आज के दौर में रीसाइकल्ड प्लास्टिक का इस्तेमाल टी-शर्ट, स्वेटर, पैंट, बर्तन बनाने से लेकर बैंच आदि बनाने तक में हो रहा है। लेकिन, आज हम आपको एक ऐसी कहानी सुनाने जा रहे हैं, जहाँ प्लास्टिक का इस्तेमाल भवन निर्माण में किया जा रहा है।
दरअसल, यह कहानी है कर्नाटक के मंगलूरु शहर की है, जहाँ टेट्रा पैक और गुटखा के पैकेट से एक अनोखे घर को बना दिया गया है। इस घर को प्लास्टिक फॉर चेंज द्वारा बनाया गया है, जो एक लाभकारी संस्था है और स्थानीय गैर-सरकारी संगठनों को एक साझेदार के तौर पर बेहतर आय और अवसर प्रदान करने में मदद करता है।
“हमारा लक्ष्य रीसाइकल्ड प्लास्टिक वेस्ट का इस्तेमाल भवन निर्माण के लिए करना है, ताकि समाज के वंचित वर्ग के लोगों को कम खर्च में रहने के लिए एक छत मिल सके,” प्लास्टिक फॉर चेंज इंडिया फाउंडेशन के चीफ इम्पैक्ट ऑफिसर शिफराह जैकब्स द बेटर इंडिया को बताते हैं।
कहाँ से लाते हैं प्लास्टिक
यह संस्था, प्लास्टिक को कूड़ा बीनने वाले कई समुदाय से खरीदती है और उन्हें समय पर और उचित भुगतान करती है। उनका उद्देश्य असंगठित प्लास्टिक रीसाइक्लिंग सेक्टर को एकजुट करना है और साथ ही कूड़ा बीनने वाले लोगों के जीवन स्तर को ऊँचा करना है।
शिफराह बताती हैं, “हमारा इस तरह का पहला प्रोजेक्ट मंगलूरु के पचनाडी में था, जिसे हमने एक महिला के लिए बनाया था। यह 350 वर्ग मीटर के दायरे में है और इसे बनाने में 4.5 लाख रुपए खर्च हुए।”
वह आगे बताती हैं, “हमें लगता है कि एक संगठन के तौर पर हम घर को बनाने के दौरान हर जरूरत को पूरा नहीं कर सकते है, इसलिए हमने हैदराबाद के, बम्बू प्रोजेक्ट्स को एक साझेदार के तौर पर शामिल किया।”
बम्बू प्रोजेक्ट्स के संस्थापक, प्रशांत लिंगम कहते हैं, “हम मुख्यतः बाँस से घरों को बनाते हैं, लेकिन जरूरत पड़ने पर हम अन्य सामग्रियों से भी घर बनाते हैं। प्लास्टिक फॉर चेंज इंडिया फाउंडेशन ने हमसे प्लास्टिक की थोक आपूर्ति के साथ घर बनाने के लिए संपर्क किया। इसलिए, घरों को बनाना आसान था। यहाँ बनाए गए सभी घर पोर्टेबल भी हैं।”
वह बताते हैं कि प्लास्टिक के इन घरों को बनाने में अधिकतम 10 दिन लगे। बाँस और प्लास्टिक से बने घर के कूलिंग इफेक्ट समान होते हैं। जब वह प्लास्टिक बोर्ड बनाते हैं, तो इस दौरान तमाम सावधानियों का पालन किया जाता है, ताकि घर अधिक गर्म न हो।
प्रशांत कहते हैं, “हमने घर की हीटिंग क्षमता को मापने के लिए किसी सरकारी निकाय द्वारा स्वीकृत फॉर्मल डिटेंशन स्लैब का इस्तेमाल नहीं किया है।”
शिफराह ने कहा कि घर को बनाने की लागत को 3.5 लाख रुपये तक कम किया जा सकता है और अगले दो वर्षों में उनकी योजना 100 घर बनाने की है।
वह बताती हैं, “यह एक कठिन समय है और इससे निपटने के लिए हमें अत्याधुनिक तकनीकों के साथ आगे बढ़ना होगा, ताकि समुदायों पर एक सकारात्मक प्रभाव हो। हम प्लास्टिक कचरे से घरों को बनाने और मंगलूरु के वंचित समुदायों को ऑनलाइन शिक्षा उपलब्ध कराने को लेकर गौरवान्वित हैं। सभी साझेदारों और समुदाय के सदस्यों के प्रति आभार, जिन्होंने हम पर विश्वास जताया।”
रीसाइकल्ड प्लास्टिक से बनाए गए उनके पहले घर में एक बड़ा कमरा होने के साथ ही, एक स्टोर रूम, बाथरूम, रसोई, और आँगन भी हैं। इसे बनाने में करीब 1,500 किलोग्राम प्लास्टिक का उपयोग किया गया है।
शिफराह बताती हैं, “घर की नींव सीमेंट और कुछ हद तक स्टील से बनी है। टाइलिंग सिरेमिक, ग्रेनाइट और संगमरमर के पत्थर से की गई है। वहीं, छत और दीवारें कम घनत्व वाले प्लास्टिक (LDP) और बहुस्तरीय प्लास्टिक (MLP) से युक्त प्लास्टिक से बनाई गई है।”
यह संगठन फिलहाल सिर्फ वैसे लोगों के लिए घर बना रहा है, जिनके पास अपनी जमीन है। शिफराह बताती हैं, “घर बनाने से पहले हमने निर्माण सामग्रियों का ड्युरेबिलिटी टेस्ट भी किया था। प्लास्टिक के साथ, हम बहुत कम खर्च पर शौचालय भी बना सकते हैं।”
उनके प्रयासों की सराहना करते हुए, यूनाइटेड कंजर्वेशन मूवमेंट के संयोजक जोसेफ हूवर कहते हैं, “इतनी कम लागत में रीसाइकल्ड प्लास्टिक से बने घर को देखना बहुत दिलचस्प है। प्लास्टिक फॉर चेंज इंडिया फाउंडेशन के इस अभिनव विचार की, मैं तहे दिल से सराहना करता हूँ।”
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