Site icon The Better India – Hindi

Tokyo Olympics: कहानी जैवलिन थ्रोअर नीरज चोपड़ा की, जिन पर टिकी हैं देशवासियों की निगाहें

Neeraj Chopra, javelin thrower

जापान में चल रहे टोक्यो ओलंपिक से, पहले वेटलिफ्टिंग, फिर बॉक्सिंग, बैडमिंटन, हॉकी और अब जैवलिन थ्रो से लगातार अच्छी खबरें आ रही हैं। टोक्यो ओलंपिक में जैवलिन थ्रो के क्वालिफिकेशन राउंड में भारत के नीरज चोपड़ा, पहले नंबर पर रहे। उन्होंने अपने पहले प्रयास में 86.65 मीटर का थ्रो कर, 7 अगस्त को होने वाले फाइनल में जगह बनाई। ऐसे में, अब करोड़ों भारतीयों की निगाहें और उम्मीद, बेहतरीन जैवलिन (भाला) थ्रोअर नीरज चोपड़ा (Javelin Thrower Neeraj Chopra) पर टिकी हुई हैं। 

नीरज का यह पहला ओलंपिक है और पहले ही ओलंपिक में उनसे पदक की उम्मीदें कई गुना ज्यादा हैं। इसका कारण है, रियो ओलंपिक का रिकॉर्ड। अगर उस मैच को देखें, तो जर्मनी के थॉमस रोहलर ने 90.30 मीटर के थ्रो के साथ स्वर्ण, कीनिया के जूलियस येगो ने 88.24 मीटर थ्रो से रजत और त्रिनिदाद और टोबैगो के केशोरन वाल्कॉट ने 85.38 मीटर का थ्रो करके कांस्य पदक जीता था। वहीं, नीरज चोपड़ा का वर्तमान रिकार्ड थ्रो 88.07 मीटर है। अगर वह इसी रिकॉर्ड पर भी कायम रहें, तो टोक्यो ओलंपिक से भारत के कब्जे में एक और पदक तो आ ही सकता है। नीरज, जितने कमाल के खिलाड़ी हैं और जितनी सफलताएं उन्हें मिली हैं, उनके जीवन में उतना ही संघर्ष भी रहा है। 

आर्मी में मिली नौकरी

He is commissioned into the Army as a Junior Commissioned Officer.
(Source: Instagram)

नीरज चोपड़ा, हरियाणा के पानीपत जिले के एक छोटे से गांव में पले-बढ़े हैं। उन्होंने बचपन में कभी जैवलिन या भाला देखा तक नहीं था, विश्व चैंपियन बनने की बात तो बहुत दूर की है। तब नीरज ने सपने में भी नहीं सोचा था कि एक दिन वह भारत के लिए जैवलिन थ्रो करेंगे और करोड़ों भारतीयों के लिए गोल्ड मेडल जीतकर लाएंगे।

लेकिन साल 2016 में, जब पोलैंड में IAAF वर्ल्ड चैंपियनशिप (Under 20) में, एक 18 साल के युवा खिलाड़ी ने पदक जीता, तो देश में खुशी की लहर दौड़ पड़ी। नीरज ने उस दिन 86.48 मीटर थ्रो करके सिर्फ जीत ही नहीं हासिल की, अपने जीवन का नया अध्याय भी लिखा। उस जीत के बाद, नीरज की ज़िंदगी बिल्कुल बदल गई। उन्होंने अपने दूसरे प्रयास में, 86.48  मीटर थ्रो कर, विश्वस्तरीय प्रतियोगिता में भारत का पहला स्वर्ण पदक जीता और वर्ल्ड रिकॉर्ड भी बनाया।

इस जीत के बाद, उन्हें आर्मी में जूनियर कमिशन्ड ऑफिसर के तौर पर नियुक्त कर दिया गया। नौकरी मिलने के बाद, नीरज ने एक इंटरव्यू में कहा, “मेरे पिता एक किसान हैं और माँ हाउसवाइफ। मैं एक ज्वॉइंट फैमिली में रहता हूं। मेरे परिवार में किसी की सरकारी नौकरी नहीं है, इसलिए सब मेरे लिए बहुत खुश हैं। अब मैं अपनी ट्रेनिंग जारी रखने के साथ-साथ अपने परिवार की आर्थिक मदद भी कर सकता हूं।”

