भूत, देव
नरक, पाताल
ख़ुशी की खोज/ बुरे हाल
भविष्य की तिकड़म
गुज़री बातों के जाल
भगवान या नास्तिकता?
और ब्रह्माण्ड..
क्या है इसकी वास्तविकता?
अब भई ये सवाल सबके सवाल नहीं. आम आदमी तो खाना-पीना-कपड़े-परिवार-मकान-नाम के चक्कर में उलझा जीवन गुज़ार देता है. लेकिन बहुत से लोग हैं जो इनसे ऊपर उठ कर जीवन के मूल प्रश्नों तक पहुँच पाते हैं.
क्या जीवन महज़ पैदा होने, खाने-कमाने-परिवार पालने और फिर मर जाने का नाम है? अगर भगवान की बनाई दुनिया है तो क्या इसलिए बनाई थी कि इंसान बचपन स्कूल में बरबाद कर दें, जवानी दफ़्तर/दुकान में और बुढ़ापा घुटनों की मालिश करते या सही रक्तचाप को बनाये रखने की कवायद में जाए?
क्या स्कूल नहीं जाना चाहिए? तो फिर क्या करें बच्चे?
और रोज़गार नहीं होगा तो घर कैसे चलेगा?
लोग तो कहते हैं कि हमारी आत्मा, परमात्मा से मिलने के लिए बैचेन होती है. हमें जीवन इसीलिए मिला है कि हम अपने कर्मों से मोक्ष पा सकें. तो क्या लोन की किश्त भरते हुए हम परमात्मा की ओर बढ़ रहे हैं?
फिर से कह दूँ कि ऐसे सवाल हर किसी के ज़हन में नहीं आते. ये जीवन क्यों मिला है मुझे, मैं हूँ कौन, मुझे क्या होना चाहिए, मुझे कहाँ जाना है.. जैसे प्रश्न एक ख़ास तबके को परेशान करते हैं सभी को नहीं.
मानव कौल एक अभिनेता होने के साथ-साथ, एक परिपक्व नाटककार भी हैं. हिन्दी कविता प्रोजेक्ट में आरम्भ से ही जुड़े थे. आज के वीडियो में उनके एक नाटक ‘इल्हाम’ से एक कविता ‘रेखाएँ’ आप के लिए प्रस्तुत है लेकिन एक चेतावनी के साथ कि कहीं आप जीवन की ऊपरी भौतिक परत से छन कर मूल प्रश्नों के बीच न गिर जाएँ. कहीं आपको इल्हाम न छू ले..
लेखक – मनीष गुप्ता
हिंदी कविता (Hindi Studio) और उर्दू स्टूडियो, आज की पूरी पीढ़ी की साहित्यिक चेतना झकझोरने वाले अब तक के सबसे महत्वपूर्ण साहित्यिक/सांस्कृतिक प्रोजेक्ट के संस्थापक फ़िल्म निर्माता-निर्देशक मनीष गुप्ता लगभग डेढ़ दशक विदेश में रहने के बाद अब मुंबई में रहते हैं और पूर्णतया भारतीय साहित्य के प्रचार-प्रसार / और अपनी मातृभाषाओं के प्रति मोह जगाने के काम में संलग्न हैं.