ग्राहकों के 6 अधिकार! जानिए कैसे ऑनलाइन कर सकते हैं शिकायत दर्ज

Consumer rights

कंस्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट 2019 एक ऐसा कानून है, जो सभी ग्राहकों के अधिकारों की रक्षा करता है। अगर आप किसी झूठे विज्ञापन के झांसे में आते हैं या अगर आपको किसी ने डिफेक्टिव प्रोडक्ट बेचा है, तो जानें कि आपको क्या करना चाहिए।

सर्विस चार्ज अनिवार्य नहीं होने की ख़बर पूरे देश में चर्चा का विषय बनी हुई है। इसी चर्चा को थोड़ा आगे बढ़ाते हुए हम आपको यहां ग्राहकों के अधिकार के बारे में बता रहे हैं, जिन्हें ग्राहक के रूप में, भारत के प्रत्येक नागरिक को जानना चाहिए।

क्या भारत में ग्राहकों की सुरक्षा के लिए कोई विशेष कानून है?

हाँ है, इसे ‘कंज्युमर प्रोटेक्शन एक्ट-2019’ के नाम से जाना जाता है। 

ग्राहक की श्रेणी में कौन लोग आते हैं?

अगर आप कोई सामान खरीदते हैं या किसी चीज़ (यानी पैसे) के बदले में किसी सेवा का लाभ उठाते हैं, तो आपको कानून के तहत एक कंस्यूमर या ग्राहक माना जाएगा। लेकिन अगर आप इन सामानों को आगे बेचने के लिए या किसी कमर्शिअल उद्देश्य के लिए खरीदते हैं, तो आपको ग्राहक नहीं माना जाएगा।

कानून के लिए खरीद के सभी माध्यम एक समान हैं। चाहे वह सामान खरीदना हो या ऑनलाइन सेवाएं प्राप्त करना। व्यक्तिगत रूप से टेलीशॉपिंग, डायरेक्ट सेलिंग या मल्टी-लेवल मार्केटिंग के माध्यम से – सभी प्रकार की खरीदारी कानून के तहत आती है।

ग्राहकों के अधिकार क्या-क्या हैं?

कंस्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट में मोटे तौर पर छह ग्राहक संरक्षण अधिकार शामिल हैं, जिनका उद्देश्य सामान्य रूप से ग्राहकों की सुरक्षा करना है:

  1. खतरनाक उत्पादों से सुरक्षा।
  2. अनफेयर ट्रेड प्रैक्टिस के खिलाफ सुरक्षा के लिए वस्तुओं और सेवाओं की विशेषताओं के बारे में सूचना का अधिकार।
  3. प्रतिस्पर्धी कीमतों पर विभिन्न प्रकार की वस्तुओं और सेवाओं तक सुनिश्चित पहुंच का अधिकार।
  4. सुनवाई का अधिकार और ग्राहक हितों के लिए उचित विचार किया जाना।
  5. किसी भी उपभोक्ता अधिकार के उल्लंघन के खिलाफ शिकायत करने का अधिकार।
  6. उपभोक्ता जागरूकता का अधिकार, यानी आप पर लागू कानून।

नया सर्विस चार्ज नियम कहता है कि किसी ग्राहक पर अनिवार्य रूप से इस तरह का शुल्क लगाना ‘अनफेयर ट्रेड प्रैक्टिस’ हो सकता है।

यह ‘अनफेयर ट्रेड प्रैक्टिस’ क्या है?

Indian consumer Rights
Indian consumer Rights

अगर किसी सामान की बिक्री, उपयोग या सप्लाई को बढ़ावा देने या कोई सेवा प्रदान करने के उद्देश्य से कोई अनुचित तरीका या भ्रामक प्रथा अपनाई जाती है, तो इसे अनफेयर ट्रेड प्रैक्टिस कहा जाता है और ग्राहकों के अधिकार के तहत शिकायत किए जाने पर कार्रवाई की जाती है।

यह बड़े पैमाने पर तब होता है, जब नीचे दी गई चीजों के लिए मौखिक, लिखित या विज़ुअली बयान दिया जाता हैः

