‘अनुभव’ – चेन्नई की बाढ़ में मैंने बहुत कुछ खो दिया पर ये अनुभव मुझे बहुत कुछ सिखा भी गया !

चेन्नई में आई बाढ़ में हमारा घर तबाह हो गया। हम दो दिन तक मदद की उम्मीद में बैठे रहे। बरसो की जमाई पूंजी ख़त्म हो गयी पर फिर भी इस बाढ़ ने हमें इंसानियत और नेकदिली पर भरोसा करना सिखाया !


 अनुभव – इस कड़ी में हम, हमारे पाठको के दिल को छुने वाले और प्रेरणात्मक अनुभवो की कहानियाँ आपके सामने लाते है। यदि आपकी भी कोई ऐसी कहानी है तो हमे contact@thebetterindia.com पर “अनुभव” इस शीर्षक के साथ ज़रूर लिखे!

चेन्नई में आई बाढ़ में हमारा घर तबाह हो गया। हम दो दिन तक मदद की उम्मीद में बैठे रहे। बरसो की जमाई पूंजी ख़त्म हो गयी पर फिर भी इस बाढ़ ने हमें इंसानियत और नेकदिली पर भरोसा करना सिखाया !

दिसम्बर २०१५

सुबह के सात बज रहे थे। मेरे पति को ऑफिस  के लिए निकलना था। अभी पिछले दिनों ही बाढ़ का पानी घर के अन्दर आने से हम घबराये हुए थे। और पिछली पूरी रात बारिश होती रही थी। पर किसी ज़रूरी मीटिंग के लिए मेरे पति का ऑफिस जाना भी ज़रूरी था। मैंने उन्हें बाय किया, वाशिंग मशीन में कपडे डाले और अपनी पांच साल की बेटी के पास जाकर लेट गयी। आज उसके स्कूल में भी छुट्टी हो गयी थी इसलिए वो भी आराम से सो रही थी। रोज़ की तरह मैंने सबसे पहले खबरे देखना शुरू किया। सोचा था शायद खबरों से बारिश के बारे में कुछ पता चले पर खबरों में आमिर खान के देश को लेकर डर और शीना बोरा मर्डर केस के रोचक पहलुओ के अलावा कुछ नहीं था।

थोड़ी देर में मैंने सोचा एक बार फिर बाहर का हाल देखू। बारिश रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी। सामने की सड़क पर पानी ठहरने लगा था। ऐसे मौसम में मेरी कामवाली बाई का आना नामुमकिन था, सो मैं खुद ही बर्तन धोने लगी। मन में अजीब बेचैनी सी थी। मुश्किल से दो बर्तन धोये ही थे कि फिर एक बार बाहर देखने का मन किया। इस वक़्त करीब ८:१५ हो चुके थे। पानी बहार की सीढ़ी तक आ चूका था। मुझे आनेवाली मुसीबत का अंदेशा होने लगा था। मैंने बर्तन युही छोड़े और एक बैग में कपडे भरने लगी। पिछली बाढ़ के बाद मेरे पति ने मकान मालिक से दूसरी मंजिल वाले फ्लैट की चाबी लेकर रखी थी। मैंने ये बैग उसी फ्लैट में ले जाकर रख दिया। अब निचे आकर मैंने एक और बैग में इंडक्शन कुक टॉप, इलेक्ट्रिक केटेल, कुछ बिस्कुट के पैकेट्स, एक दाल का और एक चावल का पैकेट और अपना लैपटॉप डाला और फिर ऊपर ले गयी। मैंने सोचा था अब मैं अपनी बेटी को उठाकर उसे नाश्ता करवाकर ऊपर ले आउंगी। पर जब तक मैं निचे गयी तब तक बरामदे में पानी आ चूका था। मैंने तुरंत अपनी बेटी को उठाया, उसे अपना ब्रश और टूथपेस्ट दिया और पानी की कुछ बोतले भरकर उसे ऊपर ले गयी। मैंने टैक्सी बुलाने की सोची पर सारे नंबर व्यस्त थे।

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मैं एक बार फिर निचे आई और एक गद्दा और ब्लंकेट ले जाने लगी कि तभी लाइट चली गयी। घबराहट में मैं ये भूल गयी कि अभी तो दिन की रौशनी है। मुझे लगा मेरी बेटी कही अँधेरे में घबरा न जाये, इसलिए मैंने गद्दा वही छोड़ा और बस तीन ब्लान्केट्स लेकर ऊपर को दौड़ी। १० बज चुके थे। पानी बढ़ता जा रहा था। मैंने कुछ पर्दों को दरवाज़े के नीचे दबाने की कोशिश की पर पानी के बहाव के सामने उनका कोई जोर नहीं चला। पानी घर में घुस चूका था। मेरे पति का लगातार फ़ोन आ रहा था। ११ बजे उन्होंने कहा कि वो ऑफिस से निकल रहे है और एक घंटे में पहुँच जायेंगे। ये सुनकर मेरी जान में जान आई पर पानी का ये उग्र रूप देखकर मुझे ये भी डर था कि कही मेरे पति बीच रास्ते में फंस गए तो?