“नहीं जी, सब बढ़िया है”

नीरज चोपड़ा, अंजू बॉबी जॉर्ज के बाद, किसी विश्व स्तरीय एथलेटिक्स चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीतनेवाले दूसरे भारतीय एथलीट हैं। हमारे आपके लिए बस कह भर देना बहुत आसान होता है, लेकिन असल में इस तरह की सफलता और मुकाम के लिए पूर्ण समर्पण और कड़ी मेहनत की ज़रूरत होती है।

हालांकि, नीरज जब भी अपने सफर की बात करते हैं, तो वह जीवन के संघर्षों  को थोड़ा एडिट करके बताने की कोशिश करते हैं। उनका मानना है कि आपका ध्यान हमेशा सकारात्मक पहलुओं की ओर होना चाहिए। शायद इसीलिए उनसे, जब भी उनके सफर में आने वाली कठिनाइयों के बारे में पूछा जाता है, तो वह बड़ी ही विनम्रता से कह देते हैं कि “नहीं जी, सब बहुत बढ़िया था।” 

23 जुलाई 2016, जैवलिन थ्रो फाइनल

Neeraj Chopra (Source: Instagram)

उस मैच में, क्वालीफाइंग के दिन, नीरज ने फाइनल के लिए कट बनाने के अपने पहले प्रयास में 78.20 मीटर का थ्रो किया। लेकिन, आमतौर पर शांत रहनेवाले नीरज, जब फाइनल के लिए ज़डज़िस्लाव क्रिज़िज़कोवियाक स्टेडियम में गए, तो अपने शरीर में एड्रेनेलिन की एक तरंग सी महसूस की। उनके साथ ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था। 

नीरज ने अपने उस मैच का अनुभव द इंडियन एक्सप्रेस को दिए एक इंटरव्यू में साझा करते हुए बताया, “वह दिन ही कुछ अलग था। उस दिन, मैं अपने वॉर्म-अप के दौरान भी काफी अच्छा महसूस कर रहा था। हालांकि, पहले प्रयास में पूरी जान लगाने के बाद भी परिणाम अच्छा नहीं था। लेकिन जब दूसरे थ्रो में, भाला मेरे हाथ से छूटा, तो मुझे लग गया था कि यह थ्रो अलग है। जब मेरा भाला हवा में था और जब नीचे ज़मीन पर उतरा, तो शोर कुछ अलग ही था। मैं भाला फेंकने के दौरान के उस बल को महसूस कर सकता था। मुझे पता था कि यह मेरे जीवन का सबसे अच्छा थ्रो है।”

जैसे, बल्ले से गेंद का संपर्क होते ही एक अनुभवी बल्लेबाज को पता होता है कि बॉल कहां जा रही है। ठीक वैसा ही नीरज के साथ भी हुआ। उनके दूसरे प्रयास का वह थ्रो बिल्कुल सही समय में, सबसे सटीक हिस्से पर लगा। उस एक थ्रो ने पदक और प्रशंसा के अलावा, नीरज को आखिरकार एक बड़ा सपना देखने का मौका दिया।

शोहरत को संभालने की ट्रेनिंग तो कभी ली ही नहीं

नीरज ने बताया, “थ्रो के बाद, मैं बेसब्री से बड़ी स्क्रीन पर, दूरी दिखाए जाने का इंतजार कर रहा था। जब स्क्रीन पर दूरी, 86.48 मीटर दिखाई गई, तो मुझे कुछ देर तक इस पर विश्वास ही नहीं हुआ। मेरे सामने, मेरी सालों की मेहनत, ट्रेनिंग और बलिदान का फल था। उस वक्त मुझे एहसास हुआ कि मैं कुछ बड़ा करने के लिए बना हूं और मुझे विश्वास हो गया था कि मैं एक दिन सबसे बड़े खेल आयोजन, ओलंपिक में पदक जीत सकता हूं।” 