  • किसी भी सामान या सेवाओं के लिए झूठा दावा करना कि वे किसी विशेष मानक, ग्रेड, मात्रा, गुणवत्ता आदि के हैं। 
  • किसी भी पुनर्निर्मित, पुरानी, मरम्मत की गई चीजों या पुराने माल को नया बताना।
  • गलत दावा करना कि किसी भी सामान, सेवाएं या विक्रेता के पास स्पॉन्सर, अप्रूवल, परफॉर्मेंस, विशेषताएं आदि हैं।
  • किसी भी सामान या सेवाओं की आवश्यकता या उपयोगिता से संबंधित गलत या भ्रामक दावा करना।
  • पर्याप्त या उचित टेस्ट के बिना, किसी प्रोडक्ट के प्रदर्शन, प्रभावकारिता या लाइफ की कोई वारंटी या गारंटी देना।

डिफेक्टिव प्रोडक्ट बेचे जाने पर ग्राहकों के अधिकार के तहत क्या करें?

अगर आपको एक डिफेक्टिव प्रोडक्ट बेचा जाता है, जो आपको नुकसान पहुंचा सकता है, तो प्रोडक्ट निर्माता, सेवा प्रदाता और विक्रेता जो आपको ऐसे प्रोडक्ट बेचते हैं, उन्हें कंस्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट के तहत सज़ा दी जा सकती है।

एक विज्ञापन ने दावा किया कि एक उत्पाद में कुछ गुण होते हैं। खरीदने के बाद, यह पता चला कि ऐसा नहीं है। क्या ऐसे मामलों में कुछ किया जा सकता है?

हां, ऐसे विज्ञापनों को भ्रामक विज्ञापन कहा जाता है। कंस्यूमर प्रोटेक्शन कानून के अनुसार, यदि किसी प्रोडक्ट या सेवा का विवरण देने वाला कोई विज्ञापन सटीक नहीं है और ग्राहकों को ऐसे प्रोडक्ट या सेवाओं का लाभ उठाने के लिए गुमराह करता है, उन्हें गलत जानकारी पर विश्वास करने के लिए गुमराह करता है, तो इसे भ्रामक विज्ञापन माना जाता है।

उदाहरण के लिए, ऐसे ब्रांड जो इस गारंटी के साथ उत्पादों का विज्ञापन करते हैं कि उनके प्रोडक्ट कम समय में बालों को लंबा करेंगे और निर्णायक वैज्ञानिक प्रमाण प्रदान करने में विफल रहते हैं। कई ब्रांड अक्सर ऐसे विज्ञापनों के माध्यम से ग्राहकों को गुमराह करते हैं। ऐसे में आप शिकायत दर्ज़ करा सकते हैं।

किसी प्रोडक्ट पर दिए गए MRP से ज्यादा पैसे लिए जाते हैं, तो क्या करें?

अक्सर, प्रोडक्ट्स और सेवाओं की एक निश्चित लागत होती है, जो ग्राहकों द्वारा वहन की जाती है। यह लागत, जब सरकार द्वारा तय की जाती है, तो उसे अधिकतम खुदरा मूल्य (MRP) कहा जाता है। अन्य मामलों में, कीमतें सामान पर या मूल्य सूची पर लिखी होती है या ग्राहकों और व्यापारियों/सर्विस प्रोवाइडर्स के बीच पहले से सहमति होती है।

किसी भी मामले में, जब इस तरह के सामान या सेवाओं को इस निश्चित लागत से अधिक कीमत पर बेचा जाता है, तो ग्राहकों के अधिकार के तहत शिकायत दर्ज करा सकते हैं।

क्या Amazon और Myntra जैसे ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म भी कंज्युमर प्रोटेक्शन कानून के दायरे में आते हैं?

हां, कंज्युमर प्रोटेक्शन अधिनियम, ई-कॉमर्स डोमेन को भी कवर करता है। यह विशेष रूप से कहता है कि इलेक्ट्रॉनिक प्रोडक्ट विक्रेताओं के पास किसी भी दूसरे विक्रेताओं के जैसे ही कर्तव्य, जिम्मेदारियां और देनदारियां होंगी।

इसमें यह भी कहा गया है कि किसी ग्राहक की व्यक्तिगत जानकारी को किसी अन्य व्यक्ति या संस्था के सामने प्रकट करना अनफेयर ट्रेड प्रैक्टिस माना जाएगा।