मैं लगातार हेल्पलाइन नम्बरों को कॉल कर रही थी पर कोई भी नहीं लग रहा था।

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एक दोस्त के ज़रिये एक कोउन्सेलेर से बात हुई और उसने आश्वसन दिया कि वो जल्द ही मदत भेज रही है। मैं ऊपर खिड़की पर खड़ी मदद का इंतज़ार करने लगी। सामने वाले घर का परिवार दिवार के दोनों ओर कुर्सियां लगाकर कूद रहा था। उन्होंने पड़ोस के फर्स्ट फ्लोर के मकान में शरण ले ली। दोपहर हो चुकी थी। मेरे पास खाने का सामान तो था पर बनाने का कोई साधन नहीं था। लाइट जाने की वजह से इंडक्शन कुक टॉप किसी काम का नहीं था।

इतने में मुझे ४ अनजान लड़के पानी में से कूदते मस्ती करते जाते दिखाई दिए। मुझे लगा शायद ये मेरे लिए भेजी गयी रेस्क्यू टीम है।

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मैंने उन्हें आवाज़ लगाई पर उन्हें सुनाई नहीं दिया और वे आगे निकल गए। गाड़ियाँ मेन रोड तक भी नहीं आ पा रही थी। मेरे पति काफी दूर से ही पैदल आने लगे। मैं प्रार्थना करने लगी कि वो किसी तरह हम तक सुरक्षित पहुँच जाये।

करीब एक बजे मुझे वो चार लड़के फिर वही से गुज़रते नज़र आये। इस बार उन्हें मेरी पुकार सुनाई दे गयी। मैंने पूछा – “क्या आप लोग रेस्क्यू टीम से है?” जवाब में एक लड़के ने कहा – “नहीं मैडम हम रेस्क्यू टीम से तो नहीं है पर हम आपकी मदद कर सकते है। कहिये क्या करना है?”

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सागर, सुरेश, जगन और गोपाल जिन्होंने बिना किसी अपेक्षा के मदद की !

ये चार अनजान जवान लड़के थे। मुझे नहीं पता था कि मैं उन्हें अन्दर बुला कर ठीक कर रही हूँ या नहीं पर फिर मैंने उन्हें बुला लिया। मैंने उनसे अपना गैस स्टोव और सिलिंडर ऊपर के फ्लैट में लाने को कहा। एक मिनिट की भी देरी न करते हुए उन्होंने मेरी मदद करनी शुरू कर दी। जब तक वे सिलिंडर ले रहे थे, मैंने और खाने पीने का सामान और फर्स्ट बॉक्स ले लिया। इन लडको ने पानी का कैन भी ऊपर लाने में मेरी मदद की।

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मेरे पति अगली ही गली में पानी के बहाव में फंसे हुए थे। अब उनका फ़ोन भी नहीं लग रहा था।

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कुछ लोगो ने आवारा कुत्तो को अपनी छत पर शरण दी !

ये सुनिश्चित करने के बाद कि मैं और मेरी बेटी अब सुरक्षित हैं, ये चारो लड़के फिर हँसते, मुस्कराते, मस्ती करते हुए निकल पड़े। थोड़ी ही देर में मेरे पति भी घर पहुँच गए। हम तीनो अब साथ थे! मुझमे अब इस मुसीबत से लड़ने की मानो दुगनी ताकत आ गयी थी। घर के अन्दर घुटनों तक पानी था पर किसी बात की परवाह न करते हुए मेरे पति जितना हो सकता था उतना सामान ऊपर लाने लगे। करीब साढ़े पांच बजे तक मैं सामान इकठ्ठा करती रही और मेरे पति उन्हें ऊपर तक पहुंचाते रहे। आखिर साढ़े पांच बजे इतना अँधेरा हो गया कि घर के अन्दर कुछ भी देख पाना नामुमकिन हो रहा था। फ्रिज, सोफा, वाशिंग मशीन जैसे सामान अब अन्दर तैरने लगे थे। हम बाकी का सामान छोड़कर ऊपर आकर बैठ गए।

अगली सुबह – २ दिसम्बर २०१५

पूरा का पूरा ग्राउंड फ्लोर पानी में डूब चुका था!

