“एक साल पहले मैंने अपने पति को खो दिया और अब मुझे अकेले ही मेरी बेटियों को पलाना है। जैसे ही वो हमें छोड़कर गये, मेरी सास ने मुझे घर से निकाल दिया– उनके लिए हम बस बोझ थे। पहले मैं बहुत दुखी थी, लेकिन जब पलटकर अपनी ज़िंदगी को देखा, तो लगा मेरे पास कभी कोई विकल्प, कोई अधिकार नहीं था। कम उम्र में मेरी शादी कर दी गयी, न ही पढ़ाया-लिखाया गया, और ज़िंदगीभर यही बताया गया कि औरतें ज़्यादा कुछ नहीं कर सकतीं। फिर मैंने अपनी बेटियों की तरफ देखा और मुझे अहसास हुआ कि मैं उनकी ज़िंदगी बदलने का फ़ैसला ले सकती हूँ और साबित कर सकती हूँ कि असल में एक औरत क्या कर सकती है। मैंने जैसे-तैसे धारावी में एक छोटा-सा घर किराए पर लिया और काम ढूँढना शुरू किया… कोई भी काम। आख़िरकार, मुझे एक जगह खाना बनाने का काम मिला और इस एक काम की वजह से मुझे और भी कई जगहों पर काम मिला— अभी भी मैं अपने काम पर जा रही हूँ और यह मेरे साथ जा रही है।
आज, मैं अपनी बेटियों को स्कूल भेज रही हूँ और घर चला रही हूँ— ऐसा करने के बारे में मैंने सपने में भी नहीं सोचा था! लेकिन, जब एक बार मैंने ठान लिया कि मैं कभी अपने बेटियों को यह नहीं लगने दूंगी कि वे कुछ नहीं कर सकती– जैसा कि हमेशा मुझे कहा गया— फिर कोई भी मुझे नहीं रोक पाया। कोई मुझे रोक भी नहीं सकता— मैं तब तक आराम से नहीं बैठूंगी, जब तक मेरी बेटियाँ इस ज़माने को ना बता दें कि वे कितना कुछ कर सकती हैं!”