‘अनुभव’ – इस कड़ी में हम, हमारे पाठको के दिल को छुने वाले और प्रेरणात्मक अनुभवो की कहानियाँ आपके सामने लाते है। यदि आपकी भी कोई ऐसी कहानी है तो हमे contact@thebetterindia.com पर “अनुभव” इस शीर्षक के साथ ज़रूर लिखे!
डॉ. विभु शर्मा ने जब बुज़ुर्ग और अकेली कैलाशो अम्मा के डिब्बे में सिर्फ चार बिस्कुट देखे तो उन्होंने उनकी मदद करने की ठान ली। लाख मुश्किलें आई पर डॉ. शर्मा ने कड़े संघर्ष और सोशल मीडिया की मदद से आखिर अम्मा को उनका हक़ दिला ही दिया। आईये जानते है अम्मा को हक दिलाने की, डॉ. विभु शर्मा के संघर्ष की कहानी –
क्या कभी बिस्कुट किसी को प्रेरणा दे सकते हैं? आप सोच रहे होंगे कि कैसी बेतुकी बात है बिस्कुट कैसे किसी को प्रेरणा दे सकते हैं। पर अगर वह चार बिस्कुट किसी की भावना से जुड़े हो तो जरूर प्रेरणा दे सकते हैं। मैंने चार बिस्कुट को अपनी प्रेरणा का स्रोत बनाया। इस प्रेरणादायक कहानी की शुरुआत 16 अक्टूबर 2015 को शुरू हुई। दोपहर का समय था मैं टीवी देख रहा था। तभी मेरी कॉलोनी में एक बुजुर्ग महिला की आवाज सुनी वो सब्जी बेच रही थी। यह आवाज जानी पहचानी थी।
मैं अपना परिचय करा दूँ मेरा नाम डॉ. विभू शर्मा है और पेशे से डाक्टर हूँ। पढाई की वजह से अपने घर चन्दौसी जिला संभल उत्तरप्रदेश से 10-12 वर्ष से बाहर रह रहा हूँ। काफी समय बाद भी जब बुजुर्ग महिला की आवाज कानों में पड़ी तो तुरंत पहचान गया क्योंकि हमने उन्हें बचपन से ही सब्जी बेचते हुए देखा था। मम्मी ने आवाज लगाई- “विभू देखो अम्मा क्या बेच रही है”। मैं घर के दरवाजे की ओर गया और दरवाजा खोला तो देखा कि एक बुजुर्ग महिला सर पर टोकरी लेकर मेरी ओर आ रही है और दीवार का सहारा लेकर चल रही है।
अब अम्मा बहुत बूढ़ी हो गई थी वो ठीक से चल भी नहीं पा रही थी।
मैंने पूछा- “अम्मा क्या बेच रही हो?”
“बेटा अरबी है ” अम्मा बोली। मम्मी बोलीं- “अरबी तो तेरे पापा ले आए हैं पर चलो अम्मा से ले लो बेचारी इस उम्र में भी काम कर रही है। ” और मैंने अम्मा की टोकरी उतरवाई और सब्जी तुलवाने लगा।
मम्मी अम्मा से बात करने लगीं –
” अम्मा कितनी उम्र है तुम्हारी ” वो बोली
” मुझे नहीं पता बेटी! मुझे तो माँ-बाप दूध पीती बच्ची थी तब छोड़ मर गए। तब से धक्का ही धक्का हैं। मैं तो ससुराल की भी मारी हूँ और मायके की भी। जिंदगी में दो घड़ी भी सुख नहीं देखा। ” – अम्मा मायूस सी होकर बोली
पर अम्मा की झुर्रियाँ साफ बयान कर रही थीं कि वो लगभग 100 बर्ष की हैं। उनके चेहरे की मायूसी उनके कष्टों को ब्यान कर रही थी।
मम्मी ने पूछा- “अम्मा तुम्हारा बेटा है?”
वो बोली- ” है तो! पर उसके लिए तो उसके ससुराल वाले और बीवी ही सब कुछ है। मुझ बुढियां को तो वो पूछता भी नहीं।” और आसमान की तरफ देखकर भगवान से अपनी मौत की प्रार्थना करने लगी।
यह सब देखकर मुझे बहुत दुख हो रहा था और सोच रहा था कि आखिर लोग अपने माता-पिता को उनके बुढापे में इस तरह क्यों छोड़ देते हैं? जो माँ अपने खून से औलाद को सींचती है ,सारे कष्टों से अपने बच्चों को बचाती है, वो क्यों उनके बुढ़ापे की लाठी नहीं बनते?
अम्मा ने अरबी तोल दी और बोली -“बेटा देखियो सही तुला है? मुझे तो ठीक से नहीं दिखाई देता अब। अपने आप देख लेना। ”
मैंने भगवान से प्रार्थना की, कि हे भगवान आपने इस अम्मा को जीवन में इतने कष्ट क्यों दिए जिस उम्र में लोग खाट से उठ नहीं पाते हैं, अम्मा को सब्जी बेचनी पड़ रही है …..भगवान इनके कष्टों को हर ले अब और कष्ट न मिले अब इनको। मैंने सामान लेकर अम्मा को रूपये दे दिए वो बहुत खुश हुईं। रूपयों को चूमा, माथे से लगाया और बोली- “आज सुबह से बोनी तुमने ही कराई है ….बेटा जरा 250 ग्राम का बाट ढूंडना मुझे धिखायी नहीं दे रहा। ”
मैंने ढूंड कर दिया तो वो बोली- ” इसे इस डब्बे में रख दो। ”
मैंने स्टील का डब्बा खोला तो उसमे ‘चार बिस्कुट’ रखे हुए थे।
मैंने और मेरी मम्मी ने पूछा-
“अम्मा सुबह से कुछ खाया?”
