वे प्रेम नहीं करते
अपनी फटन में
गुलाबी थीगड़ा लगा
चार दिन
बहलाते हैं दिल
फिर पहली बरसात में
भून कर खा जाते हैं प्रेमी का कन्धा
शाइस्तगी की बातें
प्रेम का भ्रम
भ्रम से प्रेम
शीशे के टुकड़े से गुज़रा
किरण का प्रत्यावर्तित सच
वो हँसना चाहता था
लेकिन उसे सूझा प्रेम
नीली स्याही पी,
उठाई क़लम
बनाए जंगल, हवा, मेघ, कुहरे
..पंछी, हिरन
सब झोंक
राई को पहाड़ बनाया
बर्फ़ भी गढ़ी
तितलियाँ भी
भाषा पार कर
लिखे जानवरों के गीत
उकेरी स्फ़ीत, तीव्र नदी
चलो!
च लो
च लो !
चअअअअ लोओओओओओओओओओ भी
दोनों तैयार हुए
बाक़ायदा, बातरतीब नक़्शा लिए
पहाड़ी प्रसारों पर बनेगा
छोटा सा घर
हसीनतर तुम
तुम्हारे साथ जीवन
चलो!
च लो
च लो लालालालाला..
ला ललालालाला
ला नी धा पा ग म् –
अचानक बरसात हुई
वो डर गई
और उसने उसका कन्धा
भून कर खा लिया
* * *
बस इतनी है कविता. इतना ही है जीवन का सच. प्रेम भी यूँ तो सच है. लेकिन सबके लिए नहीं. सभी प्रेम के उपभोक्ता हैं. बस उपभोक्ता. प्रेम करके अपनी उड़ान को पंख देना सबके बस की बात नहीं. इस मामले में इतनी ग़रीबी है कि मत पूछिए. मत पूछिए कि जब प्रेम इतनी वज़नदार, इतनी मीठी, इतनी तिलिस्मी शय है तो क्यों लोग इसे दर्द और दुःख से बाँचते हैं. ये बात सब नहीं समझेंगे, सब नहीं मानेंगे लेकिन कमज़र्फों का प्रेम प्रेम नहीं होता.
पता नहीं क्यों आज पारुल पुखराज की लिखी हुई कविता ‘अज्ञात की सुध में’ सुनाने का मन कर रहा है. बताइयेगा कि कैसी लगी:
लेखक – मनीष गुप्ता
हिंदी कविता (Hindi Studio) और उर्दू स्टूडियो, आज की पूरी पीढ़ी की साहित्यिक चेतना झकझोरने वाले अब तक के सबसे महत्वपूर्ण साहित्यिक/सांस्कृतिक प्रोजेक्ट के संस्थापक फ़िल्म निर्माता-निर्देशक मनीष गुप्ता लगभग डेढ़ दशक विदेश में रहने के बाद अब मुंबई में रहते हैं और पूर्णतया भारतीय साहित्य के प्रचार-प्रसार / और अपनी मातृभाषाओं के प्रति मोह जगाने के काम में संलग्न हैं.