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यात्रा में अपने परिवार से बिछुड़ी अम्मा की मदद कर कमाई दुआएं, आज भी सुकून देती है यह बात

Smiling Man and Old Lady

“मेरा एक दोस्त हैं दुर्ग से, जिनकी माँ, दीदी और तीन सहेलियां चार धाम की यात्रा पर जाना चाह रही थीं। उन्होंने मुझसे और हमारे एक और दोस्त, नितिन से पूछा कि क्या हम उन्हें यात्रा करवा सकते हैं? हमें लगा कि यह मजेदार रहेगा, तो हमने हाँ कर दी। लेकिन यात्रा के दौरान, जब हम यमुनौत्री मंदिर जा रहे थे, तो रास्ते में चाय पीने के लिए रुके। अगर कोई कभी इस जगह आया है, तो उन्हें पता होगा कि मंदिर तक पहुँचने से पहले लगभग पांच-छह किमी का ट्रेक है। 


चाय पीकर जैसे ही हम आगे बढ़ने लगे, तो एक बूढ़ी अम्मा मेरे पास आईं। उस समय हल्की-हल्की बारिश भी थी और अम्मा ने शॉल ओढ़ी हुई थी। लेकिन उनके चेहरे से साफ पता चल रहा था कि वह परेशान हैं। उन्होंने मुझसे पूछा, ‘बेटा, मंदिर जा रहे हो।’ मैंने ‘हाँ’ में जवाब दिया, तो उन्होंने पूछा कि ‘मुझको भी ले चलोगे?’। हमारे साथ पहले ही बुजुर्ग महिलाएं थीं, तो उन्हें साथ ले जाने में कोई समस्या नहीं थी। लेकिन, मैंने उनसे पूछा कि आप अकेले आए हैं क्या? इस पर, उन्होंने बताया कि वह अपने परिवार के साथ आई हैं। लेकिन उनसे ज्यादा चला नहीं जा रहा था, तो घरवालों ने उन्हें घोड़े पर बिठा दिया और घोड़ेवाले को पैसे भी दे दिए थे कि अम्मा को ऊपर मंदिर तक छोड़ दें।


लेकिन घोड़ेवाला, अम्मा को बीच में ही छोड़कर चला गया और वह अपने परिवार से बिछड़ गईं। यह सब बताते हुए, अम्मा रोने लगीं और उन्हें देखकर मुझे भी बहुत बुरा लगा। मैंने अपने दोस्त से कहा कि वे सब आगे चलें, मैं अम्मा को लेकर आता हूँ। क्योंकि, अम्मा ने मुझे बताया कि उनके पास पैसे भी नहीं हैं और उन्हें एक ही आँख से दिखाई देता है। मैं, अम्मा को बहुत संभालकर आगे ले जाने लगा। कई बार उनकी चप्पल भी कीचड़ में फंस जाती। लेकिन मेरे मन में सिर्फ यही बात चल रही थी कि अम्मा को उनका परिवार मिल जाए, क्योंकि वह बहुत परेशान थीं। 


जैसे-तैसे, मैं अम्मा को लेकर मंदिर तक पहुँच गया। लेकिन मुझे लगा कि अम्मा के परिवार का मिलना ज़रूरी है। उन्होंने मुझे बताया था कि उनके परिवार ने उन्हें पहले घोड़े पर भेजा था, तो इसका मतलब था कि उनका परिवार अभी मंदिर नहीं पहुंचा है। इसलिए मैंने अम्मा को मंदिर के बाहर बने एक रेन शेलटर में बिठाया। मैंने उन्हें समझाया कि अगर आपका परिवार पीछे से आ रहा है, तो वे आपको यहां पर देख लेंगे और अगर मंदिर पहुँच भी गए होंगे, तो वापस निकलते समय भी आप उन्हें नजर आ जाएँगी। 