कोई भी प्रोडक्ट या सेवा जिसे ऑटोमेटेड या इलेक्ट्रॉनिक नेटवर्क के माध्यम से खरीदा या बेचा जाता है, वह इस कानून के दायरे में शामिल है। इसलिए, सभी ई-कॉमर्स रिटेल कंस्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट-2019 के तहत आते हैं।

ई-कॉमर्स लेनदेन के लिए शिकायत तंत्र:

  1. इंफॉर्मेशन टेक्नोलोजी एक्ट के अनुसार, ऐसी सभी वेबसाइटों/कंपनियों में एक शिकायत अधिकारी होते हैं, जिसके पास ऐसी शिकायतें दर्ज़ कराई जा सकती हैं।
  2. अगक ग्राहक की संतुष्टि के अनुसार, शिकायत का समाधान नहीं होता है, तो वह व्यक्तिगत रूप से विक्रेता/सेवा प्रदाता को समस्या को हल करने की समय सीमा के साथ शिकायत भेज सकते हैं।
  3. अगर शिकायत का फिर भी कोई समाधान नहीं मिलता, तो ग्राहक अपने शहर/स्थानीय क्षेत्राधिकार के कंस्यूमर फोरम में शिकायत दर्ज़ करा सकते हैं।

कहां दर्ज़ कराएं शिकायत?

ग्राहकों के अधिकार कानून के तहत, संरक्षित किसी भी उपभोक्ता अधिकारों के उल्लंघन के लिए, शिकायत दो तरह से दर्ज़ की जा सकती हैं- ऑनलाइन या फिर फिजिकल आवेदन यानी खुद जाकर शिकायत दर्ज करना।

  • ऑनलाइन शिकायत यहां दर्ज़ की जा सकती है।

फिजिकल यानी खुद जाकर शिकायत दर्ज़ करानी हो तो उपभोक्ता, विवाद निवारण आयोग में शिकायत दर्ज़ करा सकते हैं। यह आयोग जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर उपलब्ध हैं। आपके द्वारा प्राप्त वस्तुओं या सेवाओं के मूल्य के आधार पर इनमें से कहीं भी शिकायत दर्ज़ की जा सकती है।

उदाहरण के लिए, एक जिला-स्तरीय आयोग उन सामानों के बारे में शिकायत ले सकता है, जिनकी कुल कीमत 1 करोड़ रुपये से कम है। इसके अलावा, आप जिस जगह पर रहते हैं या काम करते हैं, वह जगह जहां विक्रेता रहता है या काम करता है या जहां विवाद शुरू हुआ है, उस जगह के आधार पर यह तय कर सकते हैं कि शिकायत किस फोरम दर्ज़ करानी है।

  • विवाद शुरू होने के दो साल के भीतर ही शिकायत दर्ज़ की जानी चाहिए। दो वर्ष बाद दर्ज़ की गई शिकायत पर विचार नहीं किया जाएगा।
  • अगर आपको शिकायत दर्ज़ करने को लेकर कोई संदेह या समस्या है, तो आप नेशनल कंस्यूमर हेल्पलाइन – 1915 पर कॉल कर सकते हैं।
  • ऐसी शिकायतें कैसे दर्ज करें, इस बारे में अधिक जानकारी यहां भी उपलब्ध है।

यह ब्लॉग आदित्य तन्नू और शोनोत्रा कुमार द्वारा लिखा गया है। आदित्य कंस्लटेंट फेलो हैं, जबकि शोनोत्रा Civis.Vote में सीनियर एसोसिएट फॉर आउटरीच एंड कम्युनिकेशंस के पद पर हैं। Civis.Vote एक गैर-लाभकारी मंच है, जो सरकारों और नागरिकों के बीच, मसौदा कानूनों और नीतियों पर प्रभावी संवाद बनाने के लिए काम करता है।

संपादनः अर्चना दुबे

यह भी पढ़ेंः महाराष्ट्र : आम नागरिक भी अब देख पाएंगे सरकारी फाईलें!

We at The Better India want to showcase everything that is working in this country. By using the power of constructive journalism, we want to change India – one story at a time. If you read us, like us and want this positive movement to grow, then do consider supporting us via the following buttons:

Let us know how you felt

  • love
  • like
  • inspired
  • support
  • appreciate
X