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बारिश लगातार हो रही थी। जिन लोगो ने फर्स्ट फ्लोर में शरण ली थी अब वो बाहर निकलने को बेकरार थे। बस कुछ घंटो की बारिश और – और पानी फर्स्ट फ्लोर तक भी पहुँच जाता। आखिर सुबह ९ बजे दूर एक नाव दिखाई दी। सब उस नाव को बुलाने लगे। मदद की गुहार लगाने लगे पर वो सिर्फ एक ही परिवार के लोगो को लेने आई थी। बाद मे पता चला कि वो इस एरिया के किसी बड़ी हस्ती का परिवार था।

दूसरी नाव दोपहर में करीब एक बजे आई। मेरे पडोसी जो अपना घर बार छोड़कर सिर्फ पहने हुए कपड़ो के साथ दुसरे के घर पर आ गए थे, रेस्क्यू वालो से उन्हें ले जाने की मिन्नतें करने लगे। पर इस बार भी वो लोग सिर्फ एक परिवार को लेकर चले गए। हमारी छत के पीछे की और देखा तो एक पति पत्नी बहुत परेशान थे। दोनों नांव का बेसब्री से इंतज़ार कर रहे थे। जब हमने पूछा तो उन्होंने बताया कि जब पानी अन्दर आने लगा तो वो दोनों बिना खाना या पानी लिए ही ऊपर आ गए थे। अब हम उनके साथ खाना बांटने लगे पर पानी बहुत सिमित था। दिन भर हेलीकाप्टर गश्त तो लगा रहे थे पर अभी तक न खाना मिला था न पानी।

शाम के पांच बजे तक कोई नांव नहीं आई। अँधेरा हो चूका था और अब किसी मदद के आने की कोई उम्मीद नहीं थी। निराश होकर सभी अपने अपने घरो में जाकर बैठ गए।

अगली सुबह – ३ दिसम्बर २०१५

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पानी का स्तर काफी नीचे आ चूका था। अब हमें हमारी बाउंड्री वाल दिखने लगी थी। हमारे पड़ोसियों ने निश्चय किया कि कमर तक पानी आते ही वे पैदल ही यहाँ से निकल जायेंगे। पीछे का रास्ता ठीक से न पता होने की वजह से हमें निर्णय लेने में दुविधा हो रही थी। पर आखिर हमने भी तय किया कि हम भी पैदल ही निकल जायेंगे। मैंने कुछ अंडे उबाले ताकि हम खाकर जा सके। इतने में बाहर से कुछ आवाज़े सुनाई दी। मेरे पति ने देखा पीछे के रास्ते से एक छोटी सी नौका जा रही थी। हमारे कई बार बुलाने पे और ये कहने पे कि हमारे साथ एक छोटी बच्ची है, वो लोग हमें ले जाने को तैयार हो गए। इस नांव ने हमें बाहर तक छोडा, जहाँ एक एम्बुलेंस पहले से तैयार खड़ी थी। पर हमे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि हम कहाँ जांए। ऐसे में बचाव कार्य में लगे एक व्यक्ति ने हमें अपने घर पर आने का आमंत्रण दिया। ये सब TMMK नाम की एक संस्था कर रही थी।

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आखिर बड़ी मुश्किल से हमे एक होटल में एक रूम मिला। हमे होटल में सुरक्षित पहुंचाने के बाद मेरे पति अपने बाकी साथियो की मदद के लिए निकल पड़े।

इस बाढ़ ने हमारा सारा घर तबाह कर दिया पर हमें ज़िन्दगी के कई महत्वपूर्ण सीख भी दे गया …

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  • हमारे मोहल्ले में पानी का जो स्तर इतना बढ़ा था वो सिर्फ बारिश की वजह से नहीं था बल्कि सरकार के मजबूरन नदी का पानी छोड़ने के कारण बढ़ा था। यदि सरकार ऐसे विपदाओं के लिए पहले से तैयार रहती और लोगो को भी आगाह कर देती तो शायद लोगो को इतनी मुसीबतों का सामना न करना पड़ता।
  • जब सामने वाली बालकनी से आंटी बाहर आई और मुझे दुसरे मजले की बालकनी पर देखा तो उन्होंने कहा – “शुक्र है तुम ठीक हो!”

