जब अनुज से कहा गया कि वह झुग्गी में रहने वाले बच्चो के बीच रेनकोट बाँटे, तो उन्होने निश्चय किया कि बांटने की बजाय वह उन बच्चो को रेनकोट बनाना सीखायेंगे। वह भी सिर्फ तीन चीजों को इस्तेमाल कर के – तर्पुलिन, बटन और रबर बैंड।
कपडे बनाने की आसान प्रक्रिया ‘ बटन मसाला’ की खोज करने वाले अनुज शर्मा कहते हैं-
“कपडे सिलने की कला केवल उन लोगों तक ही सिमित है जिन्होंने या तो उसे बनाने की विशेष ट्रेनिंग ली है या फिर जो पहले से इसमें परिपक्व हैं। मैं चाहता हूँ की कपडे बनाने की इस आसान तकनीक को थोडा मशहूर बनाया जाए। यह बहुत हद तक एक DYI ( डू इट योरसेल्फ) तकनीक है। जो कोई भी कपडे बनाने की इच्छा रखता है वो इसे आसानी से कर पायेगा। ”
इस तकनीक की ख़ास बात यह है कि इसमें केवल बटन और रबर बैंड लगते हैं।
पिछले महीने जब एक विडियो एंटरटेनमेंट कंपनी ‘कल्चर मशीन’ अनुज के पास, इन बच्चो को रेनकोट बंटवाने के इरादे से आयी, तो अनुज ने एक बिलकुल नयी सोच को उनके सामने रखा।
अनुज बताते हैं-
” मैंने उन लोगों से कहा कि ये रेनकोट बांटने की बजाय अगर हम उन्हें इसे बनाना सिखायेंगे तो वह ज्यादा फायदेमंद होगा। आगे ज़रूरत पड़ने पर वे खुद ही इसे बना पायेंगे।”
और इसी सोच के साथ, यह डिज़ाइनर एक दिन के लिए ‘रेनकोट स्यांटा'(Raincoat Santa) बन गया।

वह झुग्गी झोपड़ियो में गया और वहां के पांच बच्चो को मिनटों में रेनकोट बनाने की तकनीक सीखाई। ‘कल्चर मशीन’ के साथ मिल कर उसने पूरे दिन इस प्रक्रिया की विडियो भी बनायी ।
इस योजना के पीछे की सोच थी, कि ज़्यादातर स्कूली बच्चो के लिए रेनकोट एक ज़रूरत का सामान है।
एक ओर जहाँ हम में से अधिकतर लोग बरसात का इंतज़ार करते हैं.. वहीँ दूसरी ओर इन झुग्गी झोपड़ियो में रहने वाले बच्चो के लिए यह मौसम कई परेशानियाँ लेकर आता है.. ख़ास कर उन बच्चों के लिए जिन्हें इस बारिश में भीगते हुए स्कूल जाना पड़ता है।

इस रेनकोट प्रोजेक्ट में भाग लेने वाले कुछ बच्चो के शब्दों में-
“कई बार हमारे कपड़ो पर कीचड़ और मिट्टी लग जाती है। हमारी किताबे भी बारिश के पानी में भीग जाती हैं। ऐसे में हमे अपने टीचर से बहुत डांट पड़ती है।”
अनुज ४२ वर्ष के है और अहमदाबाद के रहने वाले है। उन्होंने अपनी पढाई नेशनल स्कूल ऑफ़ डिजाईन से पूरी की है। अनुज बताते हैं, ” मैंने कई तरह के फैशन शो में भाग लिया है। ल्याक्मे(LAKME) द्वारा आयोजित ऐसे ही एक आयोजन में मैंने बटन मसाला तकनीक को बनाया। ”
२०१० में अनुज ने इन फैशन शो में भाग लेना छोड़ दिया। और अपनी इस तकनीक को और पुख्ता बनाने में जुट गये।
‘बटन मसाला’ एक साधारण किन्तु अलग तकनीक है जिसमे बटन और रबर बैंड से कपडे, जूते, बैग आदि जैसे सामान मिनटों में बनाये जाते हैं।

