एक था रूमी
दो थे रूमी
सब थे रूमी
“तुम जिसे ढूँढ़ते हो वो तुम्हें ढूँढ रहा है” [मौलाना मुहम्मद जलालुद्दीन रूमी]
‘इसका मतलब क्या हुआ? हम तो सब कुछ ढूँढ रहे हैं – पैसा, नाम, काम, कर्म, भगवान, दोस्त, प्रेमी, सुख, पहाड़, समुद्र, तैरना, उड़ना, टूटना, जुड़ना.. ये सब हमें ढूँढ रहे हैं?’
जवाब है हाँ!
‘हुँह, तो फिर बैठ जाऊँ, ये सब आयेंगे मेरा दरवाज़ा खटखटायेंगे सब अंदर आ जायेंगे?’
‘कुछ अंदर नहीं आता. अंदर कुछ नहीं है. बाहर और अंदर की बात ही ग़लत है. तुम दीवारें उठा देते हो – अंदर क़ैद में रहते हो उसे अपना घर, अपना परिवार, अपना ये, अपना वो कहते हो.. दीवारें गिरा दो और तुम सबके हो, सब तुम्हारे हैं.’
‘हुँह, हुँह, हुँह. बात बस कहने सुनने में अच्छी लगती है. यह व्यावहारिक नहीं है. तुम कहते हुए हीरो लगते हो, मैं पढ़ते हुए समझदार. यह संभव ही नहीं है. यह व्यवहारिक ही नहीं है’
‘व्यावहारिकता ही तुम्हारी दीवार है’
‘व्यावहारिकता दीवार है? व्यावहारिकता दीवार है? सदियों, हज़ारों सालों की सीख से समाज ने कुछ धारणाएँ, कुछ नियम, कुछ विचार, तौर तरीक़े बनाये हैं इन सबका कुल जोड़ है व्यवहारिकता. तुम कहते हो ये ग़लत है? हज़ारों साल का ज्ञान ग़लत है?’
‘हो सकता है. ‘ज्ञान’ कोई बुरी बात नहीं है. लेकिन यह तुम्हारी दीवार भी बन सकता है. छोटा सा उदाहरण देता हूँ पहले हम ईश्वर को ढ़ूँढने की बातें करते थे. अब मंदिर-मस्जिद में ज़्यादा ध्यान है..’
‘आssssह तुम्हारे तर्क! वैसे तुम कह रहे हो कि ईश्वर है?’
‘पता नहीं’
‘ईश्वर नहीं है?’
‘पता नहीं. हाँ शम्स तबरेज़ी हैं’, रूमी ने कुछ इस तरह कहा कि अमीर ख़ुसरो कहते कि ‘हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया हैं’. इसके आगे बात कुछ हुई नहीं.
पेश है ध्रुव सांगरी का प्रस्तुतीकरण : हज़रत रूमी को थोड़ा सा जानिए:)
इसे देख कर अगर जिज्ञासा और बढ़ी हो तो ये भी है:
लेखक – मनीष गुप्ता
फिल्म निर्माता निर्देशक मनीष गुप्ता कई साल विदेश में रहने के बाद भारत केवल हिंदी साहित्य का प्रचार प्रसार करने हेतु लौट आये! आप ने अपने यूट्यूब चैनल ‘हिंदी कविता’ के ज़रिये हिंदी साहित्य को एक नयी पहचान प्रदान की हैं!