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हसीन हो कहानी

क दिन जब वह
चाय, मुरमुरे ले
किताब बंद कर
दूर वादी में झाँकते बैठा
तब समय
हमेशा की तरह
तीव्र वेग से गतिमान था
कितनी सदियों में
कितने उत्कंठाओं ने
इस वादी को निहारा होगा.

 

पिछली सदी से गाड़ी आगे बढ़ी
नयी सदी,
फिर एक और
एक और काल बीता
इतिहास रीता
जीता? या हारा मानव?
मानवता की नौका
अपने को महत्वपूर्ण
बनाने की प्रक्रिया
मानवीय कश्मकश
घड़ी रोकने की
एक बाँध बनाने की
समय की नदी
का प्रचंड वेग
कल तुम बीस के थे
कल तुम तीस के थे
कल चालीस
पचास का स्टेशन
बस आ जाएगा
जितनी देर जूते पहनने
में लगेगी
फिर घुटने
आवाज़ करने लगेंगे
स्तन कमर को छुएँगे
और अपने साम्राज्य की
सबसे ऊँची चोटी पर खड़े
क्या सोचता होगा वह?

 

सहसा एक दिन प्यार होगा
वक़्त पर बाँध जैसे
जो जितना संभाल ले
उसका उतना पानी

 

सर्जना के क्षण, उत्कट
प्रकृति की प्रवत्ति
सृष्टि के विनाश के क्षण
बहुत प्यारे हैं
तुम्हारी शोख़ शरारत जितने
देर रात की हरारत जितने
फिर मैं अपना बाँकपन
उठा, साइकिल पे रख चला जाऊँगा
और तुम अपने रूप की
झील में डूब जाना
दूसरे ही पल
पटल पर
नया चित्र उकेरेंगे
पंछियों के नवजात

 

बाँध जितना बड़ा हो
उतने बड़े झटके से टूटेगा
उतनी हसीन कहानी मानी जाएगी

 

आज की शनिवार की चाय महानगर की धड़कन से परे एक सुदूर गाँव में पकी है. किसी की तेरहवीं है. जीवन कितनी जल्द बीत जाता है. आप अपने आज को व्यर्थ न जाने दें. अपनी कहानी हसीन बनाएँ. मैं दुःखी नहीं हूँ न आपको वितृष्णा से भरना चाहता हूँ. बस चेताना चाहता हूँ..

 

आज का वीडियो एक मीठा सा विरह गीत है. पेश ए ख़िदमत है:

लेखक –  मनीष गुप्ता

हिंदी कविता (Hindi Studio) और उर्दू स्टूडियो, आज की पूरी पीढ़ी की साहित्यिक चेतना झकझोरने वाले अब तक के सबसे महत्वपूर्ण साहित्यिक/सांस्कृतिक प्रोजेक्ट के संस्थापक फ़िल्म निर्माता-निर्देशक मनीष गुप्ता लगभग डेढ़ दशक विदेश में रहने के बाद अब मुंबई में रहते हैं और पूर्णतया भारतीय साहित्य के प्रचार-प्रसार / और अपनी मातृभाषाओं के प्रति मोह जगाने के काम में संलग्न हैं.


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“NOTE: The views expressed here are those of the authors and do not necessarily represent or reflect the views of The Better India.”

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