Site icon The Better India – Hindi

कैंसर के कारण अपनी बेटी को खो देने वाली माँ बनी सैकड़ों कैंसर पीड़ितों का सहारा!

शीबा अमीर ने अपनी बेटी को कैंसर के आगे अपनी ज़िन्दगी को हारते देखा है। अपने दुःख को भुला कर  अब वो कैंसर पीड़ितों की मदद अपनी संस्था “सोलेस” के द्वारा कर रही है।

शीबा अमीर की ज़िन्दगी तब थम सी गयी जब उन्हें पता चला कि उनकी १३ वर्षीय बेटी को कैंसर है। उन्होंने कई साल अस्पतालों में डॉक्टरों से मदद लेते और अपनी प्यारी बेटी को यथा संभव इलाज़ उपलब्ध कराते बिताई।

शीबा भावुक होते हुए कहती है –

“ये बहुत दुखद था कि मैं ये भी नही जानती थी कि अगले दिन मेरी बेटी जिंदा होगी भी या नहीं। हम लोग खुशकिस्मत थे कि हमारे पास उसका इलाज़ टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल से करने के लिए पर्याप्त पैसे थे। पर हर किसी की पास महंगे इलाज़ के लिए पैसे नहीं होते।”

शीबा (बीच में ) कैंसर पीडितो की न केवल आर्थिक सहायता करती है बल्कि उन्हें मानसिक आधार भी देती है

शीबा की बेटी बीमारी से लडती रही , कितने ही कीमो  सेशन और एक बोन ट्रांसप्लांट के बाद उसकी हालत में कुछ सुधार हुआ था। पर उसे एक इन्फेक्शन हो गया और उसकी कैंसर से जंग फिर से शुरू हो गयी जिसमे आखिरकार वो हार गयी ।

“वो एक फाइटर थी। वो बहुत बहादुरी से अपनी बीमारी से लड़ी लेकिन हमारी तमाम मशक्कतों के बाद भी वो नही बच पायी। मुझे अभी तक एक एक बात याद है। अपने बच्चे को इस तरह तकलीफ में असहाय होकर देखने से ज्यादा बुरा कुछ नही हो सकता।”

–शीबा भरे मन से कहती हैं।

शीबा ने निश्चय किया कि वो किसी को अपनी तरह असहाय नही होने देंगी। और फिर इस गृहिणी ने कुछ ऐसा किया जिसकी उन्होंने कभी खुद भी कल्पना नहीं की थी।

जब उनकी बेटी कैंसर से लड़ रही थी तब २००७ में उन्होंने एक संस्था बनाई जिसे उन्होंने नाम दिया “सोलेस” (सांत्वना) जिसका उद्देश्य कैंसर पीड़ितों और उनके परिवारों को सस्ती मेडिकल सुविधा और मानसिक और सामाजिक मदद मुहैया करना था।

शीबा अमीर

“क्यूंकि मैं इस दर्द से गुज़र चुकी थ , मैं नहीं चाहती थी कि कोई और माँ अपने बच्चे को खो दे। इसलिए मैंने सोलेस की शुरुआत की। एक सीधी साधी मुस्लिम गृहणी होने के कारण मुझे कभी अपने घर से बाहर निकलने का मौका नहीं मिला, पर मेरे संघर्ष ने मुझे ताकत दी”–शीबा कहती हैं।

सोलेस केरल के त्रिस्सुर में स्थित है। इसके तीन सेंटर हैं और ३०-४० लोगो की एक टीम है, जो कैंसर पीड़ितों की हर छोटी से छोटी जरुरत का ख्याल रखती है। परिवार के सदस्यों को काउंसलिंग देने से लेकर उन्हें आर्थिक मदद देने तक सोलेस कैंसर पीड़ितों के लिए एक उम्मीद की किरण है।

