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मदारी!

न 1937 में दूध बताशा के अंक में ये कविता छपी थी. इसके रचनाकार थे ‘बाबूलाल भार्गव ‘कीर्ति”.

जल्दी चलो, मदारी आया,
संग बहुत सी चीजें लाया।
डमरू अब है लगा बजाने,
भीड़ जोड़कर खेल जमाने।देखो साँप नेवला कैसे
लड़ते, बड़े मल्ल हों जैसे।
बिच्छू जैसे काले काले,
लिए हाथ में डंकों वाले।देखो, रुपये लगा बनाने,
जादू अपना अजब दिखाने।
देखो, उड़ा रहा है अंडा,
लिए हाथ में केवल डंडा।

बड़े-बड़े लोहे के गोले,
जो हैं नहीं जरा भी पोले।
उसने मुँह से अभी निकाले,
काँटों के संग काले-काले।

खेल किए हैं उसने जैसे,
पैसे भी पाए हैं वैसे।
उसका काम हमें बतलाता,
पापी पेट न क्या करवाता?

ये कविता बच्चों की है. बच्चों को मदारी बहुत पसंद आता है. एक और कविता बच्चों के लिए:

बच्चों को रंग पसंद आते हैं –
चमकीली चीज़ें,
परियाँ, जादू,
तरह तरह की आवाज़ करने वाले खिलौने,
कलाबाज़ियाँ,
उछलते बन्दर

मचलती भंगिमाएँ
रस्सी पर चलती लड़की
कुँए में मोटरसाइकिल हो
गुलाबी बुड्ढी के बाल
और सुर में गाते हुए कार्टून
‘बाबा ब्लैक शीप, हैव यू एनी वूल?’
बैकग्राउंड म्यूज़िक में लटके झटके ज़्यादा हों
बस ये सब हो तो बच्चे ख़ुश रहते हैं.
मस्त रहते हैं.
मदारी सब जानता है
मदारी अच्छा है
जब बच्चे उसका
खेल देखते हैं
तो भूख भूल जाते हैं
प्यास नहीं लगती
न घुटनों की चोट का दर्द होता है

न साइकिल चोरी होने का.

मदारी अच्छा है

वह बच्चों को खूब ख़ुश रखता है.

बस इतनी सी कविता है. इतनी कहानी है. आज शनिवार की चाय के साथ आपको एक एब्स्ट्रैक्ट सी कविता ‘सलमा की लव स्टोरी’ दिखाता हूँ. ये कविता कागज़ पर नहीं हो सकती आपको देखनी ही पड़ेगी. Enjoy!

लेखक –  मनीष गुप्ता

हिंदी कविता (Hindi Studio) और उर्दू स्टूडियो, आज की पूरी पीढ़ी की साहित्यिक चेतना झकझोरने वाले अब तक के सबसे महत्वपूर्ण साहित्यिक/सांस्कृतिक प्रोजेक्ट के संस्थापक फ़िल्म निर्माता-निर्देशक मनीष गुप्ता लगभग डेढ़ दशक विदेश में रहने के बाद अब मुंबई में रहते हैं और पूर्णतया भारतीय साहित्य के प्रचार-प्रसार / और अपनी मातृभाषाओं के प्रति मोह जगाने के काम में संलग्न हैं.


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“NOTE: The views expressed here are those of the authors and do not necessarily represent or reflect the views of The Better India.”

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