वो बोलीं- “कुछ बिकरी न हुई सुबह से घूम रही थी… अब खा लूँगी!”
मम्मी ने पूछा अम्मा क्या खाओगी? वो बोली- ” ये हैं न चार बिस्कुट, ये खा लूँगी। “
मैंने और मम्मी ने हैरानी से कहा- “बस ,चार बिस्कुट!! ”
मैं सोचने लगा कि इनके जीवन की पीड़ा की हद हो गई है, इस शहर में समाज सेवियों की कमी नहीं है पर उनकी समाज सेवा केवल फोटो खिंचवाने तक ही सीमित है। मम्मी घर के अंदर गईं और उनको खाने को लाईं पर वो मना करती रही पर जब ज्यादा जिद की तो खा लिया।
मैंने उनसे पूछा कि कहाँ रहती हो? सरकारी योंजनाओं जैसे वृद्ध पेंशन , बीपीएल कार्ड इत्यादी किसी का लाभ मिला है?
वो बोली ” गुमथल रहती हूँ …कछु नहीं मिला ” और कहकर चली गईं। वो तो चली गईं पर मेरे मन मे सव़ाल छोड़ गईं। मैं हर पल हर क्षण, उनके बारे मे सोचता रहता।
मैंने सोचा कि अम्मा के लिए कुछ तो करना चाहिए पर नहीं जानता था कि शुरूआत कैसे करूँ। मैं उनकी जानकारी जुटाने में लग गया। मैंने पहली शुरूआत अपने फेसबुक पर इनकी कहानी को पोस्ट कर के की फिर मैंने फेसबुक पर ही “Helpforhumanity” के नाम से पेज बनाया।
“Helpforhumanity” के नाम से ब्लाग लिखा और यूट्यूब पर “Helpforhumanity” के नाम से ही विडियो अपलोड किया। नेता, अभिनेता से लेकर पत्रकारों समेत 200 से ज्यादा नामचीन हस्तियों को लिखा। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी और अखिलेश यादव जी को भी लिखा।
9 नबंबर 2015 को उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री, श्री अखिलेश यादव जी का ईमेल का जबाब आया और उन्होंने जिला अधिकारी संभल को बुजुर्ग अम्मा की मदद को प्रेषित किया।
मैं बहुत खुश था कि अब तो बहुत जल्द ही अम्मा को सभी सरकारी योंजनाओं का लाभ मिलेगा। इस दौरान मैंने अम्मा को पूरी मदद करनी शुरू कर दी ताकि उनको इस उम्र में शारिरिक श्रम न करना पड़े और प्रण कर लिया कि अम्मा की जिम्मेदारी अब मेरी है। मुख्यमंत्री जी के ईमेल वाले पत्र को लेकर मैं जिला अधिकारी संभल के दफतर 14 नबंबर 2015 को स्वयं देकर भी आया और इस संबंध में उनके दफतर के चक्कर लगाता रहा। मैं समझ नहीं पा रहा था कि आखिर मुख्यमंत्री जी के पत्र के बाद भी प्रशासन इतना उदासिन क्यों है। 26 नबंबर 2015 को दैनिक जागरण, संभल ने भी इनकी खबर को प्रमुखता से निकाला।
फिर मैंने #HelpKailasho की मुहीम को शुरू किया और ट्वीटर पर 1100 से ज्यादा ट्वीट किए काफी लोगों ने मेरे कार्य को सराहा और अम्मा की पोस्ट को शेयर और लाइक किया। ट्वीटस भी बहुत शेयर किए गए और आखिरकार 3 महीने की निरंतर मेहनत का नतीजा निकला, जो मेरे 7 बार जिला अधिकारी संभल के दफतर के चक्कर लगाने के बाद भी नहीं हो सका, वो सोशल मिडिया के सहयोग से हो पाया। यह 3 महीने का समय मेरा बहुत कठिन समय रहा क्योंकि दिसंबर में मेरी पीजी (पोस्ट ग्रेजुएशन) की भी परीक्षा थी, इसलिए मुझे तैयारी भी करनी थी। पर साथ ही साथ मैं यह भी चाहता था कि अम्मा को जल्द-से-जल्द पेंशन और बाकी सारी सुविधा मिल जाए।
जब भी मैं उदास होता तो “वो चार बिस्कुट” का क्षण याद कर लेता, जिससे मुझे प्रेरणा मिलती थी।
मेरा बस यही एक स्वार्थ था कि मैं अम्मा के चेहरे पर खुशी देख सकूँ और वो पूरा हुआ। जिला अधिकारी संभल 20 जनवरी 2016 को स्वयं वृद्धा कैलाशो (अम्मा) के घर गए और उनकी वृद्धा पेंशन स्वीकृत कर दी और वीपीएल कार्ड एवं बैंक की पास बुक सभी उनको अपने हाथो से दिया।
यह कैलाशो अम्मा के लिए किसी सम्मान से कम नहीं था। जिला अधिकारी संभल का नेक कार्य था कि उन्होंने बुजुर्ग कैलाशो को कोई असुविधा न हो इसलिए सारा इंतजाम वहीं करा दिया। आज कैलाशो अम्मा खुश हैं, क्योंकि अब उनको वो सब मिल गया जिसकी वो हकदार थीं बस एक कसर बाकि है जो उनकी इच्छा है कि अगर बेटा उनके साथ रहे तो जीवन के आखरी क्षण भी खुशी से कट जाएंगे।