साल 1950 में, मुंबई से तक़रीबन 140 किमी दूर डहाणू शहर के किसान पी.डी बाफना, बाजार में मौजूद बढ़िया केमिकल खाद का इस्तेमाल करके फलों की खेती कर रहे थे। इससे उनका उत्पादन भी अच्छा हो रहा था और आमदनी भी बढ़ रही थी। लेकिन, उनके जीवन में एक बड़ा बदलाव तब आया, जब ज्यादा रसायन के उपयोग से उनकी फसलें ख़राब होने लगी।
1970 तक उनके कई पेड़ ख़राब हो चुके थे। उन्होंने इन समस्याओं को लेकर एग्रीकल्चर एक्सपर्ट से भी संपर्क किया, लेकिन कोई समाधान नहीं मिला। तब उन्होंने सबकुछ प्रकृति के ऊपर छोड़ दिया। यही वह समय था, जब उन्हें प्राकृतिक खेती के फायदों का एहसास हुआ।
हालांकि, उन्हें अपने खेतों में नई जान फूंकने में तक़रीबन सात से आठ साल लग गए। उस समय से लेकर आजतक, उनके खेतों में कभी भी किसी तरह के केमिकल का इस्तेमाल नहीं हुआ है।
जैविक खेती से प्रभावित होकर पी.डी. बाफना ने अपने खेत में 1987 में एक ट्रेनिंग सेंटर की स्थापना की, जहां लोग मुफ्त में जैविक खेती के बारे में ट्रेंनिंग ले सकते हैं।
पी.डी बाफना की जैविक खेती को बाद में, उनके दोनों बेटों ने भी अपनाया। यह जैविक खेती का जादू ही था कि न सिर्फ उन्हें अच्छा उत्पाद मिला, बल्कि देश भर में काफी प्रसिद्धि भी हासिल हुई। जैविक खेती के लिए उन्हें साल 1980 में ‘कृषि रत्न’ से सम्मानित किया गया था।
लेकिन जहां एक और काम में प्रसिद्धि और आर्थिक समृद्धि थी, वहीं दूसरी ओर उन्होंने अपने दोनों बेटों को कम उम्र में ही खो दिया। जिसके बाद, एक बार फिर से खेती की सारी जिम्मेदारी उनके सिर पर आ गई।
अपने दादाजी पी.डी बाफना के बारे में बात करते हुए, उनके पोते अजय बाफना कहते हैं, “मैं 9 साल का था, जब मेरे पिता का निधन हुआ था। मुझे मेरे दादाजी ने ही बड़ा किया है। मैं बचपन से ही खेती करते हुए, पर्यावरण अनुकूल जीवन जीता आ रहा हूं। हमारी आर्थिक स्थिति भी काफी अच्छी थी, शहर में हमारा 150 एकड़ का खेत था। मुझे बी. कॉम की पढ़ाई के बाद, कैंब्रिज में फाइनेंस में मास्टर्स करने के लिए भेजा गया था।”
हालांकि, अजय जब विदेश पढ़ने गए तब उनके दादाजी अस्वस्थ हो गए और उन्हें छह महीने में ही वापस बुला लिया गया। जिसके बाद वह अपने दादा के साथ मिलकर खेती करने लगे।
विदेश से लौटने के बाद अजय अपने परिवार की जैविक खेती और पर्यावरण अनुकूल जीवन शैली को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाने के लिए ‘आत्मन’ नाम से एक फार्मस्टे बनाने की योजना बनाने लगे।
क्या है आत्मन?
