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‘मिट्टी का घर हमेशा कच्चा नहीं होता’ राजस्थान के इस फार्म हाउस को देखकर आपको यकीन हो जाएगा

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राजस्थान के चित्तौड़गढ़ की शोभा बढ़ाने वालीं शहद रंग की इमारतों और हवेलियों के बीच, एक घर ऐसा है जो पोस्टकार्ड में छपी किसी तस्वीर जैसा दिखता है। यह मिट्टी का घर अपनी सुंदरता से आस-पास से गुज़रने वालों का ध्यान अपनी तरफ़ खींचता है।  इसे देखकर कोई यह भी अनुमान लगा सकता है कि इस फार्महाउस को बनाने में सबसे अच्छे रॉ मटेरियल्स का इस्तेमाल किया गया है। लेकिन शून्य स्टूडियो की फाउंडर और आर्किटेक्ट, श्रेया श्रीवास्तव कुछ और ही बताती हैं। 

26 वर्षीय श्रेया ने द बेटर इंडिया को बताया, “जब इस ख़ास प्रोजेक्ट के लिए संपर्क किया गया, तब मुझसे कुछ ऐसा बनाने के लिए कहा गया जो सुविधाजनक होने के साथ-साथ राजस्थान की विरासत को भी दर्शाए।” 

The Jain family outside their sustainable home

वह आगे कहती हैं कि उनका पूरा फ़ोकस होता है कि हमेशा ज़ीरो एनर्जी बिल्डिंग डिज़ाइन करें। इसलिए वह इस चैलेंजिंग प्रोजेक्ट पर काम करने के लिए उत्साहित थीं, क्योंकि इसे सुविधा के साथ-साथ टिकाऊ भी बनाना था।

एक आर्किटेक्ट के तौर पर काम करते हुए, श्रेया को सालों से इस बात का चयन करने में मुश्किल होती थी कि वह आज के ज़माने के हिसाब से मॉडर्न और स्टाइलिश डिज़ाइन बनाएं या अपने मूल्यों और पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए इको-फ्रेंडली बिल्डिंग बनाएं। 

वह कहती हैं, “मुझे एहसास था कि कैसे सीमेंट सेक्टर प्रदूषण बढ़ाने का तीसरा सबसे बड़ा कारण है। मैंने और मेरे क्लाइंट ने मिलकर यह फैसला किया कि हम कम से कम लागत में बेहद सुंदर दिखने वाला फार्महाउस बनाएंगे।”

क्लाइंट, रौनक जैन चित्तौड़गढ़ के रहने वाले हैं और एक कंस्ट्रक्शन कंपनी के डायरेक्टर हैं। उन्होंने अपनी एक एकड़ की साइट पर श्रेया से 5500 स्क्वायर फ़ीट पर फार्महाउस बनाने के लिए संपर्क किया था। 

यह मिट्टी का घर क्यों है ख़ास?

श्रेया कहती हैं, “मिट्टी के घर को आमतौर पर कच्चा माना जाता है।” इसी धारणा वह इस प्रोजेक्ट के ज़रिए गलत साबित करना चाहती थीं। 

सबसे पहले उन्होंने बिल्डिंग बनाने में लोकल माल का इस्तेमाल करने के लिए स्थानीय ठेकेदारों और मिस्त्री को काम पर रखा।

दीवारों के बारे में बात करते हुए श्रेया बताती हैं कि इन्हें चूने के प्लास्टर का इस्तेमाल करके बनाया गया है। वह आगे कहती हैं, “हमें मिट्टी का घर चाहिए था। इसके लिए हमारे पास एक आरसीसी (रेनफोर्स्ड सीमेंट कंक्रीट) से बना स्ट्रक्चर मौजूद है जो 80 प्रतिशत मिट्टी होता है।”

वह बताती हैं कि चूने का प्लास्टर समय के साथ मज़बूत और बेहतर होता है। इसमें इस्तेमाल होने वाले मटेरियल, घर में मौजूद हवा को शुद्ध करते हैं और ह्यूमिडिटी लेवल को भी मेंटेन रखते हैं।  

