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मिट्टी के 450 कटोरे इस्तेमाल कर बनाई छत, गर्मी में भी नहीं पड़ती AC की जरूरत

Eco Friendly Farm house

सभी बच्चों के लिए उनके दादा-दादी बहुत खास होते हैं। दादा का लाड और दादी की लोरी, कहते हैं कि किस्मत वालों को ही नसीब होती है। बेंगलुरु में रहने वाले मणिकंदन सत्यबालान को उनकी दादी के बारे में उतना ही पता है, जितना उन्होंने अपने माता-पिता से सुना है। लेकिन फिर भी वह अपनी दादी के साथ एक अटूट रिश्ता महसूस करते हैं। इसी अटूट रिश्ते और अपने पिता के सपने के चलते उन्होंने तमिलनाडु के पुदुकोट्टई जिले के कीरमंगलम में एक अनोखा घर बनाया है, जिसे उन्होंने अपनी दादी को समर्पित किया है। 

750 वर्ग फ़ीट में बने अपने इस इको फ्रेंडली फार्म हाउस को उन्होंने अपनी दादी के नाम पर ‘Valliyammai Meadows’ नाम दिया है। द बेटर इंडिया से बात करते हुए मणिकंदन ने बताया, “जिस जगह यह घर है वहां पहले दादी का पुराना मिट्टी का घर हुआ करता था। मेरे पिताजी की बहुत-सी यादें इस जगह से जुडी हुई हैं। वह हमेशा मुझे दादी के बारे में बताते हैं क्योंकि 1980 में ही उनका देहांत हो गया था। दादी की मेहनत की वजह से ही पापा की पढ़ाई पूर हो सकी।” 

इसलिए अपने पिता, सत्यबालान के सपने को पूरा करने के लिए मणिकंदन और उनकी पत्नी इंदुमती ने इस घर का निर्माण करने का फैसला लिया। यह घर साल 2019 में बनकर तैयार हुआ। मणिकंदन बताते हैं, “मैं विज़ुअल इफ़ेक्ट प्रोड्यूसर हूं और इंदुमती एक शिक्षक हैं। मैं फिल्म, म्यूजिक वीडियो और विज्ञापनों के लिए काम करता हूं। पहले हमने इसे परिवार के लिए ‘हॉलिडे होम’ की तरह बनाने का सोचा था लेकिन जब निर्माण पूरा हुआ तो मेरे माता-पिता ने इसी घर में रहने का फैसला किया। हमें भी जैसे ही अपने काम से समय मिलता है, हम इस इको फ्रेंडली घर का आनंद लेने पहुंच जाते हैं।” 

आर्किटेक्ट दोस्त ने दिया आइडिया

मणिकंदन कहते हैं कि वह सिर्फ घर बनवाना चाहते थे। लेकिन उन्हें सस्टेनेबल या इको फ्रेंडली निर्माण के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं थी। इस बारे में उन्हें उनके एक आर्किटेक्ट दोस्त, तिरुमुरुगन से पता चला। अपने दोस्त से ही उन्होंने घर का डिज़ाइन बनवाया और उन्होंने ही मणिकंदन को सलाह दी कि वह घर को जितना हो सके प्रकृति के अनुकूल बनाए। इसलिए उन्होंने अपने घर के निर्माण में ज्यादा से ज्यादा इको फ्रेंडली चीजों और निर्माण के तरीकों का इस्तेमाल किया है। घर की नींव के लिए उन्होंने लगभग छह फ़ीट की ऊंचाई तक पत्थरों का इस्तेमाल किया है। 

“घर के निर्माण में हमने कंक्रीट के खम्बे भी नहीं बनवाये हैं और न ही दूसरी जगहों पर बहुत ज्यादा सीमेंट का इस्तेमाल किया है। दीवारों के लिए हमने ‘रैट ट्रैप बॉन्ड‘ तकनीक का इस्तेमाल किया है। इससे दीवारों की चिनाई में कम से कम सीमेंट और ईंटें लगती हैं। साथ ही, दीवारें ज्यादा मजबूत और थर्मल एफ्फिसिएंट होती है,” उन्होंने बताया। रैट ट्रैप बॉन्ड तकनीक से दीवारें बनाते समय बीच में खाली जगह रह जाती है, जिस कारण घर के अंदर का तापमान संतुलित रहता है। 

