जब बगीचे या खेत को मेंटेन रखने की बात आती है तो सबसे पहले खेतों में पानी डालने की व्यवस्था करना सबसे जरूरी होता है। इसके बिना बागवानी या खेती संभव नहीं है।
इस प्रक्रिया को लोगों के लिए थोड़ा आसान बनाने के लिए करुनागापल्ली, कोट्टायम के बीजू जलाल ने सस्ती सिंचाई प्रणाली बनाई है। इसे सेटअप करना बहुत आसान है। सबसे खास बात यह है कि यह अपने आप 10 पौधों तक पानी पहुंचा देता है। इसके अलावा यह सिस्टम ग्रो बैग के लिए भी अच्छा है। यह पौधों को कीटों से नुकसान पहुंचाने से भी रोकती है।
सिंचाई प्रणाली
साल 2010 तक बीजू जलाल यूएई में एक एकाउंटेंट थे। केरल लौटने के बाद ही उन्होंने खेती में अपना समय देना शुरू किया।
बीजू बताते हैं, “केरल लौटने के बाद मैंने लगभग 20 ग्रो बैग से एक टैरेस गार्डन बनाया। इसमें मैंने गाजर, टमाटर, हरी मिर्च और कई किस्मों के पपीते लगाए। चूंकि यह बगीचा छत पर था, इसलिए मैं दिन में दो बार उन्हें पानी देने के लिए समय निकाल लेता था। इसी दौरान मैंने अपने पौधों के लिए विक इरिगेशन (wick irrigation) तकनीक अपनाने का फैसला किया।”
पारंपरिक विक इरिगेशन सिस्टम में एक बाल्टी में पानी भरा होता है जिसे बाद में एक ट्रे से ढक दिया जाता है। इसके बीच में छेद होता है, जिसके जरिए एक मोटी कॉटन विक लगायी जाती है। विक का एक सिरा पानी को उठाता है जबकि विक का दूसरा सिरा ग्रो बैग से होकर जाता है जिसे ट्रे के ऊपर रखा जाता है।
इस तरह पौधे अपनी जरूरत के अनुसार पानी ले लेते हैं। यहाँ परेशानी सिर्फ इतनी है कि आपको बाल्टी को पानी से भरते रहना होगा।
बीजू ने इस प्रणाली में कुछ सुधार करने और इसे और अधिक प्रभावी बनाने के बारे में सोचा। बाल्टी में पानी भरने के बजाय उन्होंने पीवीसी पाइप से बाल्टी को सीधे जोड़ दिया।
ऐसे में जब बाल्टी से पानी खत्म हो जाए, तो आप नल चालू करके बाल्टी में पानी भर सकते हैं। एक दूसरे से जुड़ी पीवीसी पाइप सभी बाल्टियों में समान मात्रा में पानी पहुंचाते हैं।
इस सिस्टम ने प्रदर्शनी और खेती की कार्यशालाओं में बहुत लोकप्रियता हासिल की। लेकिन बीजू को एक फीडबैक यह मिला कि पानी का घटता स्तर पता नहीं चल पाता है। इस समस्या को हल करने के लिए उन्होंने प्रोडक्ट को और विकसित किया और इसमें एक सस्ता वाल्व जोड़ा जो सिस्टम से टैंक से जुड़ा होने पर अपने आप पानी को पंप कर सकता है।
इस विक इरिगेशन सिस्टम की एक यूनिट में 10 बाल्टियाँ एक दूसरे से जुड़ी होती हैं, जिनकी लागत केवल 3000 रुपये तक आती है।
बीजू कहते हैं, “मैंने कभी नहीं सोचा था कि यह प्रणाली इतनी प्रसिद्ध हो जाएगी। पिछले 8 महीनों में मैंने इनमें से 20,000 से अधिक यूनिट बेच दी हैं। आगे भी ऑर्डर मिल रहे हैं!”
केरल के कन्नूर के रहने वाले माजुद्दीन ने एक यूनिट खरीदी है। वह कहते हैं कि इससे उन्हें छत पर बीन्स और मिर्च सहित कई तरह की सब्जियाँ उगाने में मदद मिली है।
ग्रो बैग के लिए टिप्स
सिंचाई प्रणाली रखरखाव को बहुत आसान बनाती है, लेकिन बीजू कहते हैं कि ग्रो बैग पर बहुत अधिक ध्यान देने की जरूरत पड़ती है।
बीजू द्वारा दिए गए कुछ आसान से सुझाव:
ग्रो बैग में मिट्टी कम से कम 2 हफ्ते तक सूखनी चाहिए। फिर मिट्टी को डोलोमाइट (मैग्नीशियम और कैल्शियम का मिश्रण) के साथ प्रतिदिन पानी के साथ छिड़का जाना चाहिए। यह पानी को सोखने के लिए तैयार कर देगा।
विक को ग्रो बैग के अंदर रखने से पहले उसे पानी में कम से कम 10 मिनट के लिए भिगोना चाहिए।
कीड़ों को दूर रखने के लिए लहसुन और नीम के पत्तों के मिश्रण जैसे प्राकृतिक कीटनाशकों का उपयोग करें। अगर ग्रो बैग को सीधी धूप में रखा जाता है, तो नमी की कमी से बचने के लिए ग्रो बैग के खुले हिस्सों को सूखे पत्तों या कागज से ढक दें।
बीजू बताते हैं, “अगर एक परिवार के पास इस सिंचाई प्रणाली की तीन यूनिट हैं, तो वे आसानी से बिना अधिक मेहनत के पूरे साल के लिए सभी सब्जियाँ उगा सकते हैं।”
हमें उम्मीद है कि बीजू की तकनीक ने आपको इस सिंचाई प्रणाली को आज़माने के लिए प्रेरित किया होगा। अगर यह टिप्स आपके काम आए तो हमें जरूर बताएं।
मूल लेख-SERENE SARAH ZACHARIAH
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