वर्ष 1995 में, केरल के त्रिशूर जिले के पझायन्नूर शहर में गवर्नमेंट हायर सेकेंड्री स्कूल बंद होने की चर्चा आम थी। गाँव के लोगों के लिए यह चर्चा का विषय तो था ही, साथ ही पूर्व छात्र भी अपने ही स्कूल का मजाक उड़ाया करते थे। स्कूल की स्थिति बदहाल थी।
स्कूल बंद होने की बात पर आखिर किसी को आश्चर्य क्यों नहीं हो रहा था?
इसका जवाब था, स्कूल के बच्चों का खराब रिजल्ट। दरअसल स्कूल का सेकेंड्री लेवल स्कूल सर्टिफिकेट (SSLC) एग्जाम का पास पर्सेंटाइल काफी नीचे हो गया था। इसके अलावा, स्कूल में छात्रों की संख्या में लगातार गिरावट आ रही थी। ज़्यादातर बच्चे सीबीएसई और आईसीएसई स्कूलों में दाखिला ले रहे थे।
लेकिन स्कूल की आलोचना करने वाले शायद एक शिक्षक के दृढ संकल्प को भांप नहीं पाए, जिन्होंने अगले कुछ वर्षों में ही स्कूल का कायाकल्प कर दिया।
अलापुझा के मावलिकारा के रहने वाले वी राधाकृष्णन को स्कूल में इतिहास शिक्षक के रूप में तैनात किया गया था। यह उनकी पहली नौकरी थी। स्थिति ऐसी थी कि स्कूल अपनी अंतिम सांस ले रहा था।
लेकिन इस समर्पित शिक्षक ने चीजों को बदलने का फैसला किया। स्कूल में नए बदलाव लाने के लिए कुछ अन्य शिक्षकों के साथ मिलकर उन्होंने एक सुधार कार्यक्रम शुरू किया ताकि छात्रों की मदद हो सके।
माता-पिता में शिक्षा के महत्व को लेकर जागरूकता से लेकर प्रत्येक छात्र को स्कूल के बाद स्कूल परिसर में ही मुफ्त में कोचिंग प्रदान करने तक, राधाकृष्णन और उनकी टीम ने सामूहिक रूप से प्रयास किया और एसएसएलसी पास परसेंटेज में चार गुना वृद्धि करके 80 का आंकड़ा पार कर लिया।
आज इसी स्कूल के कई छात्र आईएएस अधिकारी हैं और यह स्कूल उनके लिए एक अल्मा मेटर है। ये छात्र अपने शिक्षकों की कड़ी मेहनत को आज भी याद करते हैं।
बदलाव की शुरूआत
59 वर्षीय राधाकृष्णन ने द बेटर इंडिया को बताया, “मैंने उसी समय पीट मेमोरियल ट्रेनिंग कॉलेज, अलापुझा से अपना बीएड पूरा किया था और यह मेरी पहली पोस्टिंग थी। ईमानदारी से कहूं तो स्कूल के रिजल्ट से घबरा गया था और तुरंत अपने गृहनगर में तबादला चाहता था। तब स्कूल के वरिष्ठ शिक्षकों ने मुझसे बात की और हमने एक रिफॉर्मेशन प्रोग्राम शुरू किया।”
वह कहते हैं, “हालांकि मैंने शुरू में स्कूल से तबादले की इच्छा जाहिर की थी, लेकिन फिर मैंने 11 साल उस स्कूल में खुशी से काम किया।”
राधाकृष्णन के सामने सबसे बड़ी चुनौती थी, छात्रों की सोच। ज्यादातर छात्र ऐसे परिवारों से थे जो मुख्य रूप से खेती से जुड़े थे और खेती की गतिविधियों में सक्रिय रूप से भाग लेते थे। उनके लिए पढ़ाई महत्वपूर्ण नहीं था।
वह याद करते हुए बताते हैं, “उन्होंने हमेशा अपने माता-पिता को शिक्षा के बिना आय अर्जित करते हुए देखा था और इसके महत्व को महसूस नहीं किया है। यह एक बड़ी समस्या थी जिसका सामना हम शिक्षकों को करना पड़ा। ”