श्रेया कहती हैं, “दीवारों की सुंदरता के साथ-साथ, उनपर बनी पेंटिंग्स की भी तारीफ़ किए बिना आप रह नहीं पाएंगे। इन्हें दिल्ली के गुरु गोबिंद सिंह इंद्रप्रस्थ यूनिवर्सिटी के छात्रों ने बनाया है और यह देश के युवाओं की कला और उनके टैलेंट को बढ़ावा देने का एक तरीक़ा है।”

फर्नीचर में की गई कलाकारी भी काफ़ी खूबसूरत है। वह बताती हैं, “फर्नीचर के सारे सामान को यहीं साइट पर ही, मिट्टी, पत्थर और ईंट से बनाया गया और फिर चूने के प्लास्टर का इस्तेमाल करके तैयार किया गया है। इनमें इस्तेमाल किये गए कुछ टुकड़े जोधपुर की हवेलियों से मंगवाए गए हैं।” 

राजस्थान की संस्कृति को ध्यान में रखते हुए, फ़र्श को भी जैसलमेर पत्थर, उदयपुर पत्थर, कडप्पा पत्थर और निम्बारा पत्थर से बनाया गया है, जो खड़े रहने या चलते समय आपके पैर को ठंडा रखते हैं। डाइनिंग एरिया में एक पुरानी जोधपुर हवेली से मंगवाई गई खूबसूरत टेबल सजाई गई है। 

लेकिन जो चीज़ इस घर को सबसे अलग बनाती है, वह है कुछ दीवारों पर इस्तेमाल की गई अरिश तकनीक। 

श्रेया बताती हैं, “अरिश, चूने के प्लास्टर की कई परतों पर लगाया जाने वाला एक फिनिश है। यह दीवार पर दिखता नहीं है, लेकिन उसे मार्बल जैसी एक चिकनी फिनिश देता है।” 

वह आगे बताती हैं कि अरिश कास्टिक चूने, ईंट पाउडर, जूट फाइबर, गुड़, मेथी का पानी, मार्बल की धूल और रेत से बनता है।

“चूने के झरझरे होने की वजह से यह नमी को घर के अंदर से बाहर की ओर, और इसी तरह बाहर से अंदर आने-जाने देता है और इससे घर में हमेशा एक आरामदायक तापमान बना रहता है। इसमें एक और चीज़ जो घर को ठंडा रखने में मदद करती है, वह है फूस से बनी छत। यह घर के डिज़ाइन को एक राजस्थानी लुक भी देती है।”

मिट्टी का घर: पर्यावरण और तकनीक का मिश्रण

हर शाम, जैन परिवार के सभी सदस्य एक साथ बैठते हैं और अपने घर के प्राकृतिक माहौल का लुत्फ़ उठाते हुए एक-दूसरे के साथ समय बिताते हैं। वे कहते हैं कि फार्महाउस बनाने के पीछे यही वजह थी कि वे प्रकृति के बीच रहकर इसका अनुभव कर सकें। 

इसलिए, जब उन्होंने अपना घर बनाने के लिए श्रेया से संपर्क किया, तो यह अनुरोध किया कि इसे ज़्यादा से ज़्यादा प्राकृतिक तकनीक से बनाएं ताकि बिजली, लाइट्स और बाकी गैजेट्स का यहाँ कम से कम इस्तेमाल हो। 

श्रेया भी यह काम करने के लिए काफ़ी उत्साहित थीं। 

वह बताती हैं कि इस काम को पूरा करने के लिए उन्होंने निर्माण की नई तकनीकों का इस्तेमाल किया।  

वह कहती हैं, “कमरों में ऊंचाई पर क्लेस्टोरी खिड़कियां बनी हैं, जिससे कमरे में हर तरफ अच्छी तरह रोशनी आती है। ऊंची छत की वजह से कमरे ज़्यादा ठंडे रहते हैं और एक संतुलित तापमान बना रहता है।”

वह आगे कहती हैं, “दीवारें जितनी मोटी होती हैं, उनका थर्मल मास उतना ही हाई होता है; जिससे घर गर्मियों में ठंडा और सर्दी में गर्म रहता है।” 

जब श्रेया विस्तार में इस डिज़ाइन और इसे बनाने के तरीक़े के बारे में बताती हैं, यह साफ हो जाता है कि गर्म तापमान और शुष्क मौसम वाले प्रदेश में एक सस्टेनेबल और ग्रीन होम बनाना, और इस पूरी प्रक्रिया में छोटी-छोटी बातों का ध्यान रखना कितना मुश्किल है।  

