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बाबा बुल्ले शाह दा टूथपेस्ट!

“ओये बुल्लया तू किस बात का बाबा है?”
“ये कौण सा सवाल हुआ प्रा?”
“ना तेरे ब्राण्ड दा आटा-नमक, ना कच्ची घाणी का सरसों दा तेल, ना कोई शैम्पू.. ये जो कमली कमली गा के तूने इन्ना वड्डा ब्राण्ड खड़ा किया है वो किस काम दा”
“ब्राण्ड..?”
“होर की? तैन्नू पता है लंदन से ले के कनैडा तक, दिल्ली से कोलकाता तक लोग तेरे गाने, रीमिक्स ते मैशअप बना के आज तक बजा रहे हैं. पाँच सितारा सूफ़ी मंदिरों में तू सबसे वड्डा सूफ़ी बना कर पूजा जांदा है. क्या तू सोया रहेगा? क्या तेरा कर्तव्य नहीं है कि तू देश के लिए खड़ा हो.. कुछ करे समाज दे वास्ते.. सोच जब बुल्ले शा दा घी खाके नयी पीढ़ी बुल्ले शा दी आयुर्वेदिक जींस पहन के बाहर निकलेगी तो क्या ही शान होगी..

फ़ाज़िल दोस्तो,

आप ही कहें ये बुल्ला पड़ा पड़ा ‘कमली हाँ’ ‘कमली हाँ’ (मैं पागल हूँ) करता रहता है. उधर बाबा लोग देश समाज के भले के लिए पता नहीं क्या क्या कर रहे हैं. गए ज़माने जब रब का नाम, आत्मा-परमात्मा की बातें करना बाबा लोगों का काम था. एकनाथ जैसे का क्या हुआ.. पुरंदरदास? घूम घूम के गाते गाते क्या उखाड़ लिया? एक यूनिवर्सिटी छोड़ के गए? एक फाउंडेशन जो सॉलिड PR के साथ दुनिया का भला करे?

बुल्ले नू समझाओ लोगों. ऐन्नु समझाओ. ऐसे कोई काम चलता है भला?

आज का बाबा ज़्यादा ज़िम्मेदार है. उसे चिंता है कि देश के बाल मुलायम हों, देश के पास इम्युनिटी बूस्टर्स हों, वेट-लॉस करने का साज़ो-सामान हो. शिशु-केयर डायपर के बिना कैसे पीढ़ी पनपेगी.. और नूडल्स?? हाँ नूडल्स.. क्या बाबा के रहते कोई माई का लाल विदेशी नूडल्स खायेगा? बताइये भला सच्चा बाबा तो ये हुआ न जो ज़मीनी हक़ीक़त को मद्देनज़र रखता हुआ ..आपकी ऑयली त्वचा के लिए क्रीम-श्रीम बनाये न कि बुल्ले की तरह पड़ा पड़ा रोटियाँ तोड़े और बड़बड़ाता रहे ‘बुल्ला की जाणा, मैं कौण?’ (बुल्ला क्या जाने कि वह कौन है).

भैणों, परजाईयों!
इक्क वारि फिर बुल्ले नू समझावण जाओ तुस्सी. पता है पता है तुम्हारी नहीं सुनता पर इक्क कोशिश होर कर लो. की जांदा है? बुल्ला कहीं मान गया तो सिर्फ़ म्यूज़िक राइट्स से पूरे पिंड के वारे-न्यारे हो जायेंगे.

समझाओ इसे अब आत्मा परमात्मा, इल्म-उल्म की बातें तज दे.. अब अलग ज़माना है. आज की जनता अपने बाबा लोगों के किये बलात्कार सह लेती है.. उनकी सियासी महत्वाकांक्षाओं पर सवाल नहीं उठाती.. उनके बेलौस व्यापारीपने के बावजूद मौक़ा पाते ही मत्था टेक आती है उनकी चौखट पर.. इतनी उर्वरा भूमि कभी और मिलेगी बुल्ले को? आप ही दस्सो परजाईयों इतनी मूर्ख जनता मिलेगी कभी?? वैसे उम्मीद तो नहीं है लेकिन कभी बहुत ही निचले स्तर की समझदारी भी आ गयी इन लोगों में और बाबा लोगों से सूफ़ी-संत वाली अपेक्षाएँ रखने लगे तो? तो??

अभी वक़्त है.. जगाओ बुल्ले नू!

* * *

“सर! सर!”, डिपार्टमेंटल स्टोर में एक सेल्स वाला बंदा पीछे से दौड़ कर आया. कमीज़ पर बड़ा सा श्री-श्री का लोगो था.

“भई मेरे पास शराब और यूट्यूब है, मुझे आर्ट ऑफ़ लिविंग की ज़रुरत नहीं.”, मैंने उससे छुट्टी चाही.

“हे हे”, उसने खीसें निपोरीं, “सर, वो तो मैं भी नहीं करता. आपने पातञ्जलि का टूथपेस्ट लिया है आप ये आज़मा के देखिये”
उसने श्री-श्री आयुर्वेद का टूथपेस्ट आगे किया.

‘हैं? इनसे रहा नहीं गया..कितनी परेशानी होती होगी न इन्हें बाबा रामदेव की फलती दूकानदारी देख कर. क्या बातें होती होंगी इनके आध्यात्मिक हेड-क्वार्टर्स में? ‘सर’ कहते होंगे इन्हें? किस तरह की योजनायें बनायी जाती होगीं?
क्या वे कहते होंगे कि कोलगेट के 52% मार्केट शेयर को 2017 में 2.2% से 6.2% तक पहुँचा कर रामदेव जी (जी लगाते होंगे, या ‘उनके’ कह कर काम चलता होगा?) के टूथपेस्ट ने तगड़ा झटका दिया है.. अपन इसी प्रॉडक्ट पर ज़ोर रखते हैं ..

“ये क्यों आज़माऊँ? क्या अंतर है दोनों में?”

“ये देखिये, इस पर लिखा है यह शत-प्रतिशत वेजिटेरिअन है”

“अच्छा, तो क्या ये वाला नहीं है?”

“नहीं सर वो भी होगा.. अब सर मेरी नयी नौकरी है.. आप ले लीजिये न, इस पर अभी सोलह रुपये की छूट भी है”

अब उस बेचारे की नयी नौकरी थी (छूट थी) इसलिए मैंने टूथपेस्ट ले लिया और ये सोचता हुआ निकल गया कि बाबा बुल्लेशाह के टूथपेस्ट का क्या नाम होता.

* * *

बाबा बुल्लेशाह से परिचित हो जाइये विनोद दुआ के ज़रिये.. ये गायक नहीं हैं, लेकिन दिल से गाया है तो दिल में उतरता है. लिंक : https://youtu.be/j_itDaPEAlc


लेखक –  मनीष गुप्ता

फिल्म निर्माता निर्देशक मनीष गुप्ता कई साल विदेश में रहने के बाद भारत केवल हिंदी साहित्य का प्रचार प्रसार करने हेतु लौट आये! आप ने अपने यूट्यूब चैनल ‘हिंदी कविता’ के ज़रिये हिंदी साहित्य को एक नयी पहचान प्रदान की हैं!


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