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हम कौन हैं? [हम सब एक बराबर नहीं हैं]

क्या हैं?
क्या चाहते हैं?
अकेलापन?
नहीं, साथ महफ़िल भी तो चाहिए
बंजारापन?
साथ ही घोंसला बनाने का मन भी तो है..

किसी को प्यार चाहिए
किसी को किडनी
घर बनाने का सपना है
दूर कहीं भाग जाने की भावना है
वज़न कम कर लूँ ?
सर्जनात्मक तुष्टि कैसे मिले?
पूरी नींद ही नहीं होती
अगले महीने का किराया?
पैसा है, शोहरत कहाँ?
ताकत है, लेकिन कितनी ज़िम्मेदारी के साथ?

1943 में मॉस्लो ने ज़रूरतों की सीढ़ी बनाई (Moslow’s theory of Hierarchy of Needs). पिछली सीढ़ी पर चढ़े बिना आवश्यकताओं की अगली सीढ़ी पर नहीं चढ़ा जा सकता. सबसे पहले भूख, प्यास और नींद है. आज का खाना मिल गया तो उसकी स्थिरता चाहिए – एक छत की ज़रूरत और घर का साज़ोसामान. उस सीढ़ी के बाद समाज, परिवार, दोस्ती, स्नेह लेने और देने की आवश्यकताएँ बलवती हो उठती हैं. जब वे हमें मिल जाती हैं तब प्रतिष्ठा, उपलब्धियों, शोहरत, हैसियत, संतुष्टि के पीछे भागने लगते हैं हम.

लेकिन उसके आगे भी एक सीढ़ी है.. उसके बारे में लोग क्या जानते हैं? कितनी बात होती है उस बारे में? सभी लोग प्रशंसा, गौरव, उपलब्धियों, सफलताओं के पीछे भागते, असफ़लताओं को कोसते ज़िन्दगी बिता देते हैं. जबकि कोई ख़ुश नहीं है अपनी जोड़-तोड़-होड़ से लेकिन सफ़लता को पुनः परिभाषित करने के लिए भी तैयार नहीं है. यही सीढ़ी सबसे बड़ा कुँआ है जो लील लेता है अधितकर लोगों को. इसी सीढ़ी से निकलने के लिए राम का व्यक्तित्व रचा गया.. मर्यादा पुरुषोत्तम से लोग मर्यादा सीखने के बजाय उनका मंदिर बनाने में ज़्यादा दिलचस्पी रखते हैं और इसीलिए नहीं बढ़ पाते. इसीलिए दुःख में गोते खाते रहते हैं.

दूसरी तरफ़ अपनी मर्यादा को परिभाषित करने वाले लोग हैं जो कहते तो हैं कि ‘दाल रोटी खाओ और चैन की बंसी बजाओ’ लेकिन फिर भी दुःखी हैं. ऐसा क्यों है आप ही बतायें. मुझे लगता है कि उन्होंने अपने आपको पूरी तरह विकसित नहीं होने दिया.. और दुनिया से डर कर मर्यादा स्थापित कर ली. दाल-रोटी भी मर्यादा है किसी के लिए और विश्व-विजय भी मर्यादा में है किसी के लिए. महत्वाकांक्षा बुरी ही होती है ऐसा नहीं है. अपनी कमज़ोरियों, आलस, के कारण सपने देखने से बचना भी बहुत से लोगों का जीने का तरीक़ा है – यही उनकी परेशानियों का कारण है.

बहरहाल, आज की शनिवार की चाय के साथ आप अपने बारे में सोचें कि आप ज़िन्दगी की किस सीढ़ी पर खड़े हैं. क्या आप आगे बढ़ सकते हैं? दूर से अपने आप को देखिए और सोचिये कि क्यों यह इंसान दुःख चुनता है, क्यों यह अपने जीवन की सुंदरता, इसके अवसरों को नहीं देख पाता है.. इतना तो आप अपने लिए कर ही सकते हैं. कि नहीं?

आज की कविता : स्वप्न :

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लेखक –  मनीष गुप्ता

हिंदी कविता (Hindi Studio) और उर्दू स्टूडियो, आज की पूरी पीढ़ी की साहित्यिक चेतना झकझोरने वाले अब तक के सबसे महत्वपूर्ण साहित्यिक/सांस्कृतिक प्रोजेक्ट के संस्थापक फ़िल्म निर्माता-निर्देशक मनीष गुप्ता लगभग डेढ़ दशक विदेश में रहने के बाद अब मुंबई में रहते हैं और पूर्णतया भारतीय साहित्य के प्रचार-प्रसार / और अपनी मातृभाषाओं के प्रति मोह जगाने के काम में संलग्न हैं.


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