गुंजाइश हमेशा बनी रहती है। लिहाजा, शिकायती और विघ्न-संतोषी प्रवृत्ति से बचें और सकारात्मक रवैए से चीजों को ग्रहण करें।
*विषय चयन
निबंध के सही विषय का चयन आधी जंग जिता सकता है। अंग्रेजी में एक कहावत है-‘well begun is half done.’ अगर विषय चुन लिया जाए तो उस पर एक अच्छा निबंध लिखे जाने की संभावना कहीं अधिक बढ़ जाती है। अतः विषय चुनते समय इन बातों का ध्यान रखें-
1. जिस विषय के प्र्रति आपकी नजदीकी अधिक हो, उसे चुनना हमेशा बेहतर होता है। जैसे मीडिया पर अपनी ठीक-ठाक समझ होने के चलते मैंने अपनी परीक्षा में ‘क्या स्टिंग ऑपरेशन निजता पर प्रहार है?’ विषय चुना था। साहित्य, दर्शन, भूगोल, विज्ञान, संस्कृति, इतिहास आदि विभिन्न क्षेत्रों की अच्छी समझ रखनेवाले अभ्यर्थी अपनी समझ और जागरूकता के क्षेत्र का चुनाव कर सकते हैं।
2. जिस विषय पर आपके पास पर्याप्त सामग्री और उसकी पुष्टि हेतु तर्क उपलब्ध हों, उसे प्राथमिकता दें। यदि निबंध लेखन के अभ्यास के दौरान जिस विषय पर कभी निबंध लिखा हो और उससे मिलता-जुलता निबंध ही परीक्षा में आ जाए तो उसे चुना जा सकता है।
अगर इन सभी बातों का ध्यान रखें, तो निश्चित रूप से आप UPSC सिविल सेवा मुख्य परीक्षा में निबंध में पेपर में औसत से अधिक अंक पाकर उत्कृष्ट प्रदर्शन कर सकते हैं।
(निशान्त जैन 2015 बैच के IAS अधिकारी हैं। वह सिविल सेवा परीक्षा-2014 में 13वीं रैंक हासिल कर हिन्दी माध्यम के टॉपर बने थे। उन्होंने सिविल सेवा परीक्षा की रणनीति पर ‘मुझे बनना है UPSC टॉपर’और निबंध के पेपर के लिए ‘सिविल सेवा परीक्षा में निबंध’ नाम की दो लोकप्रिय किताबें लिखी हैं। लेख में व्यक्त विचार उनके निजी विचार हैं।)
लेखक- निशांत जैन (IAS, 2015 बैच)
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