Site icon The Better India – Hindi

निराला : ध्रुपद : गुंदेचा बंधु : अंतिम प्रणाम

निराला जी शास्त्रीय रागों पर आधारित कविताएँ लिखा करते थे, उनकी एक कविता पर नज़र डालिए:

ताक कमसिनवारि,
ताक कम सिनवारि,
ताक कम सिन वारि,
सिनवारि सिनवारि।

ता ककमसि नवारि,
ताक कमसि नवारि,
ताक कमसिन वारि,
कमसिन कमसिनवारि।

इरावनि समक कात्,
इरावनि सम ककात्,
इराव निसम ककात्,
सम ककात् सिनवारि।

शास्त्रीय संगीत के बारे में कोई कभी नहीं कहेगा कि इसमें अनर्थक शब्दों के साथ खेल होता है. और मश्हूरे-ज़माना संगीतज्ञ के मुँह से ऐसी बात सुन कर हम चौंक पड़े थे. बात हो रही थी ध्रुपद गायन के चमकते सितारे गुंदेचा बंधुओं से. ‘तब हमने सोचा कि इन अनर्थक शब्दों के बजाय क्यों न हम सार्थक कविता को चुनें..’ उसके बाद उन्होंने हिंदी कविता के मूर्धन्य कवि सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ जी के संगीत प्रेम और ज्ञान के बारे में बताया और उनकी कुछ कविताएँ भी सुनायीं जो आज आपके लिए शनिवार की चाय में प्रस्तुत हैं.

आइये एक चाय पद्म श्री रमाकांत गुंदेचा जी के नाम पी जाए. जिनका कुछ दिनों पहले 57 वर्ष की अल्पायु में आकस्मिक निधन हुआ है.


यदि आपको इस कहानी से प्रेरणा मिली है, या आप अपने किसी अनुभव को हमारे साथ साझा करना चाहते हो, तो हमें hindi@thebetterindia.com पर लिखें, या Facebook और Twitter पर संपर्क करें। आप हमें किसी भी प्रेरणात्मक ख़बर का वीडियो 7337854222 पर व्हाट्सएप कर सकते हैं।

Exit mobile version