अनुज उत्साहित हो कर बताते हैं , “यह तकनीक बहुत ही सस्ती है। शायद कपडे बनाने की सबसे सस्ती और टिकाऊ भी।”
सिर्फ एक निश्चित नाप का कपडा, बटन और रबर बैंड- इन तीनो से अलग अलग डिजाईन के कपडे बन सकते हैं। न कोई टाँके की ज़रूरत न ही सुई की!
शुरू में यह ‘ग्रिड सिस्टम’ पर आधारित था। कई बटन को एक कपडे पर निश्चित दूरी पर सिल दिया जाता था। बटन की दूरी के मुताबिक स्ट्राप को भी उतनी ही दूरी पर सिलाई कर दी जाती थी। फिर बटन का उपयोग मनचाहा कपडे बनाने में किया जाता था।
बाद में उसने इस स्ट्राप को भी हटा कर कपडे बनाने का सोचा। बटन को कपड़ो में घुसा कर बटन से बांध कर कपडे बनाने लगा। इस से पूरे कपडे को खोल के दुबारा कुछ और भी बना पाने का विकल्प खुल गया।
और यह तकनीक सिर्फ कपड़ो तक ही सीमित नहीं रही। इस से कुशन के कवर, परदे, बैग, जूते, फर्नीचर आदि भी बनाये जा सकते हैं।
अनुज कहते हैं, ” इस तकनीक से मैं ज्यादा से ज्यादा लोगो को डिजाइनिंग से जोड़ना चाहता हूँ।”
अनुज चाहते हैं की हर कोई इस तकनीक को जाने और अपने हिसाब से इस्तेमाल करे। उन्होने देश और विदेश में अब तक करीब पांच हज़ार लोगो को ये तकनीक सिखायी है। ज़्यादातर जगहों जैसे स्कूल, कॉलेज, फैशन आर्गेनाईजेशन में उसे एक गेस्ट डिजाईन टीचर के रूप में बुलाया जाता है।
देखे कैसे काम करती है ये तकनीक –
जहाँ तक रेनकोट की बात है, तो उसे ८ भागो में बहुत ही सरलता से बनाया जा सकता है। ज़रूरत है तो बस तारपीन और बहुत सारे रबर बैंड और बटन की।








अनुज समझाते हैं, ” हमने तार्पुलिन का इस्तेमाल इसलिए किया ताकि हम बच्चों को सीखा सकें कि कैसे यह बारिश में काम आता है। ज़्यादातर बच्चो को ये बात पहले से पता थी , क्यूंकि उनके घरों में बारिश से बचने के लिए पहले से ही इसका उपयोग किया जा रहा था।”
इससे पहले अनुज ने चंडीगढ़ के बच्चो को ५ मिनट में बैग बनाने की तकनीक भी सिखाई थी।
अनुज कहते हैं, ” मेरा मकसद है कि बच्चे इस रेनकोट को आगे भी बनाते रहे। हम देखेंगे की अगली बरसात में भी ये बच्चे रेनकोट बना कर इस्तेमाल करते हैं या नहीं। अगर ऐसा होता है तभी हमारा मकसद पूरा होगा।”
कई लोग, जिन्होंने अनुज से यह तकनीक सीखी है वो अक्सर अनुज को फ़ोन कर के बताते हैं कि किस प्रकार वे अलग अलग तरह से इसका इस्तेमाल कर रहे हैं।
अनुज बताते हैं, “कोई इससे परदे बनाता है तो कोई जूते। कई लोग इस तकनीक का इस्तेमाल करके पैसे भी कमा रहे हैं।”
अनुज के हिसाब से हमें सुन्दर कपड़ो को बनाने के लिए बड़ी बड़ी मशीनों की आवश्यकता नहीं पड़नी चाहिए।
अंत में अनुज कहते हैं, “अगर लोग अभी तुरंत इस तकनीक का उपयोग नहीं भी करते हैं. तब भी मै लोगों से मिलता रहूँगा और इस आसान प्रक्रिया को उन तक पंहुचाता रहूँगा।”
अनुज से संपर्क करने के लिए आप उन्हें anujsharma.nid@gmail.com पर ईमेल कर सकते है!
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