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वन नाइट स्टैंड!

“There are only two kinds of women”,
पिकासो ने कहा था
Goddesses and doormats”

सनसनाहट की तनी हुई डोरियाँ
ख़ून की रफ़्तार में आँधियाँ
कानों में विद्युत की तड़क
वह शायद मेरा नाम पूछ रहा है

अड़तीस.. या चालीस
अब इस उमर में क्या कुँवारा होगा..?
शादीशुदा हो तो बेहतर

पिकासो की पोती का कहना था कि
वे यौनता की गलियों में कलासंधान कर रहे थे
प्रेमिकाएँ और पत्नियाँ प्रेरणा थीं उनकी
जब कोई औरत मिले – मोहिनी परी/देवी
तो कला का चरखा चले
चरखा बंद होता आए
तो समझो डोरमैट हो गई है
उसके जाने का वक़्त है.
इसने दूसरी शैम्पेन बुलवाई है मेरे लिए
ये मुझे देवी समझता है आज?

पूरे 300 दिन हुए हैं
कुछ हुए
हम लोग भाई बहन बन चुके हैं क्या?
80 प्रतिशत शादियाँ
एसेक्सुअल हो जाती हैं वैसे तो
किसका दोष, किसे पता
जोश? कहाँ उड़ा

बाथरूम में पंद्रह मिनट से हूँ
पैर इतने नहीं काँपे कभी
कशमकश की आग में
इंसान झुलस जाए, यह इल्म नहीं था
हाँ या नहीं..
तीसरी बार ठण्डा पानी डाला है चेहरे पर
बातें तो बड़ी बड़ी करती हूँ
पुरुष के समान स्त्री के हक़ की
अप्राकृतिक नैतिकता की
‘प्रश्न चिन्हों की रानी’
अख़बारों ने मुझे घोषित किया है.
राम, कृष्ण, सीता, उर्मिला, पाण्डव
इस्लाम, ओल्ड टेस्टामेंट
भ्रूण हत्या, खाप, बोकोहरम
अमेरिका, बॉलीवुड
दहेज़, बाल मजदूर
घर से निकलने की, काम करने की, पति चुनने की स्वतंत्रता
औरतों की अन्याय सहने की आदत..
प्रश्न चिन्ह लगाना ही मेरा काम है.
कागज़ पर देखें तो आज़ादी मेरा नाम है.

आश्वस्त, सुरक्षित अजनबी
खिलाड़ी है, उसका रोज़ का काम है.
कल सब अपने अपने देश लौट जाएँगे
मैंने ग़लत नाम बताया है
उसने भी झूठ ही कहा होगा
ज़्यादा सोचना बेवक़ूफ़ी है
अब जो होगा सो होगा
लानत ऐसे जीवन पर
जो कभी न फ़िसले
दृढ़ कदम बाहर निकले

‘हाँ, मैं ले लूँगी शैम्पेन’
लेकिन ये तो स्नेह से देख रहा है मेरी तरफ़
थोड़ा सम्मान भी है आँखों में
इसे ऊपर जाने की कोई जल्दी नहीं है
कहता है मैं समझदार हूँ..

सब कुछ गड़बड़ है
मैं अकेली ही वापस जाती हूँ,
अच्छा है –
ग्लानि भी नहीं होगी

पिकासो द्वारा बनाया गया मेरी थेरेस वाल्टर का स्केच – ये मॉडल भी थीं और प्रेमिका भी

अपने समाज में अत्यधिक यौन कुंठाएँ व्याप्त हैं. किसी मनोचिकित्सक से दरयाफ़्त कर लें अगर विश्वास न हो. सबका यह भी कहना है कि इस विषय पर एक स्वस्थ्य विमर्श की कमी है.. सब कुछ दरी के नीचे झाड़ दिया जाता है. जब एक आदमी और औरत स्वेच्छा से किसी को चुनते हैं तो वे फ़रिश्ते प्रतीत होते हैं. लेकिन संबंधों पर काम न करने की वजह से बोझिलता आ जाती है जिसे वे अपना प्रारब्ध मान बैठते हैं. आज बहुत कुछ घट रहा है हमारे समाज में उसके लिए भी बातचीत की कमी ज़िम्मेवार है शायद. पियूष मिश्रा पेश कर रहे हैं अपनी कविता ‘वन नाइट स्टैंड’ :

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लेखक –  मनीष गुप्ता

हिंदी कविता (Hindi Studio) और उर्दू स्टूडियो, आज की पूरी पीढ़ी की साहित्यिक चेतना झकझोरने वाले अब तक के सबसे महत्वपूर्ण साहित्यिक/सांस्कृतिक प्रोजेक्ट के संस्थापक फ़िल्म निर्माता-निर्देशक मनीष गुप्ता लगभग डेढ़ दशक विदेश में रहने के बाद अब मुंबई में रहते हैं और पूर्णतया भारतीय साहित्य के प्रचार-प्रसार / और अपनी मातृभाषाओं के प्रति मोह जगाने के काम में संलग्न हैं.


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