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अदिति अशोक: 5 साल की उम्र में न करती गोल्फर बनने की ज़िद, तो देश के लिए न ला पातीं मेडल

Aditi ashok, Golf player in Tokyo olympic

साल 2016 में हुए रियो ओलंपिक में, भारत की स्टार महिला गोल्फर अदिति अशोक (Golfer Aditi Ashok) सबसे कम उम्र की खिलाड़ी थीं। आज टोक्यो ओलंपिक में, गोल्फ खिलाड़ी के तौर पर भारत का प्रतिनिधित्व कर रहीं, 22 वर्षीया यह खिलाड़ी दूसरे स्थान पर हैं। अब देश को उनसे काफी उम्मीदें हैं।

अदिति ने, इस पुरुष-प्रधान खेल में महिलाओं की भागीदारी को मजबूत करने और लाइम लाइट में लाने के लिए एक लंबा सफर तय किया है।

अदिति कहती हैं, “रियो ओलंपिक के समय बहुत से लोग यह पता लगाने की कोशिश कर रहे थे कि गोल्फ क्या है? ताकि वे समझ सकें कि मैं कैसा खेल रही हूँ और क्या मैं पदक जीत सकती हूँ? अगले छह से बारह महीनों तक, सभी ने मुझे ओलंपिक के कारण ही याद रखा और पहचाना। हालांकि उसके बाद, मैंने तीन यूरोपीय टूर इवेंट जीते थे, लेकिन लोगों ने मुझे हमेशा उसी लड़की के रूप में याद किया, जिसने ओलंपिक में अच्छा प्रदर्शन किया था।

अदिति बन गईं ट्रेंडसेटर

Aditi Ashok, Golfer

साल 2013 एशियाई युवा खेल,  2014 युवा ओलंपिक और 2014 एशियाई खेलों में, जब वह एक महिला गोल्फर के रूप में राष्ट्रीय स्तर पर पहली बार खेलने गईं, तो अपने-आप में एक ट्रेंडसेटर बन गईं।

महिलाएं भी खेलों में हिस्सा ले सकती हैं, उनके लिए भी खेल एक अच्छा विकल्प हो सकता है, इसका समर्थन करते हुए, उन्होंने कहा, “मुझे लगता है कि किसी भी खेल में महिलाओं को अगर खेलना है, तो दो चीजों से उबरना होगा। सबसे पहले, इसे एक कारगर करियर ऑप्शन के रूप में देखना होगा। दूसरी बात, हमें यह समझने की जरूरत है कि एक महिला की जगह सिर्फ घर में नहीं होती है।”

अदिति की प्रतिभा और शानदार खेल के कारण, उन्हें अगस्त 2020 में अर्जुन अवॉर्ड से सम्मानित किया गया।

एक स्टार गोल्फर की रीढ़

बेंगलुरू की रहनेवाली, इस खिलाड़ी की रुचि बचपन से ही गोल्फ में थी और उनके माता-पिता दोनों ने उन्हें पूरी तरह से सपोर्ट किया। अदिति ने पांच साल की उम्र में कर्नाटक गोल्फ एसोसिएशन के पास एक रेस्टोरेंट में नाश्ते के दौरान, पहली बार इस खेल के बारे में जाना। गोल्फ एसोसिएशन में चल रहे मैच के दौरान, उन्होंने चियर-अप की आवाज़ें सुनी। उन्होंने अपने पिता से पूछा था कि यह क्या हो रहा है? तब उनके पिता ने उन्हें गोल्फ के बारे में बताया था। बस तभी से अदिति के मन में गोल्फ प्लेयर बनने की ज़िद घर कर गई।

इसके बाद, आगे चलकर उन्होंने गोल्फ एकेडमी में दाखिला लिया और इस खेल को और भी करीब से जानने लगीं। पांच साल की उम्र में एक लड़की के लिए गोल्फ खेलना इतना आसान नहीं था। लेकिन उनके माता-पिता मजबूती से उनके साथ खड़े रहे। अदिति को कभी उनकी माँ, तो कभी पिता एकेडमी में खेलने के लिए लेकर जाते थे।
उनके पिता, गुडलामणि कहते हैं, “उनकी माँ बहुत फोकस्ड रहती हैं। असल में, अदिति की माँ उनकी पूरी गोल्फ यात्रा की पिलर हैं।”

ये उनकी माँ का ही आत्मविश्वास था जिसकी वजह से, अदिति अपने हर बढ़ते कदम से रूढ़िवादी सोच को तोड़ती चली गईं। एक गोल्फर के रूप में न सिर्फ वह परिपक्व खिलाड़ी बनीं, बल्कि आत्मविश्वास से अपने सपनों को पूरा करते हुए दुनिया में अपनी पहचान भी बनाई। सालों की कड़ी मेहनत के बाद, अदिति ने फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।

अपने खेल को लेकर हमेशा से रहीं क्लियर

अदिति कहती हैं, “मैंने अपनी हाई स्कूल की परीक्षा दी ही थी कि ठीक दो महीने के बाद ओलंपिक था। लेकिन इस बार मुझे लगता है, निश्चित रूप से मेरे पास एलपीजीए (लेडीज प्रोफेशनल गोल्फ एसोसिएशन) में खेलने की तुलना में, बहुत अधिक अनुभव है। रियो ओलंपिक में खेलने के बाद, पिछले पांच सालों में मेरे खेल में काफी बदलाव आया है।”

5 अगस्त 2021 को, उन्होंने फाइव-अंडर 66 की कार्डिंग के साथ टोक्यो ओलंपिक के दूसरे दौर में प्रवेश किया। उनके बोगी-फ्री खेल ने उन्हें, नन्ना कोरस्टज़ मैडसेन और एमिली क्रिस्टीन पेडर्सन जैसे अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ियों से जोड़ दिया।

अपने प्रदर्शन के बारे में बात करते हुए, वह अपने खेल को लेकर बिल्कुल क्लियर थीं। उन्होंने कहा, “मुझे लगता है कि आज मैंने जितना सोचा था, उससे काफी बेहतर खेला। क्योंकि घास में बहुत सारे हाइब्रिड थे, इसलिए मुझे सच में उम्मीद नहीं थी कि मैं फाइव-अंडर 17 स्कोर करुंगी।”

मूल लेखः रिया गुप्ता

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