जैसे ही पोलैंड में नीरज के पदक की खबर भारत पहुंची, उनका फोन बजना बंद ही नहीं हुआ। रातों-रात मिली लोकप्रियता को कैसे हैंडल किया जाए, यह तो नीरज को किसी ट्रेनिंग के दौरान सिखाया ही नहीं गया था।

उस इंटरव्यू में उन्होंने बताया, “उस समय, मैं इंस्टाग्राम या ट्विटर यूज़ नहीं करता था। मैं केवल फेसबुक पर था और मेरे दोस्त मुझे सोशल मीडिया पर फेमस लोगों के बधाई के स्क्रीनशॉट भेज रहे थे। इस तरह की वाह-वाही पाकर, मुझे बहुत अच्छा लगा। लेकिन ईमानदारी से कहूं, तो मैं इसके लिए बिल्कुल भी तैयार नहीं था। अचानक मेरे ऊपर इतना फोकस आ जाने से, मैं थोड़ा असहज महसूस कर रहा था। मुझे यह भी नहीं पता था कि अपने फोन पर उन अनगिनत मैसेजेज़ का जवाब कैसे दूं। इसलिए मैंने सोचा कि इसे पूरी तरह से बंद कर देना सबसे अच्छा होगा।”

जब कंधे पर लगी चोट

Neeraj was battling a shoulder injury (Source: Instagram)

इसके बाद साल 2019 का समय आया। यह, नीरज के लिए काफी मुश्किलों भरा साल रहा। इस दौरान वह कंधे की चोट से जूझ रहे थे और वापस खेलने के लिए फ़िट हुए, तो कोरोना की वजह से सारी प्रतियोगिताएँ एक-एक करके रद्द हो गईं। लेकिन जब काफी समय के बाद, पटियाला में इंडियन ग्रॉ प्री-3 में उन्होंने हिस्सा लिया, तो बेहतरीन वापसी करते हुए, उन्होंने 88.07 मीटर थ्रो कर, अपना ही रिकॉर्ड तोड़कर, एक नया राष्ट्रीय रिकॉर्ड बनाया।

नज़रें लक्ष्य पर हों, तो जीत खुद-ब-खुद मिल जाती है

नीरज का अंदाज और सोच दोनों ही दूसरे खिलाड़ियों से बिल्कुल अलग है। उनका कहना है, “हर कोई, हर समय पदक जीतने के बारे में सोचता है। लेकिन जब मैं प्रतिस्पर्धा कर रहा होता हूं, तो मेरा लक्ष्य सिर्फ सही थ्रो करना होता है। एक बार जब मैं ऐसा कर लेता हूं, तो बोनस के रूप में सबकुछ ले लेता हूं, यहां तक ​​कि पदक भी।”

उन्होंने सिर्फ वज़न कम करने के लिए ही खेलना शुरू किया था। तब उनके दिमाग में मेडल जीतने और बड़े स्तर पर खेलों में भाग लेने का कोई विचार नहीं था। 12 साल की उम्र में, उनका वजन 90 किलोग्राम था, जो उनकी उम्र के हिसाब से काफी अधिक था। खैर, यह बात अब बहुत पुरानी हो चुकी है। फिलहाल 23 साल का यह खिलाड़ी, एक स्वर्ण पदक विजेता है और अब उनका लक्ष्य 90 मीटर तक थ्रो करना है।

द बेटर इंडिया भारत के इस होनहार खिलाड़ी के उज्जवल भविष्य की कामना करता है। हमें पूरी उम्मीद है कि उनकी इस कहानी से देश के युवा खिलाड़ियों को प्रेरणा मिलेगी।

संपादन- जी एन झा

यह भी पढ़ेंः म्हारी छोरियां कम हैं के? लवलीना ने जीता पदक, कभी बेटा ना होने पर माता-पिता सुनते थे ताने

यदि आपको इस कहानी से प्रेरणा मिली है, या आप अपने किसी अनुभव को हमारे साथ साझा करना चाहते हो, तो हमें hindi@thebetterindia.com पर लिखें, या Facebook और Twitter पर संपर्क करें।

Exit mobile version