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सत्तर-अस्सी का एलबम!

चुपड़ी, कर्री, भाप उठती रोटी की धूप की बातें
संदली शाम, महकी रात का घी
पोर पोर में रवाँ रवाँ.

ठुमकती भोर
दिल के चोर
अम्मा के राम
पिताजी के सुबह के काम
रेडियो पर गाने
फुल्ली दीदी के फ़साने
छत पर खिलती अचार की बरनियाँ
साइकिल सुधारने वाले का स्वैग
बनिए की दुकान की चाय
पोस्ट ऑफ़िस की लाइन
भैया की अलमारी में दबी वाइन
की गॉसिप
शाम का झुण्ड बना कर घूमना
उनकी छू ली किताबों को
बार बार चूमना

पड़ोसी की तेज़ आँख
उससे तेज़ नाक
उससे भी तेज़ कान
मोहल्ले की जान
शक्कर के डब्बे में रेज़गारी
बचपन से लगी बाई रामप्यारी
ईद के गुलाब
छोटे चाचा के दुनिया भर से अलग जवाब
कैसेट में फँसी पेन्सिल
चूल्हे पर चढ़े पानी में काला तिल
बगल के अंकल की
पत्रिका चुरा के पढ़ना
बिलावजह शशि के (बाप) पापा से डरना
अम्पायरिंग करते हुए लड़ मरना
डाक टिकटों का धंधा
पनामा, चारमीनार के डब्बे
जूतों की धुलाई
शरमाइन गुस्से में
ख़ुद जा कर सब्ज़ी खरीद लाई
रिश्तेदारों के नाम –
कटनी वाली, कट्टे वाली, भुसावल वाली
नील की डिब्बी एक शर्ट में खाली
गर्मी के मौसम में छत की सिंचाई
छुट्टी के बाद लौटते में आधे दिन की विदाई

‘कभी-कभी’ बालकनी से
‘सुहाग’ अपर स्टॉल
बाक़ी अपने एक साठ में
जो पहले दिन दो रुपये में मिलती थी
सिनेमाघरों से
कुछ ब्लैक करने वालों की
रोटी रोज़ी चलती थी
अमीन सायानी
विविध भारती
अमजद ख़ान. धर्मेंद्र
हर मोहल्ले में दो चार
संजय, सुनीता, बब्बू और महेंद्र

आप जैसा कोई मेरी ज़िन्दगी में आये
यादों की बारात निकली है दिल के द्वारे
हाय कोई पुराने दिन लौटा ला रे

उन्हीं दिनों की याद दिलाती ममता कालिया की एक कविता प्रस्तुत है आज जिसका शीर्षक है ‘अपरिचित से प्रेम’

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लेखक –  मनीष गुप्ता

हिंदी कविता (Hindi Studio) और उर्दू स्टूडियो, आज की पूरी पीढ़ी की साहित्यिक चेतना झकझोरने वाले अब तक के सबसे महत्वपूर्ण साहित्यिक/सांस्कृतिक प्रोजेक्ट के संस्थापक फ़िल्म निर्माता-निर्देशक मनीष गुप्ता लगभग डेढ़ दशक विदेश में रहने के बाद अब मुंबई में रहते हैं और पूर्णतया भारतीय साहित्य के प्रचार-प्रसार / और अपनी मातृभाषाओं के प्रति मोह जगाने के काम में संलग्न हैं.


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