मैंने उनसे कहा, ‘अम्मा, आप यहां बैठो। जब तक आपके परिवार का कोई नहीं आता, आप हिलना मत यहां से। अगर कोई नहीं आया, तो मैं आपको लेकर जाऊंगा। मंदिर भी ले चलूंगा, फिर नीचे भी ले जाऊंगा। चिंता मत करो।’ मेरी बात सुनकर उन्होंने कहा, ‘बेटा आ जाना। छोड़ना मत मुझे।’ उनकी बात से मेरा मन भर आया और मैंने उनसे कहा, ‘अरे नहीं। मैं यूँ गया और यूँ आया। देखना तब तक आपका परिवार भी आ जाएगा।’ मैंने उनसे वादा किया कि मैं आधे घंटे में अपने साथ वालों को मंदिर में दर्शन करवाकर, तुरंत लौट आऊंगा। इसके बाद, मैं जल्दी से मंदिर गया और सबको दर्शन कराए। लेकिन मेरे मन में सिर्फ अम्मा ही थीं और उनका परिवार। 


सच कहूं, तो मैंने सोच लिया था कि जैसे ही उनका परिवार मिलेगा, मैं उनको इस लापरवाही के लिए खरी-खोटी सुनाऊंगा। लेकिन फिर आजकल बुजुर्गों के साथ इतनी घटनाएं होती है कि लगने लगा अगर उनका परिवार नहीं आया तो? पर मैंने तय कर लिया था कि जो भी हो, मैं अम्मा को अकेले नहीं छोडूंगा। क्योंकि अगर उस दिन मैं उनकी मदद न करता, तो मैं अपने दिल में यह उम्मीद कैसे रखता कि इस तरह की कोई जरूरत पड़ने पर, कोई अनजान मेरी या मेरे किसी अपने की मदद करेगा। इसलिए मैं सिर्फ यही प्रार्थना करने लगा कि उनका परिवार मिल जाए। 


सबको दर्शन करवाकर, लगभग 40 मिनट बाद, मैं वापस उसी जगह पहुंचा, जहां अम्मा को बिठाया था। वहां पहुंचा तो देखा कि अम्मा के आसपास काफी लोग खड़े हैं। मैंने जाकर पूछा, ‘अम्मा, कोई आया?’ तो अम्मा ने मेरी तरफ हाथ करके कहा, ‘ये लड़का है।’ तभी एक अधेड़ उम्र के अंकल मेरे सामने हाथ जोड़कर रोने लगे। वह उन अम्मा के बेटे थे और रोते हुए उन्होंने कहा, ‘आज मेरी माँ को कुछ हो जाता, तो मैं मर जाता। आपको भगवान ने भेजा। घोड़ेवाला तो छोड़ के भाग गया।’ वह बार-बार मेरे हाथ जोड़ने लगे। 


उनकी हालत देखकर, मैं उनसे सिर्फ यही कह पाया, ‘अरे कोई बात नहीं अंकल जी। हो जाता है। सब भगवान ने लिखा है। अब आराम से जाओ, चारधाम करो। अपना तो हो गया।’ इसके बाद, मैंने अम्मा से कहा कि देखो अम्मा, मैंने कहा था न कि मिल जाएंगे। अब रोओ मत। चलो फोटो खींचते हैं। मैंने अम्मा को शांत करने की कोशिश की, लेकिन उस समय भी वह काफी सहमी हुई थीं। पर मुझे बहुत खुशी और सुकून मिला कि उनका परिवार मिल गया। इससे अच्छा और क्या हो सकता था। वैसे भी किसी की सच्ची दुआओं से बढ़कर क्या ही कमाई होगी।”
सुनील शर्मा 


हिमाचल प्रदेश से संबंध रखने वाले सुनील शर्मा एक घुमक्कड़ हैं और एक जगह पर ज्यादा दिन के लिए नहीं रुकते हैं। साल 2013 में आयी उत्तराखंड आपदा में, वह भी कुछ दिनों के लिए फंसे रहे थे। लेकिन इस आपदा ने उनका जीवन के प्रति नजरिया बदल दिया। इसलिए 2014 में ,उन्होंने अपनी नौकरी छोड़कर, देश-दुनिया घूमने की ठानी। अब वह एक जगह से दूसरी जगह घूमते हुए, अपने जीवन को पूरी तरह से जी रहे हैं। उनकी घुमक्कड़ी के और अनुभव जानने के लिए आप उनके फेसबुक ग्रुप Backpackers & Travelers India से जुड़ सकते हैं।

संपादन – मानबी कटोच

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