Site icon The Better India – Hindi

दान का सही अर्थ तो तब है जब देने के लिए आपको खुद कुछ खोना पड़े !

समाज सेवा और दान धर्म की कई कहानियाँ आपने पढ़ी होंगी, आप कई ऐसे लोगो को भी जानते होंगे जो गरीब दुखियो की मदद के लिए तथा उन्हें दान देने के लिए हमेशा तत्पर रहते है। पर आज हम आपको एक ऐसी कहानी सुनाने जा रहे है जिसे सुनकर आपको दान का सही अर्थ समझ में आएगा! ये कहानी मूलतः दिलीप मेनेज़ेस के अनुभव पर आधारित है!

नार्सिपत्नाम से लम्बसिंगी के सफ़र पर जाते हुए रास्ते में मैं एक गाँव के पास मैं नाश्ता करने के लिए रुका। वहां एक बुज़ुर्ग एक छोटी सी झोपडी के आगे चाय बना रहे थे। मैंने उन से एक कप चाय और कुछ खाने को माँगा। उन्होंने चाय की तरफ इशारा कर , वहां की भाषा में कुछ कहा, जिसे मैं समझने में असमर्थ था। मैंने फिर खाने का इशारा किया जिसे समझ कर वह अपनी पत्नी की ओर देखा। उनकी पत्नी मुझे एक बेंच पर बैठने का इशारा करके अन्दर चली गयी। अगले ही पल वह अन्दर से एक प्लेट इडली और चटनी ले कर आई जिसे मैंने चाय के साथ बड़े मज़े से खाया।

चाय की दूकान जहाँ दिलीप रुके थे

नाश्ता करने के बाद जब मैंने उनसे पैसे के बारे में पूछा, तब उस व्यक्ति ने जवाब दिया ” फाइव  रुपीस”। मुझे पता था कि मैं  भारत के सबसे पिछड़े हुए गांवों में से एक में खड़ा हूँ, फिर भी चाय और इडली के लिए ५ रुपये बहुत कम थे। मैंने इशारों में उन्हें अपनी हैरानगी समझायी और उस वृद्ध व्यक्ति ने फिर से सिर्फ चाय की कप की और इशारा किया। मैंने जवाब में इडली की प्लेट की और इशारा किया जिस पर उनकी पत्नी ने कुछ कहा, जो मैं नहीं समझ पाया। पर इतना तो साफ़ था कि वे मुझे सिर्फ चाय के पैसे बता रहे थे। मैंने उन्हें समझाया कि मैं इडली इस तरह मुफ्त में नहीं खा सकता  और फिर से इडली की प्लेट की और इशारा किया। इस बार वे दोनों मुस्कुराने लगे।

अब जाकर मेरी समझ में आया कि वह सिर्फ एक चाय की दूकान थी और मुझे उन लोगों ने अपने लिए बनाए हुए नाश्ते में से इडली दे दी थी, जिसके बाद शायद उनके अपने परिवार के लिए नाश्ता कम भी पड़ गया होगा।

चाय की दूकान चलाने वाले बुज़ुर्ग दंपत्ति ने दिलीप को अपने हिस्से की इडली और चटनी दे दी

जब सारी स्थिति मुझे समझ में आई तो एक पल के लिए तो मैं सन्न सा रह गए पर दुसरे ही पल अपने आप को सँभालते हुए मैंने अपने बटुए में से कुछ पैसे निकाल कर उस व्यक्ति को देना चाहा। पहले तो उसने लेने से इनकार कर दिया पर मेरे बहुत आग्रह करने के बाद आखिरकार उसने वो पैसे  रख लिये।

मैंने इस नेकदिल दंपत्ति को अलविदा कहा और लम्बसिंगी की घाटियों में आगे बढ़ने लगा।

बुज़ुर्ग दंपत्ति जिन्होंने दिलीप को अपने हिस्से की इडली दे दी

पर उन खूबसूरत वादियों में भी उन्ही का चेहरा मेरी आँखों के सामने घूम रहा था। मैं लगातार उनके बारे में सोचता चला जा रहा था और सोच रहा था उस पाठ के बारे में जो ये बुज़ुर्ग दंपत्ति मुझे कितनी सहजता  से सिखा गए थे –

“दान का सही अर्थ तो तब है जब देने के लिए आपको खुद कुछ खोना पड़े !”

Exit mobile version