पंजाब के गुरदासपुर जिले के छीना रेलवाला गाँव के सरपंच पंथदीप सिंह छीना न सिर्फ़ देश के अन्य सरपंच बल्कि आम युवाओं के लिए भी एक प्रेरणा हैं। उनके विकास-कार्यों से प्रभावित होकर पंचायती राज मंत्रालय ने उन पर एक डोक्युड्रामा वीडियो बनाई है।
सिर्फ़ 21 साल की उम्र में सरपंच बनकर अपने गाँव की ज़िम्मेदारी लेने वाले पंथदीप को उनके विकास मॉडल और कामों के लिए प्रधानमंत्री द्वारा भी राष्ट्रीय सम्मान से नवाज़ा जा चुका हैं। दूसरी बार, गाँव के सरपंच बनने वाले पंथदीप ने अपनी ज़िम्मेदारियों के साथ-साथ अपनी पढ़ाई भी जारी रखी हुई है। फ़िलहाल, वे जालन्धर से ‘पंचायती राज’ विषय पर पीएचडी कर रहे हैं।
बचपन से ही सामाजिक कार्यों के प्रति रूचि रखने वाले पंथ ने कभी भी सरपंच बनने के बारे में नहीं सोचा था। उनके घर में हमेशा पढ़ाई-लिखाई का माहौल रहा और इसलिए उन्हें भी अच्छा पढ़-लिखकर बाहर जाने का मन था। इसी सोच के साथ वे कुछ समय के लिए ऑस्ट्रेलिया गये भी, पर ज़िंदगी प्लानिंग के हिसाब से कहाँ चलती है।
उन्होंने बताया,
“मैं वहां कुछ समय के लिए ही था पर मुझे हमेशा यह रहता कि यार हमारा गाँव ऐसा क्यों नहीं बन सकता। इसलिए जब मैं वापस गाँव आ गया तो मैंने अपनी पढ़ाई के साथ-साथ गाँव के लिए भी छोटे-बड़े कदम उठाने शुरू किए। अपने यार-दोस्तों के साथ मिलकर एक टीम बनाई और हम युवा गाँव में स्वच्छता, हरियाली आदि जैसे अभियान करने लगे।”
साल 2013 में पंथ ग्रेजुएशन के आख़िरी साल में थे और उनके गाँव में सरपंच के लिए चुनाव होने वाले थे। गाँव के सभी युवाओं ने राय रखी कि क्यों न पंथ को ही सरपंच बनाया जाए। पर पंथ इस बात से बिल्कुल भी सहमत नहीं थे क्योंकि उन्हें यह सब झंझट लगता था और उनके परिवार में से भी कभी कोई इस क्षेत्र में नहीं रहा। लेकिन गाँव के लोग इसी बात पर अड़े रहे कि पंथ सरपंच बनें।
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सभी गाँव वालों का प्यार और विश्वास देखकर पंथ के परिवार ने भी उन्हें यह ज़िम्मेदारी अपने कंधों पर लेने के लिए प्रेरित किया। सर्व-सम्मति से सरपंच बने पंथ ने सबसे पहले पूरी ग्राम पंचायत के साथ, गाँव के लोगों के सामने शपथ ली कि वे न तो खुद किसी से रिश्वत लेंगे और न ही किसी को लेने देंगे। पंथ बताते हैं,
“मैं शुरू से ही इस बात पर अडिग था कि मुझे ग्राम पंचायत के स्तर पर से भ्रष्टाचार को बिल्कुल ही खत्म करना है। इतना ही नहीं, जिला स्तर पर भी मैं हमेशा भ्रष्टाचार के खिलाफ़ आवाज़ उठाता रहा। इस वजह से मैंने शुरुआती कार्यकाल में काफ़ी परेशानियां भी झेलीं, लेकिन जब भी मैं मायूस होता तो मेरी बहन, मनिंदर कौर मुझे समझाती और आगे बढ़ने का हौसला देती।”
उन्होंने अपने परिवार और दोस्तों के साथ से भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ़ प्रशासन को पत्र लिखे। धीरे-धीरे उनके इन पत्रों का असर दिखने लगा। एक बार जब प्रशासन का साथ उन्हें मिलने लगा तो उन्होंने गाँव के विकास पर काम करना शुरू किया। पंथ ने सबसे पहले गाँव में सीवेज लाइन पर फोकस किया। जब उन्होंने इस काम के लिए कॉन्ट्रैक्टर से संपर्क किया तो उसने पूरा खर्च लगभग 32 लाख रुपए बताया। पर ग्राम पंचायत के पास इतनी फंडिंग नहीं थी।
इसलिए पंथ ने अपनी टीम के साथ मिलकर कम लागत के प्लान पर काम किया। उन्होंने बताया,
“हमने उन सभी लूप-होल्स पर काम किया, जहाँ ये कॉन्ट्रैक्टर पैसे खाते हैं। इस तरह से हमने हर स्टेप पर पैसे बचाए और पूरे काम को मात्र साढ़े आठ लाख रुपए में किया। इसी तरह 12, 000 रुपये की स्ट्रीट लाइट हमने 3, 500 रुपये में लाकर लगवाई। आज भी देश में हमारे इस काम का उदाहरण दिया जाता है कि यदि एक ग्राम पंचायत सिर्फ़ एक-चौथाई लागत पर प्रोजेक्ट कर सकती है तो बाकी क्यों नहीं?”
