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आपके भीतर की कोयल कैसी है?

खिड़की के बाहर किसी त्योहार का शोर.
लाउडस्पीकरों की होड़
हर गाना पहले से ज़्यादा ‘मस्त’ है
बीट ऐसी कि कुर्सी भी खड़ी हो के नाचने लगे

भीड़ के महासागर मुंबई में

जोश की कमी नहीं है
सबको पार्टी माँगता
दारू, या नो दारु
डान्स करना माँगता
और जो गाना ज़्यादा ज़ोर से चीखे
उस पर उतना ‘मस्त’ नाच
जो ज़्यादा झटके दे..
हमारे समाज को
परिपक्व इसलिए कहा जाए
कि लोग नाचते हैं.
मिल कर खाते
गाते-बजाते
एक दूसरे के घर
सोते-सुलाते हैं.
यह ज़रूरी है
दिहाड़ी चलाने का
यही पेट्रोल है
लेकिन फिर भी, नज़रअंदाज़ नहीं हो पा रहा है कि
जैसे जैसे समाज में ‘मस्त’ बढ़ रहा है
अवसाद और तनाव बढ़ रहा है
बढ़ा तनाव – उतनी बड़ी ‘मस्त’ की गोली
उतना बड़ा पैग माँगता
उतनी ज़्यादा मस्ती माँगता

फ़ेसबुक जन्य डिप्रेशन के 70% लोग शिकार हैं. सोशल मीडिया की मछलियाँ अपनी पींग में कम खिलती हैं, दूसरों की डींग में अधिक गलती हैं. चमक-दमक एकमात्र गहना है. लोग लगातार जो नहीं हैं वह दिखने के लिए मरे जा रहे हैं. जीवन नौ रसों का सुन्दर संगम है इसमें किसी भी रस को बड़ा या छोटा नहीं कहा गया है. आज अगर बच्चा जन कर प्राकृतिक रूप से वात्सल्य में डूबने वाली माँ पोस्टपार्टम डिप्रेशन का शिकार है तो हमें आज की दुर्दम सभ्यता पर सवाल उठाने ही होंगे.समाज ग़लत दिशा में अग्रसर हो सकता है. लेकिन आप क्या कर रहे हैं अपने लिए? आपके अंदर रहने वाली कोयल के लिए? ग़लत धार में पैठे क्या आप पूरी कोशिश से उससे निकलने की कोशिश कर रहे हैं? लगातार फ़ोन उठाये घूमने वाले एक उपन्यास पढ़ पाने की क्षमता खो बैठे हैं और ADHD (Attention Deficit Hyperactivity Disorder) की चपेट में हैं. आप इस पिंजरे में फँसे हैं अगर, तो क्या कर रहे हैं इससे निकलने के लिए?

मैं बताता हूँ – आप इससे निकलना ही नहीं चाहते. चार बीज देख कर आप इस पिंजरे में घुसे थे वही बीज आज भी आपको वहीं रखे हैं. इस पिंजरे का कोई दरवाज़ा ही नहीं है, चाहें तो बाहर उड़ जाएँ.. लेकिन नहीं. यहाँ आप अवसाद और तनाव के कीचड़ में डूबे रहते हैं और ‘मस्त’ ढूँढ ढूँढ कर अपना इलाज करते रहते हैं.

अगर कोई लगातार अवसाद का शिकार है तो यह बहुत संभव है कि वह व्यक्ति बेवक़ूफ़ है. 
(आपकी बात नहीं हो रही है आपकी “सिचुएशन” अलग है)

आज की प्रस्तुति : ‘मेरे भीतर की कोयल’ सर्वेश्वर दयाल सक्सेना
प्रस्तुतकर्ता : सफ़िया अली

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लेखक –  मनीष गुप्ता

हिंदी कविता (Hindi Studio) और उर्दू स्टूडियो, आज की पूरी पीढ़ी की साहित्यिक चेतना झकझोरने वाले अब तक के सबसे महत्वपूर्ण साहित्यिक/सांस्कृतिक प्रोजेक्ट के संस्थापक फ़िल्म निर्माता-निर्देशक मनीष गुप्ता लगभग डेढ़ दशक विदेश में रहने के बाद अब मुंबई में रहते हैं और पूर्णतया भारतीय साहित्य के प्रचार-प्रसार / और अपनी मातृभाषाओं के प्रति मोह जगाने के काम में संलग्न हैं.


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