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कोविड-19 के इलाज में प्लाज़्मा थेरेपी का क्या है रोल? जानिए डॉक्टर की राय

द बेटर इंडिया ने कोरोना से संक्रमित मरीजों की मदद करने के लिए ‘प्लाज़्मा डोनर रजिस्ट्रेशन‘ अभियान शुरू किया है। Blood Plasma Therapy कोविड-19 मरीजों को वेंटिलेटर पर जाने से रोकने में मदद कर सकती है। साथ ही, Plasma Therapy कोरोना वायरस द्वारा संक्रमित लोगों के लिए, एक निश्चित समय सीमा में सहायक साबित हो सकती है।

जो लोग इस मुहिम के लिए ऑनलाइन साइन-अप करेंगे, हम उनकी सारी जानकारियां वेरीफाई करेंगे। साथ ही, हम उनकी उपलब्धता और उनके क्षेत्र को आपसे साझा करेंगे। ताकि, ज़रूरतमंद लोगों को जल्द से जल्द मदद मिल सके। यदि आप, या आपके कोई परिचित कोविड-19 से ठीक हो चुके हैं और नीचे दिए मापदंडों को पूरा करते हैं, तो कृपया साइन-अप करें।

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भारत कोरोना वायरस की दूसरी लहर की चपेट में है। इन दिनों, आपको सोशल मीडिया पर कोविड-19 मरीजों के लिए ऐसे बहुत से पोस्ट दिख रहे होंगे, जिनमें ब्लड प्लाज़्मा की मांग की जा रही है। अपर्याप्त ऑक्सीजन टैंक, रेमेडिसिवर इंजेक्शन, बेड और वेंटिलेटर की कमी के कारण, लोग अपने और अपने परिजनों के Plasma Therapy से ठीक हो जाने की उम्मीद लगा रहे हैं।

चूंकि भारत इस गंभीर संकट से जूझ रहा है, इसलिए प्लाज़्मा के प्रभाव के बारे में भ्रम अभी भी बना हुआ है। पिछले एक साल में, Plasma Therapy को लेकर हुए अध्ययनों और चिकित्सा क्षेत्र से जुड़े लोगों की इस बारे में बहुत अलग-अलग राय है। उदाहरण के लिए, भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) ने इसके बेहिसाब उपयोग के खिलाफ चेतावनी दी है। लेकिन उसी शोध में यह बताया गया है कि यदि रोगी को शुरुआती तीन से सात दिनों के भीतर Plasma Therapy दी जाये, तो यह कारगर हो सकती है। वहीं, medRxiv की एक रिपोर्ट के अनुसार, कॉन्वैलेसेंट प्लाज़्मा (CP) या ​​प्लाज़्मा थेरेपी, मरीजों के अस्पताल में रहने के समय को कम करने और निम्न ब्लड ऑक्सीजन लेवल के सुधार में प्रभावी थी।

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कोविड-19 से ठीक हो चुके लोगों की इम्यूनिटी सिस्टम में नई एंटीबॉडीज बनती हैं, जो वायरस से लड़ सकते हैं। धीरे-धीरे, ये एंटीबॉडीज विकसित होकर प्लाज़्मा में भी पहुँच जाती हैं। प्लाज़्मा हमारे रक्त का एक तरल हिस्सा है। भारत सहित कई देशों में, कोविड-19 से मरीजों को बचाने के लिए, डॉक्टर Plasma Therapy का उपयोग कर रहे हैं। क्योंकि, इस वायरस से लड़ने का अब तक कोई सक्षम इलाज नहीं मिला है। 

यह समझने के लिए कि ‘प्लाज़्मा थेरेपी’ इलाज का महत्वपूर्ण तरीका होना चाहिए या नहीं, इस बारे में द बेटर इंडिया ने चार डॉक्टरों से बात की। 

‘प्लाज़्मा देना न छोड़ें’

साल 2020 से, डॉ. विशाल राव ने एक हजार से अधिक मरीजों को Plasma Therapy प्रिसक्राईब की है, जिनमें से 60% लोग इस थेरेपी से लाभान्वित हुए हैं।