सीवरेज सिस्टम के बाद, ग्राम पंचायत ने गाँव की सड़कों को इंटरलॉक टाइल्स लगवाकर पक्का करवाया और हर एक गली को अलग-अलग नाम दिए। साथ ही, आपको हर एक गली-चौराहे पर कूड़ा-कचरा डालने के लिए डस्टबिन, बैठने के लिए सीमेंट की बनी कुर्सियां, स्ट्रीट-लाइट्स और सीसीटीवी कैमरे मिलेंगे। गाँव के इंफ्रास्ट्रक्चर के साथ-साथ ग्राम पंचायत, शिक्षा, स्वास्थ्य, रोज़गार के लिए भी काम कर रही है।
1600 की जनसंख्या वाले इस गाँव में आज समय-समय पर कन्या-भ्रूण हत्या के खिलाफ़, लड़कियों के प्रति हिंसा के खिलाफ़ और नारी सशक्तिकरण पर सेमिनार और बैठक होती हैं। छोटे बच्चों को आशा वर्कर घर-घर जाकर जरूरी टीके लगाती हैं और समय-समय पर गाँव वालों के लिए हेल्थ-चेकअप कैंप आयोजित किये जाते हैं। साथ ही, गाँव की लड़कियों के लिए ग्राम पंचायत सेनेटरी नैपकिन भी उपलब्ध करा रही है। सभी आशा कर्मचारियों को गाँव की लड़कियों को माहवारी से संबंधित जागरुक करने की ज़िम्मेदारी भी दी गई है।
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गाँव के सरकारी स्कूल के स्तर को भी सुधारा गया है। ग्राम पंचायत के प्रतिनिधि रेग्युलर तौर पर गाँव के दौरे करते हैं ताकि अटेंडेंस और मिड-डे मील पर नज़र रखी जाए। बच्चों को खाने में पोषण-तत्व मिले, इसके लिए ख़ास डाइट चार्ट पर काम किया गया है। इसके अलावा, ज़रूरतमंद बच्चों के लिए फ्री-ट्यूशन आदि की व्यवस्था भी की गई है। स्कूल से बच्चों की ड्रॉपआउट रेट भी अब एकदम न के बराबर है।
पंथ बताते हैं,
“हमारे यहाँ किसी भी तरह की पहल के लिए या फिर किसी भी फ़ैसले के लिए गाँव के सभी लोगों को शामिल किया जाता है। बड़े-बुजुर्ग और युवा, सभी से सलाह-मशवरा करके ही हम किसी मुद्दे पर काम करते हैं। इससे सामुदायिक सहभागिता बनी रहती है और जब-जब समुदाय साथ मिलकर आगे बढ़ता है तो यक़ीनन बदलाव आता है। बस इसी वजह से हमारा गाँव भी आगे बढ़ रहा है, क्योंकि लोग आगे आकर हर तरह से मदद कर रहे हैं।”
गाँव के विकास कार्यों के लिए ग्राम पंचायत को मिलने वाली ग्रांट के अलावा, गाँव के लोग भी आर्थिक मदद करते हैं। हालांकि, ग्राम पंचायत की कोशिश यही रहती है कि वे किसी से भी पैसे लेने की बजाय, उन्हें सिर्फ़ साधन उपलब्ध करवाने के लिए कहें। इससे किसी भी उद्देश्य को पूरा करना आसान रहता है।
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छीना ग्राम पंचायत की एक सबसे बड़ी कोशिश गाँव के सभी लोगों को आत्म-निर्भर बनाना है। इसके लिए उन्होंने महिलाओं के सेल्फ-हेल्प ग्रुप बनाए हैं और उन्हें कई तरह के स्किल डेवलपमेंट प्रोग्राम से जोड़ा है। बेरोजगार और ज़रूरतमंद लोगों को ग्राम पंचायत ने बैंकों से बात करके छोटे-मोटे उद्यम जैसे कि दूकान, बुटीक, डेयरी, पार्लर आदि शुरू करने के लिए लोन भी दिलवाया है।