लेकिन एक बार कार्यक्रम को गति मिलने के बाद, गाँवके लोग भी शिक्षकों की मदद के लिए आगे आए। शिक्षकों द्वारा चलाए जा रहे जागरूकता कार्यक्रमों से उत्साहित, माता-पिता ने यह सुनिश्चित किया कि उनके बच्चे घर पर अपनी पढ़ाई पर पर्याप्त समय देंगे और स्कूल में नियमित उपस्थिति बनाए रखेंगे।
इसके अलावा, शिक्षकों ने स्कूल समय के बाद, उन छात्रों पर व्यक्तिगत ध्यान देना सुनिश्चित किया जिन्हें इसकी सबसे अधिक आवश्यकता थी। यह अतिरिक्त कोचिंग मुफ्त में दी जाती थी।
राधाकृष्णन जिन्होंने स्वयं पीएससी की तैयारी की थी और वह जानते थे कि पढ़ना कितना ज़रूरी है। वह बताते हैं, “कार्यक्रम के हिस्से के रूप में, मुझे लाइब्रेरी की ड्यूटी भी दी गई थी। मैंने यह सुनिश्चित किया कि प्रत्येक छात्र सप्ताह में एक बार लाइब्रेरी से कम से कम एक किताब उठाकर पूरा पढ़े। यह एक छोटा कदम लग सकता है, लेकिन इसने लंबे समय में मदद की और छात्रों में पढ़ने की रुचि पैदा की।”
सफलता की कहानियाँ
उस समय स्कूल में पढ़ने वाले छात्रों में से एक आईएएस 2009 बैच के डॉ. पी सरीन हैं जो केरल और कर्नाटक के पूर्व डिप्टी अकाउंटेंट जनरल भी रहे हैं।
डॉ. पी सरीन से उनके पुराने स्कूल और उनके शिक्षकों के बारे में बात करने के लिए द बेटर इंडिया ने संपर्क किया। वह बताते हैं, “स्कूल से निकलने के बाद भी, राधाकृष्णन सर हमेशा बड़े काम करने के लिए मुझे प्रेरित करते रहे। एमबीबीएस पूरा करने के बावजूद सिविल सेवाओं में जाने के पीछे राधाकृष्णन सर ही थे।”
राधाकृष्णन को अपने पूर्व छात्र सरीन पर गर्व है। वह बताते हैं, “सरीन हमारे विज्ञान बैच में थे। उच्च अंकों के साथ पढ़ाई पूरी होने के बाद उन्होंने ऑल केरला मेडिकल एंट्रेंस एग्जाम क्लियर किया और कोझीकोड मेडिकल कॉलेज में दाखिला लिया। फिर उन्होंने सिविल सेवा परीक्षा पास की। “
करंट अफेयर्स में अपनी गहरी दिलचस्पी रखने और अपने सामान्य ज्ञान को व्यापक बनाने के साथ, राधाकृष्णन ने ‘लेबर इंडिया’ जैसे केरल में प्रमुख अकादमिक प्रकाशनों के लिए बेहतरीन क्विज़ तैयार किए हैं। उनकी तकनीक इतनी लोकप्रिय हुई कि क्षेत्र के रेडियो चैनल उन्हें क्विज़ शो के लिए आमंत्रित करने लगे। शिक्षण के अलावा, उन्होंने मलयाला मनोरमा ईयरबुक के लिए भारतीय इतिहास-आधारित फीचर भी लिखी हैं।
इसके अलावा, राधाकृष्णन ने मलयालम में 24 इतिहास की किताबें लिखी हैं। इनमें से उनकी पसंदीदा किताब ‘नान कलाम’ (मैं कलाम) है जो एपीजे अब्दुल कलाम के जीवन पर आधारित है।
राधाकृष्णन अब सेवानिवृत्त हो चुके हैं और अब अपने गाँव में पीएससी कोचिंग क्लासेस दे रहे हैं। वह कहते हैं, “अगर आज भी मुझे कुछ हासिल हुआ है, तो वह मेरे छात्रों के दुआओं के कारण है। एक शिक्षक होने के नाते मैंने अपने जीवन में कई चीजों को अलग नज़रिए से देखा है और इससे मुझे वह क्षमता मिली है कि मैं हर बच्चे की क्षमता को ज्यादा से ज़्यादा बाहर ला सकूं।”
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