किचन गार्डन और सोलर पैनल से लैस

अपनी ऊर्जा की 50 प्रतिशत ज़रूरतों को पूरा करने के लिए जैन परिवार ने 330 W के छह सोलर पैनल भी अपने प्लॉट में लगवाए हैं। इसके आल्वा, घर के चारों ओर फैले हरे रंग के कालीन से और ज़्यादा ठंडक रहती है। श्रेया बताती हैं कि पूरी साइट का केवल 20 प्रतिशत हिस्सा ही पक्का बना हुआ है। यह एक सोचा-समझा फैसला है, जिससे ज़्यादा से ज़्यादा पानी का रिसाव हो और ग्राउंडवॉटर लेवल बना रहे। 

घर में 400 वर्ग फुट का एक किचन गार्डन भी है जहाँ यह परिवार लौकी, प्याज, आलू, बैगन, भिंडी जैसी सब्जियां उगाता है। 

मिट्टी का घर बनाने में सबसे बड़ी मुश्किल क्या है?

यह इको-फ्रेंडली फार्महाउस अक्टूबर 2020 में बनना शुरू हुआ और अप्रैल 2022 में तैयार हो गया। इससे न सिर्फ़ श्रेया का सपना पूरा हुआ, बल्कि जैन परिवार को भी अपने सपनों का घर मिल गया। 

रौनक बताते हैं, “इस ग्रीन होम को बनाने की प्रेरणा हमें राजस्थान के एक बुटीक होटल को देखकर मिली। हमने तुरंत ऐसा ही कुछ इको-फ्रेंडली बनाने का फैसला कर लिया था। हम कुछ ऐसा डिज़ाइन बनाना चाहते थे जो प्रकृति के क़रीब हो और जिसमें रॉयल्टी भी झलके। और आखिर हमारा यह सपना पूरा हो गया।”  

वह आगे कहते हैं कि हफ़्ते में कम से कम तीन दिन पूरा परिवार फार्महाउस पर बिताता है। ये दिन उनके लिए काफ़ी सुकून भरे होते हैं और ऐसा लगता है कि वे किसी जन्नत में रह रहे हैं।

वहीं, श्रेया इस प्रोजेक्ट से जुड़कर और इसे पूरा करके काफ़ी खुश हैं। 

इस पूरे काम के दौरान आने वाली सबसे बड़ी मुश्किल के बारे में बात करते हुए वह कहती हैं, “मैं मानती हूँ कि पुरानी तकनीकें और प्राकृतिक चीज़ें तभी फ़ायदेमंद होते हैं, जब उनका इस्तेमाल सही तरीक़े से किया जाए।”

जितने भी लोग सस्टेनेबल और ग्रीन होम के बारे में सोचते हैं और बनाना चाहते हैं, उनको वह यह राय देती हैं कि, बाज़ार में दिखने वाले मॉडर्न और आकर्षक तकनीकों के झांसे में न आएं और अपने प्लान पर पूरी तरह भरोसा करें।  

“बाज़ार में कई चीज़ें हैं जो सस्टेनेबल होने का दावा करती हैं, लेकिन होती नहीं। इसलिए अपने प्रोजेक्ट के लिए हमने बहुत सोच-समझकर, ज़्यादा चीज़ों पर भरोसा न करते हुए, अपने आस-पास मौजूद लोकल चीज़ों का ही इस्तेमाल किया।”

इससे आने-जाने और दूर-दराज से सामान मंगवाने में लगने वाले पेट्रोल और एनर्जी भी कम ख़र्च हुए। 

वह कहती हैं, “मक़सद हमेशा यही है कि हम पर्यावरण और पृथ्वी को ज़्यादा से ज़्यादा सुरक्षित रखें। यह ग्रीन होम इस बात का उदाहरण है कि आपको सुविधा और स्थिरता के बीच किसी एक को चुनने की ज़रुरत नहीं है।” 

आप भी अपना ऐसा घर बनाना चाहते हैं तो, इससे जुड़े सवालों और परामर्श के लिए, श्रेया से यहां संपर्क कर सकते हैं।

मूल लेख: By Krystelle Dsouza

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