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किसिम किसिम के NRIs

ज की शनिवार की चाय आपको अमेरिका से प्रेषित कर रहा हूँ. पिछले हफ़्ते रास्ते में था तो लिख नहीं पाया. विदित हो कि मैं NRI हूँ 1998 में अमेरिका आना हुआ पर लगभग 9 वर्षों से पूरी तरह मुंबई में ही रिहाइश है, साल में एकाध बार यहाँ आना हो जाता है. मुम्बई की पार्टीज़ में कई बार डर लगता है अपने को NRI बताने में, लोग न समझें कि हे भगवान ये फिर बोर करेगा.

 

हैदराबाद में बताओ तो उनकी पूरी बत्तीसी तारीफ़ में नुमाइश पर आ जाती है. वे पैरों में नाइकी के जूते ढूँढ़ते हैं लेकिन कोई दूसरा ब्रांड जो नहीं जानते उस पर भी संतोष कर लेते हैं. सबसे पहला सवाल उनका होता है ‘मैरिड?’ हर बंदा कम से कम आठ दस ऐसे वालिदैन को जानता है जो अपनी  “एजुकेटेड” कन्या के लिए आईटी में काम करने वाला अमेरिकन दूल्हा तलाश कर रहा है. मैं झूठ बोल देता हूँ कि हाँ शादी का सोच सकता हूँ कितने दिलवाओगे?
‘फार यू टू टू थ्री मिनिमम. ईवन टेन टू फ़िफ़्टीन.’
‘करोड़?’

 

वो अपनी गरदन पूरे विश्वास के साथ लय में घुमाता है. फिर सवाल आता है आपकी सैलरी कितनी है? मैं एक झूठा अंक बताता हूँ (जो उसकी उम्मीद से नीचे है. एक झटके में मेरी इज़्ज़त कम हो जाती है उसकी नज़रों में. फिर भी बताता है कि एक या डेढ़ करोड़ तो मिल ही जायेंगे. जब आगे की तहकीक़ात में बात निकलती है कि मैं हेच वन वीज़ा पर नहीं हूँ, मेरे पास सिटिज़नशिप है, तो उसकी आँखों की चमक दोगुनी हो कर वापस आती है और बात सात करोड़ तक पहुँच जाती है. दक्षिण में, ख़ासतौर पर आँध्रप्रदेश में अपनी बेटी के लिए अमेरिकन वर ढूँढने की बड़ी आस रहती है. वैसे जबसे ट्रम्प ने वर्किंग वीज़ा वालों के हमेशा अमेरिका में रहने के सपने पर कुछ हद तक ठण्डा पानी डाला है, अमेरिकन वर की चाहत थोड़ी कम तो हुई है.

 

कल शाम की पार्टी में, जैसे कि अमूमन होता है, शादियों की बात भी निकली. फिर उन लड़कियों की भी जो ख़ुद भी पढ़ी लिखी हैं, यहीं अमेरिका में ही नौकरी करती हैं और लड़के जितना या उससे ज़्यादा कमाती हैं. उनका क्या?
‘पाँच करोड़ दिए थे मेरी शादी में. आज से दस साल पहले. आज की तारीख़ में तो ज़मीन और सोना मिला कर बारह से ऊपर होंगे. हमारे में ऐसा ही होता है. और मेरी सेलेरी उससे ज़्यादा है. मैं दिखने में उससे ज़्यादा अच्छी हूँ’ लक्ष्मी ने बताया.

 

कल शाम एक और ख़ूबसूरत लड़की थी – शिवांगी, पच्चीस की है, अहमदाबाद से या शायद उसके पास के किसी गाँव से है. यहीं पढ़ाई की और अब नौकरी कर रही है. ‘तुम लोगों में दहेज़?’ उसे तो नहीं पता था कि कोई दहेज़-वहेज़ का चक्कर है, लेकिन वो वापस लौट कर गुजराती लड़के से शादी करने के नाम से ही सिहर जाती है. वो डेट कर रही है एक गोरे लड़के को – उसे वही पसंद है. लेकिन चार महीने डेट करते हुए हो गए हैं और वो अभी तक शादी का नाम नहीं ले रहा इस बात ने उसकी नींद ख़राब कर रखी है.

 

‘इतनी जल्दी क्या है? क्या तुम उसे इतनी अच्छी तरह जानती हो कि उसके साथ पूरी ज़िन्दगी बिताने का इरादा कर लिया है, यही तुम्हारा सर्वश्रेष्ठ विकल्प है?’

