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निपाह वायरस : कारण, निवारण, बचाव और सावधानी!

निपाह वायरस (एनआईवी) की पहचान पहली बार 1998 में मलेशिया के कैम्पंग सुंगई निपाह में एक बीमारी फैलने के दौरान हुई थी। यह चमगादड़ों से फैलता है और इससे जानवर और इंसान दोनों ही प्रभावित होते हैं।

पिछले साल केरल में  निपाह नाम के वायरस की वजह से बहुत से लोगों की मृत्यु हुई थी। इन मरीजों की सेवा कर रही पेरंबरा तालुक हॉस्पिटल की नर्स लिनी पुथुसेरी की मृत्यु को भी शायद लोग अबतक न भूले हों। और एक बार फिर इस वायरस का डर राज्य पर मंडराने लगा है।

राज्य की स्वास्थ्य मंत्री के. के. शैलजा ने राज्य मेंं निपाह वायरस के पहले मामले की पुष्टि की है। एक 23 वर्षीय छात्र को एर्नाकुलम के अस्पताल में भर्ती करवाया गया था और उसका सैंपल टेस्ट के लिए पुणे स्थित राष्ट्रीय विषाणु विज्ञान संस्थान (एनआईवी) भेजा गया। संस्थान से निपाह वायरस के संक्रमण की पुष्टि होने के बाद, राज्य में अलर्ट जारी कर दिया गया है।

ऐसे में इस वायरस के बारे में जानना और ज़रूरी हो जाता है। इस लेख में हम आपको इस वायरस के बारे में सटीक जानकारी देने की कोशिश कर रहें हैं।

क्या है निपाह 

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, निपाह वायरस (NiV) एक नई उभरती हुई बीमारी है, जो जानवरों और मनुष्यों दोनों में गंभीर बीमारी की वजह बनता है। इसे ‘निपाह वायरस एन्सेफलाइटिस’ भी कहा जाता है।

मलेशिया के गावं सुंगई निपाह में साल 1998 में पहली बार यह वायरस फैला, उस गावं के नाम पर ही वायरस को निपाह नाम दिया गया। मलेशिया में यह बीमारी संक्रमित सूअरों की चपेट में आने की वजह से किसानों में फैली थी। भारत में इससे पहले साल 2001 और 2007 में यह वायरस पश्चिम बंगाल में फैला था और इस साल यह केरल में आंतक की वजह बना हुआ है।

कैसे फैलता है यह वायरस
नवभारत टाइम्स  की रिपोर्ट के मुताबिक निपाह वायरस का मुख्य वाहक एक ख़ास तरीके का चमगादड़ है जो कि फल या फल के रस का सेवन करता है और फ्रूट-बैट के नाम से जाना जाता है। केवल टेरोपस जीन्स वाले फ्रूट-बैट ही इस वायरस के वाहक होते हैं।
यह दुर्लभ और खतरनाक वायरस संक्रमित सूअर, चमगादड़ से इंसानों में फैलता है। इसके अलावा निपाह वायरस से इंफेक्टेड व्यक्ति के संपर्क में आने से भी यह वायरस फैलता है।

बीमारी के लक्षण
मुख्य लक्षणों में शामिल हैं, सांस लेने में तकलीफ़, तेज बुखार, सिरदर्द, जलन, चक्कर आना, भटकाव और बेहोशी जैसी हालत। इसके अलावा यदि पीड़ित व्यक्ति को 48 घंटों में उचित उपचार न मिले तो व्यक्ति कोमा में भी जा सकता है।

ख़बरों के मुताबिक केरल में यह बीमारी दो लोगों के संक्रमित आम खाने से फैली क्योंकि इन दोनों ही व्यक्तियों के घरों में निपाह वायरस से संक्रमित आम मिले। हो सकता है कि किसी फ्रूट बैट ने इन फलों को संक्रमित किया हो।

कैसे करें बचाव
तो यदि आप ऐसे क्षेत्र में है जो कि निपाह वायरस के अलर्ट पर है, तो अपने बचाव के लिए इन बातों पर अमल करें।

खजूर के फल व रस का सेवन न करें क्योंकि माना जाता है कि खजूर के खेतों में फ्रूट-बैट बहुत पाए जाते हैं। घरेलु जानवर भी इस वायरस के वाहक बन सकते हैं, यदि वे कहीं बाहर से संक्रमित फल का सेवन कर के आएं। तो कोशिश करें कि अपने पालतू जानवरों को घर के अंदर ही खिलाएं-पिलायें। यदि किसी भी जानवर के संक्रामक होने पर शक हो तो उन्हें स्वयं से दूर रखें और उचित उपचार दिलाएं।

पेड़ों पर न चढ़ें जहां फ्रूट चमगादड़ों के मल,लार व शुक्राणु के होने की सम्भावना हो सकती है।

महामारी विज्ञान सर्वेक्षण के मुताबिक इंसानो से इंसानों में इस बीमारी के फैलने के कम ही संयोग है। फिर भी सावधानी बरतें, क्योंकि पीड़ित व्यक्ति के रक्त, मल, लार या शुक्राणु के सम्पर्क में आने से वायरस फैलने का डर है।

इंसानों में निपाह वायरस के वाहक अधिकतर श्वसन स्राव होते हैं तो संक्रमित व्यक्ति से दूरी बनाकर रखें। संक्रमित व्यक्ति के खांसने, छींकने, लार व यूरिन के सम्पर्क में कतई न आएं। यहां तक कि साथ में खाना भी न खाएं। न ही बीमार व्यक्ति के साथ एक ही बाथरूम साँझा करें।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक निपाह वायरस से लड़ने के लिए वैक्सीन की खोज हो गयी है। यह टीका पुनः संयोजक उप-इकाई फॉर्मूलेशन है जो कि बिल्लियों पर प्रयोग करने पर कामयाब हुआ है।

इसके अलावा माइक्रो बायोलॉजिस्ट डॉक्टर जी. अरुणकुमार, पिछले साल केरल में इस खतरनाक वायरस के खिलाफ लड़ाई में सबसे आगे थे।

टाइम्स ऑफ़ इंडिया  की रिपोर्ट के मुताबिक डॉक्टर अरुणकुमार के ही कारण इस वायरस का पता चल सका और तुरंत ही अलर्ट जारी कर दिया गया था। डॉक्टर अरुणकुमार ने बताया, “इस तरह की बीमारी में हॉस्पिटल का स्टाफ सबसे ज्यादा खतरे के साये में जीता है, पर हम सावधानियां बरत रहें हैं और जल्द ही समुदायों में भी इन्फेक्शन को रोकने के लिए एहतियात किये जाएंगें।”

उम्मीद यही है कि इस बार इस खतरनाक वायरस पर शुरुआत से ही नियंत्रण पा लिया जाएगा। पर इसके लिए न केवल स्वास्थ्य विभाग बल्कि आम जनता को भी सावधानी से काम लेना होगा।

( संपादन – मानबी कटोच )


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