“बिहार में अपने गाँव में; मैं प्राथमिक स्कूल का टीचर था। मुझे मेरा एक विद्यार्थी अभी भी याद है- वह छोटा-सा लड़का बहुत गरीब परिवार से था। वह बहुत होशियार था और उसमें सीखने की चाह थी, पर उसके माता-पिता स्कूल की किसी भी चीज़ का खर्च नहीं उठा सकते थे– उसके पास किताब, कॉपी और पहनने के लिए वर्दी तक नहीं होती थी। मेरे दिल ने कहा कि मुझे उसके लिए कुछ करना चाहिए। मैंने निर्णय किया कि मैं अपनी सैलरी से उसकी किताब, कॉपी, पेन और वर्दी का खर्च दे दिया करूँगा। पर समय के साथ, जब उसके परिवार की आर्थिक स्थिति बिगड़ती चली गयी और वह लड़का स्कूल छोड़ने की कगार पर था। तो मैंने उसकी स्कूल की फ़ीस भी भरना शुरू किया। ऐसा नहीं था कि मैं बहुत सम्पन्न था, पर मेरे पास इतना था कि मैं अपने परिवार की ज़रूरतों को पूरा कर सकूं। मुझे नहीं लगा कि मैं भविष्य के लिए बचत करूँ, जब मैं उस पैसे से किसी का आज संवार सकता हूँ… तो मैंने इस बारे में कभी नहीं सोचा!
स्कूल के बाद भी हम सम्पर्क में रहे। उसे उसकी कॉलेज की फ़ीस के लिए लोन मिल गया था… उसे हमेशा से पता था कि उसे डॉक्टर बनना है। जब भी वह मुझे फ़ोन करता तो मैं उसे कहता कि जब भी किसी चीज़ की जरूरत हो, तो मुझे याद करे। पर उसने यह सब मैनेज करने का तरीका ढूंढ लिया था– वह पढ़ाई के साथ-साथ कुछ काम करके अपनी पढ़ाई के लिए ज़रूरी सभी चीजें जुटा लेता था। आज वह एक डॉक्टर है… उसकी मेहनत रंग लायी और मेरा दिल गर्व से भर जाता है कि वह मेरा छात्र है। अब भी वह हर दूसरे हफ्ते मुझे फ़ोन करता है और गाँव में मुझसे मिलने भी आता है; जबकि उसे शहर में इतना काम है! मैंने उसे बड़े होते देखा है; स्कूल के एक गरीब लड़के से लेकर एक सफ़ल डॉक्टर बनने तक और उसके इस सफ़र का मैं भी हिस्सा रहा। बस यही बात मुझे महसूस कराती है कि मैंने ज़िंदगी को पूरी तरह से जिया है…. एक पूरी ज़िंदगी!”
संपादन – मानबी कटोच