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शहर के बीच लेकिन भाग-दौड़ से दूर, बिल्कुल घर वाला सुकून देता है खुशियों का यह कैफ़े

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शहर में रहना चुनौती भरा हो सकता है, कभी न ख़त्म होने वाला ट्रैफिक जाम, शोर-शराबा, भीड़, हर तरफ़ खड़ी कंक्रीट और ग्लास की इमारतें और भाग-दौड़ में हम ज़िंदगी गुज़ारने की कोशिश करते हैं। इन सबके बीच एक छोटा सा ब्रेक लेकर, एक बदली हवा में सांस लेने की ख़्वाहिश करने में कुछ ग़लत नहीं है और यहा अनुभव हैप्पीनेस कैफ़े में मिल जाएगा।

ज़रा सोचिए अगर ऐसे में बंगलुरु जैसे शहर में ही कोई ऐसी जगह हो, जहाँ आप सुकून के दो पल बिता सकें, तो कितना अच्छा हो न! लोगों की इसी ज़रूरत को देखते हुए खुला है शहर का पहला सस्टेनेबल कैफ़े कम हॉस्टल, जिसका नाम है ‘हैप्पीनेस कैफ़े’। यहाँ 100% प्लांट बेस्ड और टेस्टी खाने का स्वाद तो मिलता ही है, इसके अलावा यहां प्रकृति के करीब रहने का एहसास मेहमानों को कुछ दिन यहाँ के ‘बी ऐनिमल’ हॉस्टल में ही ठहरने पर मजबूर कर देता है।

क्यों शुरू हुआ हैप्पीनेस कैफ़े?

30 साल के लक्ष्मण बादामी और 26 साल की वैनेसा ज़विक मिलकर लगभग 4 सालों से बंगलुरु के कोरमंगला में बसा यह कैफ़े चला रहे हैं। 2018 में वेजीटेरियन हॉस्टल शुरू करने से पहले उन्होंने एक छोटी-सी सस्टेनेबल ट्रैवल कंपनी शुरू की थी। इस दौरान उन्होंने कई फॉरेन टूरिस्ट्स को यह शिकायत करते सुना कि भारत में उन्हें कोई अच्छा वेजीटेरियन हॉस्टल मिलना मुश्किल होता है।

यही वजह थी कि बंगलुरु के एक म्यूजिक फेस्टिवल में मिले लक्ष्मण और वैनेसा ने ‘बी ऐनिमल’ हॉस्टल की शुरुआत की। जिस तरह पशु प्रकृति के बीच ताज़ी हवा में सांस लेते हैं, सेहतमंद खाना खाते और सुकून से ज़िंदगी जीते हैं, इसी के आधार पर उन्होंने अपने हॉस्टल के लिए यह नाम भी चुना। कुछ समय बाद, साल 2022 में इस हॉस्टल में इन्होंने हैप्पीनेस कैफ़े को भी जोड़ा, जहाँ 100% वीगन और ग्लूटन-फ्री फ़ूड परोसा जाता है। 

100% वीगन और ग्लूटन-फ्री फ़ूड है इस कैफ़े की खासियत

यहां की ख़ास बात यह है कि हैप्पीनेस कैफ़े आपको बिल्कुल घर वाली फीलिंग देता है। कैफ़े के अंदर आते ही आप यहां के रीसायकल किये हुए फर्नीचर और डेकॉर को देखकर यह अनुमान लगा सकते हैं कि यहाँ सस्टेनेबिलिटी का कितना ध्यान दिया गया है। 

इस कैफ़े में ढेरों पेड़-पौधे लगाए गए हैं, जो मेहमानों को प्रकृति के करीब रहने का अनुभव कराते हैं। साथ ही इस कैफ़े और हॉस्टल में इस्तेमाल होने वाली ज़्यादातर चीज़ें सोलर पावर से चलती हैं। 

संपादन- अर्चना दुबे

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