साल 1998 में 77 की उम्र में अजय के दादाजी पी.डी बाफना का निधन हो गया। जिसके बाद से खेती का काम उनके दोनों पोते अजय और आनंद संभाल रहे हैं।
अजय कहते हैं, “मेरे दादाजी ने मेरी माँ (राजकुमारी मानिकचंद्र बाफना) को तक़रीबन 38 एकड़ जमीन दी थी। जिसमें मैं चीकू और दूसरे फल उगा रहा हूं। लेकिन 2017 में मुझे अपने दादाजी के लिए कुछ विशेष करने का विचार आया। मैं चाहता था कि एक ऐसी जगह बनाऊं, जहां लोग पर्यावरण अनुकूल जीवन का आनंद ले सकें। तक़रीबन 52 महीने की मेहनत के बाद, हमने ढाई एकड़ जमीन पर तीन कॉटेज तैयार किए।”
इसी साल 29 जुलाई को पी.डी बाफना का 100वां जन्मदिन था। इस दिन को खास बनाने के लिए ही अजय ने ‘आत्मन’ फार्मस्टे के बारे में लोगों को बताया और अक्टूबर 2021 से ‘आत्मन’ की शुरूआत कर दी। इस फार्मस्टे में तीन कॉटेज हैं, जिसे बनाने में केवल एक प्रतिशत ही सीमेंट का इस्तेमाल किया गया है। जो इलेक्ट्रिसिटी के वायर की जगह पर और रेन वॉटर हार्वेस्टिंग के लिए बने टैंक बनाने में इस्तेमाल हुआ है।
फ्लोर और दीवार के लिए अजय ने स्थानीय पत्थर का इस्तेमाल किया है।
अजय कहते हैं, “हालांकि यह काम इतना भी आसान नहीं था। आर्किटेक्ट के डिज़ाइन के अनुसार जब हमने काम करना शुरू किया तो दीवार बार-बार टूट जा रही थी। फिर हमने राजस्थान से कारीगरों को काम करने के लिए बुलाया। मुंबई की आर्किटेक्ट और कारीगरों ने कई तरह के प्रयोग किए और आखिरकार हमने एक बढ़िया तकनीक खोज निकाली। पत्थरों को आपस में जोड़ने के लिए हमने सीमेंट की जगह प्राकृतिक वस्तुओं जैसे- चूना, मेथी, गुड़, चावल का दाना, हल्दी आदि का इस्तेमाल किया गया।”
तीनों कॉटेज के पीछे ग्रे वॉटर को फ़िल्टर करने की व्यवस्था है। जहां बाथरूम में इस्तेमाल हुआ पानी फ़िल्टर कर खेतों में इस्तेमाल किया जाता है। इसके अलावा खेत में बारिश का पानी जमा करने के लिए 35 लाख लीटर की टंकी भी बनाई गई है। जिससे कॉटेज की जरूरतें आराम से पूरी हो जाती है।
इस तरह तीन कॉटेज बनाने में अजय को तक़रीबन 10 करोड़ का खर्च आया, जिसके लिए उन्होंने लोन भी लिया है। अजय कहते हैं, “अगर मैं इसे कंक्रीट और प्लास्टिक का इस्तेमाल करके बनाता तो खर्च काफी कम आता। लेकिन यह प्रोजेक्ट मेरे दिल के काफी क़रीब है इसलिए मैंने इसमें किसी तरह का कोई समझौता नहीं किया है।”
प्लास्टिक और केमिकल की नो एंट्री
कॉटेज बनाने से लेकर, इसमें उपयोग की जाने वाली चीजों का भी यहां विशेष ध्यान रखा गया है। नहाने के लिए साबुन, हैंडवॉश, शैम्पू जैसी चीजें अजय पूरी तरह से ऑर्गेनिक तरीके से बनवाते हैं ताकि खेत में जाने वाला पानी केमिकल रहित हो।
अजय कहते हैं, “हम किसी मेहमान को बाहर से लायी वस्तु इस्तेमाल करने नहीं देते हैं। यहां वॉटर बोतल भी कोई अंदर नहीं ला सकता है।”
वहीं अगर खाने की बात की जाए तो फार्म में दो किचन गार्डन हैं। जहां ऑर्गेनिक तरीके से सब्जी उगाई जाती है।
खेतो में उन्होंने एक मचान भी बनवाया है जो इस फार्मस्टे की खूबसूरती में चार चाँद लगा देता हैं, इस मचान को बनाने के लिए उन्होंने पेड़ की एक भी डाली नहीं काटी है।
साल 1987 में पी.डी बाफना ने जैविक खेती सीखाने के लिए नेचुरल फार्मिंग इंस्टिट्यूट की भी शुरुआत की थी। दो साल पहले इंस्टिट्यूट में बच्चों के रहने के लिए एक हॉस्टल भी बनाया गया है, जहां उनका रहना-खाना फ्री है।
अंत में अजय कहते हैं, “जापान में जैविक खेती के लिए मशहूर Masanobu Fukuoka दो बार हमारे फार्म में आ चुके हैं। वह मेरे दादा की जीवन शैली के मुरीद थे। मैं चाहता हूं लोग फिर से प्रकृति के साथ मिलकर रहना सीखें। इस फार्मस्टे को बनाने के पीछे मेरा यही उद्देश्य है।”
‘आत्मन’ के बारे में ज्यादा जानने के लिए यहां क्लिक करें।
संपादन- जी एन झा
यह भी पढ़ें: बैम्बू, मिट्टी और गोबर से बना ‘फार्मर हाउस’, जहां छुट्टी बिताने आते हैं लोग और सीखते हैं जैविक खेती
यदि आपको इस कहानी से प्रेरणा मिली है, या आप अपने किसी अनुभव को हमारे साथ साझा करना चाहते हो, तो हमें hindi@thebetterindia.com पर लिखें, या Facebook और Twitter पर संपर्क करें।