हाँ भले ही आप ये सुनते होंगे की तमिल बोलने वाले लोग उत्तर भारतियों से नफरत करते है पर सच ये है कि हर भारतीय मुसीबत में एक दुसरे को सुरक्षित ही देखना चाहता है।

  • जिन चार लडको ने मेरी मदद की, उन्हें मेरा नाम, जाती, धर्म कुछ पता नहीं था, पर फिर भी उन्होंने बिना किसी मतलब के मेरी मदद की। हम सभी को सचेत किया जाता है कि अनजान, वो भी युवा लडको पर कभी भरोसा नहीं करना चाहिए। पर अच्छे या बुरे लोगो की कोई उम्र, कोई जाती, कोई मज़हब नहीं होता।
  • मेरे पति ने हम तक पहुँचने के लिए अपनी जान की भी परवाह नहीं की। वो हमे और हमारी चीजों को बचाने के लिए अंत तक संघर्ष करते रहे। हाँ! भले ही पुरुष अपनी भावनाए व्यक्त नहीं कर पाते पर वे अपने परिवार को बचाने के लिए किसी भी हद तक जा सकते है।
  • मैंने हमेशा किसानो की मुश्किलों को समझा है, उनकी मदद करने की कोशिश भी की है पर १ दिसम्बर को जब मेरा घर डूब रहा था, उसमे रखी वो तमाम चीज़े डूब रही थी, जो मैंने और मेरे पति ने बहुत प्यार और मेहनत से पिछले सात सालो में जोड़ा था, तब मैंने किसानो के उस दर्द को सच में महसूस किया जिससे वो हर साल गुज़रते है, जब उनकी मेहनत से लगाई फसल उनकी आँखों के सामने बर्बाद हो जाती है। जिस तरह हर कोई इस मुश्किल की घडी में चेन्नई के साथ खडा रहा, उसी तरह हमे हमेशा किसानो का साथ देना चाहिए।
  • तीन दिनों तक जब हम बाढ़ में फंसे थे तो हमारे दोस्तों और रिश्तेदारों ने हम तक मदद पहुंचाने की हर संभव कोशिश की। उन्होंने सोशल मीडिया के सहारे जितनी हो सके उतनी मदद मांगी। कई दोस्त हेल्पलाइन नम्बरों पर लगातार कॉल करते रहे। मेरे पति के एक मित्र सुरक्षित जगह पर थे पर हमारी खबर मिलते ही हमारी मदद के लिए अपनी जान की परवाह किये बगैर हमारे इलाके में पहुँच गए। इन सब लोगो का प्यार और दुआएं दुनिया की किसी भी दौलत से बढ़कर है।
  • मेरी कंपनी वालो ने डिजास्टर टीम से संपर्क किया और यहाँ तक की एक नांव वाले से भी बात कर ली थी। मैं एक भारतीय कम्पनी के लिए काम करती हूँ। हम अक्सर उन्नति के लिए, कार्यक्षमता के लिए और अनुशाशन के लिए विदेशी कंपनियों की मिसाले देते है। पर जो गुण मेरी भारतीय कंपनी में है वो उन्हें किसी भी बड़ी विदेशी कंपनी से बहुत बड़ा बना देता है – और वो गुण है मानवता और संवेदना का!
  • जहाँ सरकारी राहत कार्यो को अंजाम देने वाले, आला अफसरों को बचाना ज्यादा ज़रूरी समझ रहे थे वही एक आम आदमी की संस्था ने हर एक ज़रूरतमंद को बचाना ज़रूरी समझा। क्या आप जानते है TMMK का पूरा नाम क्या है? “तमिल नाडू मुस्लिम मुन्नेत्र कज़ग्हम”। इस संस्था ने हिन्दू, मुसलमान, इसाई सभी धर्मो के लोगो की उतनी ही इमानदारी से सहायता की जितनी कोई अपने खुद के परिवार की करता है। तीन दिन तक मैंने अपना फ़ोन सिर्फ ज़रूरी मेसेज पढने के लिए ही शुरू किया। न फेसबुक देखा और न ट्विटर! और मुझे पता चला कि असहिष्णुता तो सिर्फ वही है…हमारे देश में नहीं!
  • और आखरी और सबसे बड़ी सीख ये है कि ज़िन्दगी जीने के लिए और ख़ुशी से जीने के लिए सिर्फ और सिर्फ चार चीजों की ज़रूरत होती है – खाना, कपडा, घर और अपनों का साथ ! इसके अलावा बाकि की चीज़े सिर्फ उपरी दिखावे के लिए है, भीतर की ख़ुशी के लिए नहीं !

बेघर होने के बावजूद मुझे कभी ऐसा नहीं लगा कि मैं असुरक्षित हूँ या इस शहर में मेरा कोई नहीं है! इसीलिए जब देश के सबसे प्रिय लोग असहिष्णुता की बाते करते है या असुरक्षित महसूस करते है, तो मुझे ऐसे लोगो की सोचने की शक्ति पर तरस आता है। मुझे गर्व है अपने भारतीय होने पर और हर भारतीय पर !

जय हिन्द !

 

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