‘वो तो सही है कि इतनी जल्दी कुछ नहीं होता, पर मेरा वीज़ा आगे नहीं बढ़ा तो मम्मी वहीं किसी के साथ बाँध देंगी. आप तो सब को कन्विंस कर देते हो. माइक को बुलाऊँ क्या, उसको समझा दो न. उस गधे को मुझसे अच्छी कहाँ मिलेगी. इस ट्रम्प को तो ना वूडू कर देना चाहिए – इसने ज़िन्दगी बरबाद कर रखी है.’

 

NRI पंजाब के हों या बिहार के या बाँग्ला या मराठी, शादियों की क़िस्से सुन सुन कर आप दंग रह जायेंगे. आज भारत के महानगरों में बड़ी आसानी से विभिन्न प्रान्तों के लोगों को घुलते मिलते देख सकते हैं लेकिन यहाँ सभी समुदायों के अपने अपने बड़े बड़े समूह होते हैं. ऐसा बहुधा होता है कि आप किसी के घर में किसी उत्सव में या वैसे ही किसी सप्ताहान्त की पार्टी में जाओ तो आपको सिर्फ़ मराठी या तमिल या पंजाबी ही मिलें. बड़े शहरों से आने वालों को शुरू में यह देखना अटपटा लग सकता है.

 

फिर गल्फ़ के NRIs हैं, यूरोप के हैं, अफ़्रीका के, न्यूज़ीलैंड के, और यूक्रेन के – सब अलग अलग सभ्यताओं और संस्कृति के मिलन की उपज हैं. जैसे सभी दक्षिणवासियों को आप मद्रासी कहें तो उन्हें आपकी अक़्ल पर तरस आएगा वैसे ही सभी गल्फ़ वाले दुबई में नहीं रहते. सभी NRIs एक जैसे नहीं होते.

 

एक श्रेणी है बाहर पैदा हुए भारतीयों की. वो भी अपने देश से और भारत से अपना रिश्ता तलाशते कई बार बिखरे हुए होते हैं. अभी भी गोरी लड़की से शादी सामान्य बात नहीं है इनमें. और अमेरिकन अफ़्रिकंस से होना तो बहुत ही दुर्लभ है. भारतीय मानस यहाँ भी गोरी चमड़ी को काली से बेहतर ठहराता है. यहाँ के भारतीय मेट्रीमोनियल स्तम्भों में लड़के के गोरेपन की बात भी कर दी जाती है और लड़की भारतीय हो (या लड़का) तो माँ-बाप चैन की साँस लेते हैं.

 

ख़ैर ये तो हुई एक आम बात आम NRIs के बारे में. अभी मैं फ़्लोरिडा में हूँ. यहाँ के NRIs ने तो जान हलकान कर दी है भाई. इन सबने व्हाट्सप्प यूनिवर्सिटी से शिक्षा ले रखी है. ये मानते हैं भारत ने पिछले सालों में चीन को घुटनों पर झुका दिया है, पाकिस्तान डर से बिल में दुबका है, RBI अब वर्ल्ड बैंक को लोन देता है, बिहार को गुजरात बना दिया गया है (अब इसका जो भी मतलब हो) इस तरह की कितनी ही बातें हैं जो इस संपन्न समुदाय की मानसिक संकीर्णता पर प्रश्नचिन्ह लगाती हैं. यह झूठ फ़ैलाने वाले आईटी सेल की सफलता की कहानी है लेकिन कैसे पढ़े लिखे लोग इस जहालत का शिकार हो सकते हैं इस बात पर मुझे गहरा आश्चर्य है.

 

इस विषय पर थोड़ा ही लिखा है हालाँकि बड़े ग्रन्थ लिखे जा सकते हैं (लेखकों इस विषय को भी खंगालने की सोचो). लेकिन सब एक से नहीं होते, सब NRIs डॉक्टर या सॉफ़्टवेयर इंजीनियर या कैबी नहीं होते. और भारतीय संगीत और संस्कृति महज़ भारतीयों की ही पसंद या ज़िम्मेदारी नहीं है सुनिए ‘पधारो म्हारे देस’ गियाना ब्रैंटली से.

लेखक –  मनीष गुप्ता

हिंदी कविता (Hindi Studio) और उर्दू स्टूडियो, आज की पूरी पीढ़ी की साहित्यिक चेतना झकझोरने वाले अब तक के सबसे महत्वपूर्ण साहित्यिक/सांस्कृतिक प्रोजेक्ट के संस्थापक फ़िल्म निर्माता-निर्देशक मनीष गुप्ता लगभग डेढ़ दशक विदेश में रहने के बाद अब मुंबई में रहते हैं और पूर्णतया भारतीय साहित्य के प्रचार-प्रसार / और अपनी मातृभाषाओं के प्रति मोह जगाने के काम में संलग्न हैं.


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