नीचे दिए गए वीडियो में, वह बता रहे हैं कि प्लाज़्मा डोनेशन को लेकर, चिकित्सा क्षेत्र से जुड़े लोगों की राय अलग-अलग क्यों है? इसके अलावा, वह एंटीबॉडीज की महत्वपूर्ण भूमिका और मरीजों को प्लाज़्मा थेरेपी देने के सही समय या स्टेज के बारे में भी बता रहे हैं।

यहाँ देखें:

यह पूछे जाने पर कि भारत, सफलतापूर्वक कॉन्वैलेसेंट प्लाज़्मा (CP) आधारित चिकित्सा को कैसे अपना सकता है, वह कहते हैं, “सबसे पहले, प्रत्येक राज्य को एक मानक प्रोटोकॉल (SOP) स्थापित करना चाहिए और एक प्लाज़्मा बैंक की स्थापना करनी चाहिए। संक्रमण से उबरने वाले प्रत्येक व्यक्ति को आगे आकर, एंटीबॉडीज के स्तर का परीक्षण करवाना चाहिए। ऐसे लोग जो प्लाज़्मा दान कर सकते हैं, उनके लिए एक सरल जागरूकता कार्यक्रम लॉन्च किया जाना चाहिए। ताकि उन्हें प्लाज़्मा के दान और उसके महत्त्व के बारे में जागरूक किया जा सके। साथ ही, उन्हें यह भी समझाया जा सके कि उनकी एक कोशिश न सिर्फ किसी की जान बचा सकती है, बल्कि वे प्लाज़्मा वॉरियर बनकर बाकी लोगों को भी प्रेरित कर सकते हैं। प्रत्येक प्लाज़्मा डोनर तीन जिंदगियां बचा सकता है, जो मानवता की एक महान सेवा है।”

एचसीजी अस्पताल द्वारा पिछले साल एक टोल-फ्री नंबर शुरू किया गया था, जिससे लोगों को प्लाज़्मा प्राप्त करने में मदद मिली। डॉ. विशाल के नेतृत्व में उनकी टीम ने जरूरतमंदों के कॉल का जवाब देने, प्लाज़्मा मशीन चलाने से लेकर मरीज़ों को प्रेरित करने तक, सब कुछ संभाला। इस टीम में उनके साथ, डॉ. आशीष, डॉ. सचिन जाधव और डॉ. शालिनी ठाकुर शामिल थीं।

‘सही समय है जरूरी’

डॉ. ओम के अनुसार, यदि उचित समय पर Plasma Therapy दी जाए, तो कोविड​​-19 से संक्रमित मरीज के ठीक होने की 80% तक उम्मीद होती है। वह कहते हैं, “पिछले साल हमने देशभर में एक ‘प्लेटिना परीक्षण’ किया था, जिसके अंतर्गत हमने यह जानने की कोशिश की, कि क्या प्लाज़्मा वाकई प्रभावी ढंग से काम करता है। हालांकि, इस दौरान केवल गंभीर मरीजों के नमूनों के आधार पर ही परिक्षण किया गया था, जिनका सैचुरेशन स्तर या तो बहुत ज्यादा था या वे वेंटिलेटर पर थे। हमने महसूस किया कि बेहतर परिणाम प्राप्त करने के लिए, इस प्रक्रिया को जल्दी शुरू करने और इसमें सुधार करने की जरूरत है।”

डॉ. ओम मरीजों की Plasma Therapy से इलाज के अपने अनुभवों को साझा करते हुए, बता रहे हैं कि वर्तमान स्थिति में भारत में प्लाज़्मा दान करने की कितनी जरूरत है।

यहां देखे:

फोर्टिस अस्पताल वसंत कुंज के पल्मनॉलॉजी के वरिष्ठ सलाहकार, डॉ. भरत गोपाल भी इलाज के समय पर जोर देते हैं। वह कहते हैं, “कॉन्वैलेसेंट प्लाज़्मा एक ऐसी थेरेपी है, जिसमें कोविड-19 से ठीक हो चुके व्यक्ति के ब्लड से एंटीबॉडीज, किसी नए मरीज के ब्लड में ट्रांसफर की जाती हैं। वैसे तो, इस थेरेपी के बारे में चिकित्सा समुदाय से जुड़े लोगों की अलग-अलग राय है, लेकिन मरीज को प्लाज़्मा कब दिया जाए, इस प्रक्रिया में समय का ध्यान रखना भी बहुत जरूरी है।” 

वह बताते हैं, “अगर मरीज की हालत बिगड़ने से पहले प्लाज़्मा थेरेपी दी जाए, तो यह बेहतर काम कर सकती है। लेकिन, यहां सही मरीज का चयन करना भी एक महत्वपूर्ण कार्य है। इसके अलावा, हाई टाईट्रे न्यूट्रलाइजिंग एंटीबॉडीज वाले प्लाज़्मा के भी बेहतर परिणाम हो सकते हैं। इसलिए इलाज में अच्छे परिणाम तथा सफलता प्राप्त करने के लिए, सही रोगी का चयन, सही समय और अच्छी गुणवत्ता वाले प्लाज़्मा डोनर का होना बहुत जरूरी है।”

‘अंतिम उपाय होना चाहिए प्लाज़्मा थेरेपी’

पिछले कुछ महीनों में, डॉ. प्रीतम से बहुत से मरीजों के परिजनों ने अपील की है कि वे मरीजों के इलाज के लिए प्लाज़्मा थेरेपी का उपयोग करें। लेकिन डॉ. प्रीतम के हिसाब से प्लाज़्मा थेरेपी ‘आखिरी तरीका’ होना चाहिए। हालांकि, उनके पास आने वाले ऐसे मरीज जो मध्यम केटेगरी तक में हैं, उनके लिए इस थेरेपी का इस्तेमाल करने से उन्होंने मना नहीं किया है। 

डॉ. प्रीतम कहते हैं, “अब तक ऐसा कोई ठोस सबुत नहीं मिला है, जो यह दर्शाता हो कि प्लाज़्मा थेरेपी कारगर है या नहीं। महाराष्ट्र सरकार के अनुसार, मरीजों का इलाज करने के प्रोटोकॉल में रेमेडेसिविर और ऑक्सीजन थेरेपी शामिल हैं, लेकिन प्लाज़्मा थेरेपी नहीं है। इसलिए, मैंने प्लाज़्मा थेरेपी का उपयोग सिर्फ तब किया, जब रेमेडेसिविर, ऑक्सीजन थेरेपी और रक्त को पतला करने वाली दवाइयां उपलब्ध नहीं थीं। लेकिन मेरे अनुभव से, जिन मरीजों को प्लाज़्मा दिया गया, वे बेहतर नहीं हुए।”

वह आगे कहते हैं, “संक्रमण के दो फेज (चरण) हैं। प्लाज़्मा देने का सबसे सही समय, मरीज की पहली स्टेज है। जिसका मतलब है- वायरल फेज, जब वायरस शरीर में एक्टिव होता है। लेकिन, अगर एक बार मरीज के शरीर में साइटोकाइन स्टॉर्म (cytokine storm) या सूजन शुरू हो गयी हो, तो प्लाज़्मा थेरेपी काम नहीं करेगी।” 

कोविड-19 के इलाज में प्लाज़्मा थेरेपी कारगर है या नहीं, इस पर सभी की एक राय बनने में अभी शायद और समय लगे। इसलिए सलाह यही है कि आप अपने डॉक्टर के दिशा-निर्देशों का पालन करें। एक्सपर्ट्स का अब भी यही कहना है कि सभी मरीजों को प्लाज़्मा थेरेपी नहीं दी जा सकती है। जैसे- जो मरीज वेंटीलेटर पर हैं या जिन्हें मल्टी-ऑर्गन फेलियर हुआ है, ऐसे मरीजों पर Plasma Therapy काम नहीं करेगी। 

मूल लेख: गोपी करेलिया 

संपादन- जी एन झा

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