मणिकंदन कहते हैं, “घर में रहते हुए हमें यह फर्क महसूस होता है। क्योंकि इस इलाके में काफी ज्यादा गर्मी होती है। लेकिन मेरे घर का तापमान बाहर के तापमान से हमेशा कम ही रहता है। इसका एक मुख्य कारण है कि हमने दीवारों के लिए रैट ट्रैप बॉन्ड तकनीक को प्रयोग में लिया है। इसके अलावा दीवारों पर किसी भी तरह का प्लास्टर या पेंट नहीं किया है। दूसरा मुख्य कारण है कि छत के निर्माण के लिए भी आरसीसी की बजाय ‘फिलर स्लैब’ तकनीक का इस्तेमाल किया है।” 

छत के निर्माण में इस्तेमाल किए मिट्टी के 450 कटोरे

उन्होंने आगे बताया कि छत के लिए उन्होंने फिलर स्लैब तकनीक का इस्तेमाल किया। इस तकनीक में छत के नीचे के तरफ के हिस्से में सीमेंट का प्रयोग न करते हुए, किसी अन्य इको-फ्रेंडली मटीरियल का इस्तेमाल किया जाता है। उन्होंने इस काम के लिए मिट्टी के कटोरों का इस्तेमाल किया है। उन्होंने कहा, “फिलर स्लैब तकनीक से छत बनाने पर लगभग 20% कम सीमेंट और स्टील का प्रयोग होता है। दीवारों की तरह घर की छत भी थर्मल एफ्फिसिएंट हैं और घर के अंदर के तापमान को संतुलित रखने में अहम भूमिका निभाती है।” 

घर के बीचों-बीच एक ‘हेड रूम’ भी है, जिसकी चारों दीवारों में वेंटिलेशन फैसिलिटी है। साथ ही, उनके घर का आकार आयत में न होकर गोलाकार है, जिस कारण हवा के आने-जाने की समस्या नहीं है। उनका कहना है कि रात 10 बजे के बाद उनका घर बहुत ही ज्यादा ठंडा हो जाता है। “यह इलाका बहुत गर्म है। लेकिन फिर भी हमें घर में एसी लगवाने की जरूरत नहीं पड़ी है। क्योंकि घर का तापमान एकदम संतुलित रहता है। खासकर रात को तो पंखे चलाने की भी जरूरत नहीं पड़ती है,” मणिकंदन ने कहा। 

घर में लकड़ी के काम के लिए उन्होंने इस जमीन पर पहले से लगे नीम, कटहल और टीक के पेड़ों की लकड़ी का इस्तेमाल किया है। इसके बाद उन्होंने घर के चारों तरफ लगभग 40 पेड़ लगाए। इनमें आम, कटहल, अंजीर, संतरा, चीकू आदि शामिल हैं। उन्होंने काली मिर्च और लौंग के पौधे भी लगाए हुए हैं। इसके अलावा, उनके घर के आसपास लगभग 1000 नारियल के पेड़ हैं। मणिकंदन के पिता सत्यबालान कहते हैं कि इस घर में रहते हुए वह खुद को न सिर्फ प्रकृति के करीब बल्कि अपनी माँ के करीब भी पाते हैं। 

उगाते हैं साग-सब्जियां भी 

सत्यबालान और उनकी पत्नी, थावमानी बड़े और घने पेड़ों के साथ-साथ साग-सब्जियां भी लगाते हैं। उन्होंने पालक, शकरकंद, टैपिओका, केला और कुछ औषधीय पौधे भी लगाए हुए हैं। साथ ही वे बारिश के पानी का भी उपयोग गार्डनिंग में कर रहे हैं। 

मणिकंदन कहते हैं कि उनके बहुत से दोस्त और रिश्तेदार उनसे कहते हैं कि वे अपनी छुट्टियां उनके इस इको-फ्रेंडली फार्म हाउस पर बिताना चाहते हैं। इसलिए वह भविष्य में इस फार्म हाउस को ‘हॉलिडे गेटवे’ की तरह विकसित करने की योजना बना रहे हैं। 

संपादन- जी एन झा

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