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ऑटो-ड्राईवर ने गर्भवती महिला को पहुँचाया अस्पताल, 18 दिनों तक रखा नवजात बच्चे का ख्याल!

15 अप्रैल को एक यात्री को रेलवे स्टेशन छोड़ने के बाद बंगलुरु में वाइटफील्ड में रहने वाले ऑटो ड्राईवर बाबु मुद्द्रप्पा अपने घर लौट रहे थे।

दोपहर के लगभग 2:30 बजे, रास्ते में एक जगह उन्होंने किसी की दर्द से कराहने की आवाज़ सुनी। उन्होंने तुरंत जाकर देखा तो पता चला कि कोई गर्भवती महिला है, जिसकी प्रसव पीड़ा शुरू हो गयी है। जब भीड़ में से कोई भी उस महिला की मदद के लिए आगे नहीं आया तो बाबु उसे अपने ऑटो में बिठाकर अस्पताल लेकर गये।

उस दिन को याद करते हुए, बाबु ने द बेटर इंडिया को बताया, “मुझे उस महिला के लिए बहुत बुरा लगा जो कि दर्द में थी और साथ ही, लोगों का उसके साथ व्यवहार देखकर गुस्सा भी आया। मैं उसे वैदेही अस्पताल लेकर गया जहाँ डॉक्टरों ने मुझे उसे सी. वी. रमन अस्पताल ले जाने के लिए कहा।”

सी. वी. रमन अस्पताल पहुँचने पर बाबु से महिला के नाते-रिश्तेदारों के बारे में पूछा गया जो कि अस्पताल का फॉर्म भर सके। उस गर्भवती महिला ने अपना नाम नंदिता बताया।

“बदकिस्मती से किसी भी मरीज को भर्ती करवाने के लिए बहुत से अस्पतालों में दाखिला फॉर्म भरना ही होता है। पर वह महिला पहले से ही बहुत दर्द में थी, तो इसलिए उसके रिश्तदारों की खोजबीन करने की बजाय, सबसे पहले मैंने फॉर्म भर दिया। मरी आत्मा ने मुझे उसे वहां ऐसे छोड़कर जाने की इज़ाजत नहीं दी।”

बाबु ने बच्चे के जन्म तक अस्पताल में ही इंतज़ार किया। रात के लगभग 9:30 बजे उस महिला ने एक बच्ची को जन्म दिया। लेकिन इस बच्ची का जन्म समय से पहले (प्री-मच्योर बेबी) हुआ था और इस वजह से बच्ची को सांस लेने में काफ़ी तकलीफ़ हो रही थी।

बाबु ने अपना  दिन अस्पताल में निकाला और इसकी वजह से उनकी पूरे दिन की कमाई पर असर पड़ा। पर फिर भी वे बच्ची को डॉक्टरों के कहने पर एक दूसरे अस्पताल लेकर गये। और बच्ची को सही इलाज़ दिलाने के लिए यहाँ भी सभी ज़रूरी प्रक्रियाएँ पूरी कीं।

दूसरे दिन सुबह के पहले पहर में बाबु अपने घर पहुंचे और फिर ज़ल्दी से कपड़े बदलकर बच्ची की माँ को देखने सी. वी. रमन अस्पताल के लिए निकल गये। लेकिन अस्पताल पहुँचने पर उन्हें पता चला कि वह महिला, नंदिता भाग चुकी है।

इस बारे में बताते हुए, 29 वर्षीय बाबु ने कहा कि यह उनकी ज़िंदगी का शायद सबसे भयानक पल था, जब उन्हें पता चला कि वह औरत अपनी नवजात बच्ची को छोड़कर चली गयी है। उनके भी बच्चे हैं और माँ-बाप का इस तरह बच्चों को छोड़कर भागना बहुत ही बुरा है।

अगले 18 दिनों के लिए, बाबु अपने काम के बाद हर रोज़ अस्पताल जाकर उस बच्ची की देखभाल करते। अस्पताल का बिल भरने और दवाइयाँ खरीदने से लेकर बच्ची का ध्यान रखने तक, बाबु जो कर सकते थे उन्होंने सब कुछ किया और वह भी निःस्वार्थ भाव से।

“उन 18 दिनों में मैंने सिर्फ़ उस बच्ची के बारे में सोचा। शुरू में मैं थोड़ा घबरा गया था, लेकिन मेरी पत्नी ने मेरा साथ दिया और उसने तो बच्ची को गोद लेने के लिए भी कहा।”

लेकिन 4 मई को उस बच्ची की हालत बिगड़ने लगी और उसे बचाना मुश्किल हो गया।

उन्होंने आगे बताया कि डॉक्टरों ने उन्हें सुबह में फ़ोन करके बुलाया। उन्हें बताया गया कि समय से पहले जन्मे बहुत ही कम बच्चे जी पाते हैं। और उस बच्ची का भी खून की उल्टियाँ करने के बाद देहांत हो गया। “मैं बच्ची का अंतिम संस्कार करना चाहता था, लेकिन अस्पताल वालों ने मुझे इज़ाजत नहीं दी।”

बाबु के लिए वह बच्ची उसके अपने बच्चे की तरह थी और उसकी मौत के बाद बहुत दिनों तक वे उदास रहे। लेकिन कोई और माँ अपने बच्चे के साथ ऐसा न करे इसके लिए बाबु ने नंदिता के खिलाफ़ इंदिरानगर पुलिस स्टेशन में औपचारिक तौर पर शिकायत दर्ज करायी है।

यह पहली बार नहीं है जब इस तरह से बाबु ने किसी की मदद की है। पिछले दस सालों से वे ऑटो चला रहे हैं और इन सालों में कई बार उन्होंने लोगों की मदद की है। किसी यात्री का बटुआ लौटाया तो किसी ज़रूरतमंद को अस्पताल पहुँचाया और शायद ही किसी यात्री को सवारी के लिए मना किया हो।

“हर एक यात्री मेरे लिए भगवान की तरह है। उनकी मदद से मैं पैसे कमा रहा हूँ, जिससे मैं अपने बच्चों, पत्नी और माता-पिता की ज़रूरतें पूरी कर सकता हूँ। दूसरे इंसान की मदद करना मेरे लिए कोई काम नहीं है। यह नेकी है और मैं अपने आख़िरी दम तक यह करता रहूँगा।”

भारत में ऑटो ड्राईवर, ख़ासकर कि बड़े शहरों में, मीटर रेट से दुगना (कभी तिगुना भी) किराया वसूलने और बहुत बार ऑटो में ना बिठाने के लिए मशहूर हैं। पर भी ऐसे लोगों के बीच बाबु जैसे लोग भी हैं जो ड्यूटी करते हुए अपनी ज़िम्मेदारी निभाना भी जानते हैं।

वे लोगों को दूसरों की मदद करने की एक बेहतरीन सीख देते हैं। बहुत बार लोग मदद करना चाहते हैं लेकिन डरते हैं कि अगर इस सबमें वे कहीं फंस गये तो। लेकिन बाबु जैसे लोग हमारा इंसानियत पर विश्वास बनाये रखते हैं और हमें सिखाते हैं कि हमें भी लोगों के प्रति संवेदनशील रहना चाहिए।

मूल लेख: गोपी करेलिया

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