“इसके पीछे हमारा मकसद लोगों के आर्थिक स्तर को ऊपर उठाना है। अगर उनके घर में दो वक़्त की रोजी-रोटी होगी तो वे बाकी अच्छे कामों से जुड़ पाएंगे। आर्थिक सुरक्षा हो तो लोगों की सोच का स्तर खुद ब खुद उठता है। इसलिए हम इसी कोशिश में हैं कि गाँव में हर कोई, चाहे आदमी हो या औरत, किसी न किसी रोज़गार से जुड़ा हो,” पंथ ने कहा।
इसके अलावा, गाँव को नशा-मुक्त करने की पहल भी जोरों पर है। गाँव में नशा बेचने पर प्रतिबंध है और यदि कोई ऐसा करता है तो उस पर कड़ी कार्यवाही की जाती है। साथ ही, अगर कोई नशे बेचने वालों की सूचना देता है तो उसे ग्राम पंचायत 5, 100 रुपए इनाम स्वरुप देती है। इस विषय पर चर्चा के लिए ग्राम सभा के सभी सदस्य लगातार मिलते हैं और आगे की योजना पर काम करते हैं।
यहाँ तक कि गाँव में चुनाव के दौरान भी शराब पर रोक लगाई गयी थी। यदि कोई व्यक्ति नशा छोड़ना चाहता है तो ग्राम पंचायत न सिर्फ़ उसे रिहैबिलिटेशन सेंटर भेजती है, बल्कि उसका खर्च भी उठाती है। स्कूल के बच्चे और युवा साथ में मिलकर इस मुद्दे पर नुक्कड़ नाटक आदि भी करते रहते हैं।
हरियाली और स्वच्छता के साथ-साथ गाँव में पक्षी और पशुओं के संरक्षण का भी ध्यान रखा जाता है। गाँव में एक सुझाव कम डोनेशन बॉक्स भी लगाया गया है। इसमें गाँव वाले अपने सुझाव दे सकते हैं और यदि ग्राम पंचायत की मदद करना चाहते हैं तो इस बॉक्स में पैसे भी डाल सकते हैं। ग्राम पंचायत को मिलने वाली फंडिंग को कहाँ और कैसे इस्तेमाल किया गया, इसका पूरा हिसाब एक नोटिस बोर्ड पर लगाया जाता है।
पंथ अपने सभी कामों में पारदर्शिता रखते हैं और इसीलिए आज वे इतना सब कुछ कर पा रहे हैं। उनके कामों के लिए उन्हें बहुत से अवॉर्ड जैसे कि यूथ आइकॉन ऑफ इयर 2018, इंस्पिरेशनल यूथ आदि से नवाज़ा गया है। अपने गाँव को इस मुकाम तक पहुंचाने के लिए पंथदीप ने एक बार इंटरनेशनल कंपनी, तो एक बार सरकारी नौकरी को छोड़ा है।
लेकिन उन्हें इस बात का कोई दुःख नहीं है, बल्कि वे आगे भी अपने गाँव के विकास में ही लगे रहना चाहते हैं। अंत में वे सिर्फ़ यही कहते हैं,
“हमारी आबादी 125 करोड़ हैं और हम सिर्फ़ यही कहते हैं कि कुछ नहीं हो सकता। हमारे देश में जितने गाँव हैं, अगर हममें से सिर्फ़ उतने ही लोग भी अपने मन में ठान लें कि मुझे कुछ करना है तो यक़ीनन बहुत कुछ हो जाएगा। मैं अपने जैसे युवाओं से अपील करता हूँ कि किसी और को दोष देने की बजाय खुद आगे आओ और ज़िम्मेदारी उठाओ। हम बिल्कुल बदलाव ला सकते हैं।”
यदि आपको इस कहानी से प्रेरणा मिली है तो आप सरपंच पंथदीप सिंह से संपर्क करने के लिए उन्हें 9815821532 पर डायल करें!
पंथदीप सिंह के कार्यों के ऊपर पंचायती राज द्वारा बनाई गयी वीडियो आप यहाँ देख सकते हैं:
संपादन – भगवती लाल तेली