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तुम्हारे कमरे में!

मेरी लौ

ज़्यादा चमकदार है
तुम्हारे कमरे में.
इसे प्रेम कह लो
लेकिन मेरे लिए
यह मुक्ति की ओर
एक कदम है.

 

तुमको पाना
लक्ष्य हो
इतना बचपना नहीं
अब नहीं
अपने को खोज लूँ
वो बरसात हो
वो वातायन हो

 

तुम प्यार में
नष्ट करो
अपने को
मुझे
हमें

 

तुम्हें क्या?
मुझे तुम्हारे समर्पण से क्या हासिल
मैं न्योछावर करके सब कुछ
अपना श्रेष्ठ उपन्यास लिखना चाहता हूँ
तुम्हारे कमरे में
कोई किताब पढ़ना चाहता हूँ

 

हमारी विडंबना यह है
कि तुम्हें प्यार चाहिए
मुझे उत्थान
और पतन
और मुक्ति
तुम नहीं चाहिए
जो भी चाहिए
अपना चाहिए

 

* * *

 

मैं दोहराता हूँ कि प्रेमी के समर्पण से कुछ हासिल नहीं होता. प्रेम में अपने पूर्ण समर्पण की अवस्था में ही व्यक्ति की उन्नति छुपी होती है. आपकी आवश्यकता यह है कि आपका प्रेमी आपके लिए अपना सर्वश्रेष्ठ बनने की राह बने. इस शनिवार की चाय के साथ इसी बात पर मनन करें कि आख़िर आप प्रेम से क्या हासिल कर रहे हैं, क्या हासिल करना चाहते हैं? प्रेम नाम की अशर्फ़ी कहीं कौड़ियों के मोल तो नहीं चला रहे हैं. क्या आपका प्रेम आपका उत्थान करता है. या बस क्षणिक सुख ही है.

 

आज ख़ूबसूरत और ज़हीन कृतिका देसाई पढ़ रहीं हैं एक अंश ‘कनुप्रिया’ से जो कदाचित हिन्दी साहित्य के सर्वश्रेष्ठ प्रेमग्रंथों में से एक है. इसके लेखक हैं धर्मवीर भारती :

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लेखक –  मनीष गुप्ता

हिंदी कविता (Hindi Studio) और उर्दू स्टूडियो, आज की पूरी पीढ़ी की साहित्यिक चेतना झकझोरने वाले अब तक के सबसे महत्वपूर्ण साहित्यिक/सांस्कृतिक प्रोजेक्ट के संस्थापक फ़िल्म निर्माता-निर्देशक मनीष गुप्ता लगभग डेढ़ दशक विदेश में रहने के बाद अब मुंबई में रहते हैं और पूर्णतया भारतीय साहित्य के प्रचार-प्रसार / और अपनी मातृभाषाओं के प्रति मोह जगाने के काम में संलग्न हैं.


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