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नहीं लगाया सोलर सिस्टम, फिर भी 30% कम आता है बिजली बिल, जानना चाहेंगे कैसे?

Bengaluru Family Built Ecohouse

“लोगों के लिए घर बनाना एक सपना होता है, लेकिन सस्टेनेबल घर बनाना एक कला है,” यह मानना है बेंगलुरु में रहनेवाली नेत्रावती जे. का। 35 वर्षीय नेत्रावती और उनके पति, नागेश दोनों ही इंजीनियर हैं और अलग-अलग कंपनियों के साथ काम करते हैं। साल 2016 में इस दंपति ने प्रकृति के अनुकूल अपना घर बनवाया था। आज हम आपको इसी घर के बारे में बताने जा रहे हैं।

द बेटर इंडिया से बात करते हुए नेत्रावती ने बताया, “2011 में नागेश पॉन्डिचेरी गए थे और वहां उन्हें पर्यावरण के अनुकूल और टिकाऊ घर-निर्माण के बारे में पता चला। इसके बाद ही हमने तय कर लिया था कि अपना घर पर्यावरण के अनुकूल होगा। हालांकि, हमारे घर का निर्माण 2016 में हुआ और तब से हम इसी घर में रह रहे हैं। इस घर में हर एक पल ऐसे लगता है जैसे प्रकृति के करीब हो।” अपने घर में उन्होंने फर्श से लेकर छत तक के लिए प्राकृतिक सामग्री जैसे मिट्टी के ब्लॉक, टाइल, पत्थर और अपसायकल्ड चीड़ की लकड़ी आदि का इस्तेमाल किया है। जिस कारण, उनके घर के अंदर का तापमान हर मौसम में संतुलित रहता है। 

सोच-समझकर बनाया प्रकृति के अनुकूल घर 

उन्होंने बताया कि उनका घर 1600 वर्ग फ़ीट में बना हुआ है। घर बनाने से पहले लोग अक्सर भट्ठों से ईंटें, सीमेंट, और रेत आदि लेकर आते हैं। लेकिन नेत्रावती और नागेश ने पहले ही तय कर लिया था कि वे ज्यादा से ज्यादा इको-फ्रेंडली सामग्री का इस्तेमाल करेंगे। इसलिए उन्होंने घर के निर्माण के लिए सामान्य ईंटों की बजाय CSEB (कंप्रेस्ड स्टेब्लाइज़्ड अर्थ ब्लॉक) का प्रयोग किया है। उन्होंने बताया, “इन CSEB ब्लॉक्स को हमारी जमीन से निकली मिट्टी से ही बनाया गया है। हमें कहीं और से मिट्टी मंगवाने की जरूरत नहीं पड़ी। साथ ही, इन ब्लॉक्स का कार्बन उत्सर्जन सामान्य भट्ठों पर बनी ईंटों की तुलना में 12.5 गुना कम है।” 

इसके बाद दूसरा इको-फ्रेंडली तरीका था, कम से कम सीमेंट का प्रयोग करना। इनके बारे में नेत्रावती ने बताया कि सबसे पहले उन्होंने इस बात पर गौर किया कि सबसे ज्यादा सीमेंट का प्रयोग किन जगहों पर होता है और वे किन तरीकों से सीमेंट के इस्तेमाल को कम से कम कर सकते हैं।

“हमने सामान्य कंक्रीट के खम्बे बनवाने की बजाय अपनी दीवारों पर ही भरोसा किया। हमने कंक्रीट के बीम और कॉलम नहीं बनवाए हैं बल्कि हमारे घर में ‘लोड बेयरिंग स्ट्रक्चरल सिस्टम‘ का इस्तेमाल हुआ है जिससे भार दीवारों के माध्यम से स्लैब से नींव पर आ जाता है। साथ ही, हमने छत के निर्माण में आरसीसी की जगह क्ले ब्लॉक और आर्च पेनल्स का प्रयोग किया है, जिससे छत के निर्माण में सीमेंट और स्टील का इस्तेमाल बहुत कम हुआ है,” उन्होंने कहा। 

इस तरह से छत बनाने का एक फायदा यह भी है कि उनके घर का तापमान हमेशा संतुलित रहता है। गर्मियों में उनका घर बाहर के तापमान के मुकाबले ठंडा और सर्दियों में हल्का गर्म रहता है। इस कारण उनके घर में कभी एसी या कूलर की जरूरत नहीं पड़ती है। पंखों का इस्तेमाल भी बहुत ही कम होता है। 