शीबा अपनी संस्था की मदद से हर महीने ८ लाख रूपये अपने साथ काम करने वालों को उपलब्ध कराती है। इस संस्था ने अब तक ९०० से भी अधिक लोगों की मदद की है। कई डॉक्टरों और दुनिया भर के कई शुभ चिंतकों ने दिल खोल कर सोलेस की मदद की है।

“ कई लोग हमारी मदद को आगे आये हैं। हम उन दोस्तों के शुक्रगुजार हैं, जिनकी आर्थिक सहायता से हम कुछ जाने बचा पा रहे हैं।”

– वो कहती हैं।

सोलेस ने सफलतापूर्वक कई कैंसर पीड़ितों की मदद की है। श्रीहरी जो एक स्कूली छात्र है, इस बात का एक उदाहरण है। श्रीहरी का परिवार उसका इलाज़ करने में समर्थ नही था। मदद के लिए उसका परिवार सोलेस के पास आया। यह संस्था श्रीहरी और उसके परिवार के साथ पूरे तीन साल तक जुडी रही और श्रीहरी को इस बिमारी से बाहर निकाला, आज श्रीहरी पहले की तरह नियमित तरीके से वापस पढाई कर पा रहा है।

शीबा कहती हैं-

“अक्सर पाया गया है कि परिवार का पीड़ित की ओर सारा ध्यान देने की वजह से उनके भाई बहनों की उपेक्षा होती है, हम उपेक्षितों को इस विषम परिस्थिति का सामना करने में समर्थन करते हैं।” 

शीबा अमीर को अपने असाधारण सेवाभाव और काम के लिए CNN IBN रियल हीरोज अवार्ड से भी नवाज़ा गया है

सोलेस मरीजों के परिवार को उपचार के पश्चात किस प्रकार से स्वस्थ लाभ मिले इस बात की भी जानकारी देती है, जैसे की स्वच्छता की महत्ता।

क्यूंकि सोलेस जिन्हें मदद करती है वो मुख्यतः गरीब होते हैं, शीबा मरीज की माँ को स्वतंत्र बनाने के लिए उन्हें जीविकोपार्जन ढूँढने में भी मदद करती है।

अपनी बेटी को खोने के बाद शीबा ने अपना सारा जीवन कैंसर पीडितो की मदद के लिए समर्पित कर दिया

शीबा अब कैंसर के क्षेत्र में अपने योगदान को और भी  विस्तार करना चाहती हैं, भविष्य में वह के पूर्ण  व्यवस्थित उपचार-पश्चात केंद्र को शुरू करना चाहती हैं जो मरीज के परिजनों की जरूरतों को पूर्ण करने में मदद करे। केरला में इस प्रकार के केंद्र का कार्य प्रगति पर है।

मुख्यतः परिजन मरीज का ख्याल रखते हुए इस कदर थक जाते हैं कि उनके लिए वापस साधारण जीवनयापन करना मुश्किल हो जाता है। सोलेस परिजनों को आराम देते हुए चैन से रहने का मौका कुछ दिनों के लिए उपलब्ध करेगी।

“एक महिला जिसका बच्चा कैंसर से पीड़ित था, वह मेरे पास आई। उनके पति भी उनपर मानसिक और शारीरिक अत्याचार करते थे। इन्ही  विषम परिस्थितिओं के कारण वे काफी दर्द में थी। वह शारीरिक और मानसिक रूप से बहुत कमजोर थी। हमने उन्हें मदद करने का  प्रयास किया मगर बहुत देर हो चुकी थी और उन्होने आत्महत्या कर ली। हम ऐसी महिलाओं की सही समय पर मदद करके उनकी जान बचाना चाहते हैं। हमारी संस्था उन्हें पैसे और सामाजिक समर्थन उपलब्ध करेगी, जो की बहुत ही महत्वपूर्ण है।” -शीबा

यदि आप शीबा अमीर की उनके इस नेक काम में मदद करना चाहते है, तो उनसे उनकी वेबसाइट के द्वारा जुड़ सकते है।

Exit mobile version