किया है प्राकृतिक रौशनी का भरपूर इस्तेमाल 

शुरुआत से ही उन्होंने इस बात पर ध्यान दिया कि घर में जितनी हो सके प्राकृतिक रौशनी आए। इसके लिए उन्होंने पूरे घर में स्काईलाइट, दीवारों में जाली और बड़ी-बड़ी खिड़कियां लगवाई हैं। इससे न सिर्फ रौशनी बल्कि धूप और ताजी हवा भी घर को सुकून भरा रखती है। उन्होंने बताया कि इससे उनकी बिजली की खपत भी कम हुई है। “हमारे घर में ट्यूबलाइट्स और पंखों का इस्तेमाल कम से कम होता है। इस कारण बिजली बिल काफी कम हुआ है। किसी भी सामान्य घर से हमारा बिजली बिल 30% तक कम आता है,” उन्होंने कहा। 

इसी तरह फर्श के लिए उन्होंने कोटा पत्थर और मिट्टी की टाइल्स का इस्तेमाल किया है। दीवारों पर कोई प्लास्टर नहीं किया गया है और इसलिए ये प्राकृतिक लगती हैं। उन्होंने कहा कि अक्सर लोग आधुनिक किचन बनवाने के चक्कर में बहुत ज्यादा लकड़ी का इस्तेमाल करते हैं। लेकिन उन्होंने अपनी रसोई में भी पत्थरों का इस्तेमाल करवाया है। इसके अलावा, लकड़ी के काम के लिए उन्होंने अपसायकल की हुई चीड़ की लकड़ी का इस्तेमाल किया है। नेत्रावती का कहना है कि इससे न सिर्फ उनके घर की खूबसूरती बढ़ी बल्कि कहीं न कहीं कुछ पेड़ों को कटने से रोकने में उन्होंने भी अपना योगदान दिया है। 

नेत्रावती अपने घर में बारिश के पानी को सहेजने के लिए भी काम कर रहे हैं। उन्होंने अपने घर में 4000 लीटर की क्षमता का ‘रेन वाटर हार्वेस्टिंग’ सिस्टम बनवाया हुआ है। वह बतातीं हैं कि रसोई, बाथरूम और शौचालय में पानी की जरूरत बारिश के पानी से ही पूरी होती हैं। इस तरह से अपने घर की लगभग आधी पानी की जरूरत को वे बारिश के पानी से पूरी कर लेते हैं। 

खुद खाद बनाकर लगाए केले, अनार जैसे पौधे 

नेत्रावती कहती हैं कि ज्यादा नहीं लेकिन अपने घर में वह कुछ मौसमी सब्जियां लगा लेती हैं। बागवानी के लिए खाद वह खुद ही तैयार करती हैं। उनके घर से निकलने वाले जैविक और गीले कचरे को फेंकने की बजाय इकट्ठा करके जैविक खाद बनाती हैं। इसी खाद से वह अपने घर में मेथी, मूली, खीरा, पालक, बीन्स, तोरई जैसी सब्जियां लगा रही हैं।

उन्होंने आगे बताया, “घर की बनी खाद से बहुत जल्दी पेड़-पौधे पनपते हैं। हमने अपने घर में केले, अनार और पपीता जैसे फलों के पेड़ भी लगाए हुए हैं। केले के पेड़ से हमें अच्छे फल भी मिल रहे हैं।” 

नेत्रावती और नागेश कहते हैं कि प्रकृति के अनुकूल जीवनशैली की तरफ वे एक-एक कर अपने कदम बढ़ा रहे हैं। क्योंकि आज के जीवन की सच्चाई यही है कि हम अपने जीवन को प्रकृति के करीब रखें। अंत में वे कहते हैं, “सस्टेनेबिलिटी एक दिन की प्रक्रिया नहीं है। यह एक जीवनशैली है। जिस तरह से दुनिया में तापमान और प्रदूषण बढ़ रहा है, उसे देखते हुए सस्टेनेबल लाइफस्टाइल अब हमारे लिए विकल्प नहीं बल्कि एक जरूरत है ताकि हमारी आने वाली पीढ़ियां भी एक अच्छी जिंदगी जी पाएं।” 

संपादन- जी एन झा

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