Site icon The Better India – Hindi

100 किसानों के उत्पाद लेकर 12 किस्म के चिप्स बनाए, विदेश तक पहुँचाया भारत का स्वाद

कर्नाटक के श्रृंगेरी में रहने वाले भारद्वाज कारंत हमेशा से ही अपने इलाके के लिए कुछ करना चाहते थे। उन्होंने देखा था कि कैसे लोग अच्छे जीवन की तलाश में बड़े-बड़े शहरों में जाकर बस रहे हैं। खुद किसान परिवार से होने के चलते उन्होंने बहुत करीब से किसानों की परेशानी को समझा। दरअसल वह किसानों के लिए कुछ करना चाहते थे और इसके लिए उन्होंने प्रोसेसिंग क्षेत्र को चुना।

28 वर्षीय भारद्वाज ने कंप्यूटर साइंस में एमएससी की है। इसके बाद पीएचडी करने लिए वह कोयम्बटूर गए थे। पीएचडी के लिए उनका टॉपिक डिजिटल प्रोसेसिंग था जिसमें आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस भी शामिल है। अपनी पढ़ाई के साथ-साथ उन्होंने एक कॉलेज भी ज्वाइन कर लिया और बतौर लेक्चरर काम करने लगे। साथ ही, वह यह भी सोचने लगे की कैसे वह अपने इलाके के लोगों के लिए काम कर सकते हैं।

भारद्वाज ने द बेटर इंडिया को बताया, “अगर आप श्रृंगेरी की जनसंख्या को देखेंगे तो पता चलेगा कि 80 प्रतिशत लोग किसानी करते हैं। लेकिन किसानों के लिए अपनी फसल को बाज़ारों तक पहुँचाना बहुत मुश्किल है। उन्हें इसके लिए चिक्कामग्लुरु या फिर शिवमोगा जाना पड़ता है जो लगभग 100 किमी दूर है।”

Bharadwaj Karanth

उन्होंने देखा कि ट्रांसपोर्टेशन के चक्कर में उनकी ताज़ा फसल बहुत बार खराब हो जाती है। इन परेशानियों को देखते हुए ही उन्हें महसूस हुआ कि कुछ ऐसा किया जाए जिससे इलाके में रोज़गार उत्पन्न हों।

भारद्वाज ने 2014-17 के बीच फूड प्रोसेसिंग क्षेत्र के एक्सपर्ट्स के साथ समय बिताया और नई-नई जानकारी हासिल की। उन्होंने मैसूर के सेंट्रल फ़ूड टेक्नोलॉजिकल रिसर्च इंस्टिट्यूट और इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ हॉर्टिकल्चर रिसर्च का भी दौरा किया। इन दौरों ने उन्हें फ़ूड प्रोसेसिंग से जुड़ी तकनीकों को समझने में मदद की। उन्होंने अलग-अलग तकनीकों को देखा लेकिन ये सभी तकनीक प्राकृतिक नहीं थी। किसी में चीनी का ज्यादा इस्तेमाल था तो कहीं तेल का।

“आखिरकार मुझे इंडोनेशिया, वियतनाम जैसे देश में इस्तेमाल होने वाले प्रोसेसिंग सिस्टम के बारे में पता चला। दरअसल वहाँ सब्जियां और फल ड्राई फॉर्म में खाए जाते हैं और वह भी बिना किसी एडिटिव के। मैंने उनकी तकनीक के बारे में जाना,” उन्होंने आगे कहा।

Women Working in the Unit

इंडोनेशिया और वियतनाम में जो मशीन इस्तेमाल हो रही थी उसे खरीदने के लिए भारद्वाज को 40 लाख रुपये की ज़रूरत थी। इसके लिए उन्होंने अपने दोस्तों और रिश्तेदारों से फंड्स इकट्ठा किए और लोन के लिए भी अप्लाई किया।

आखिरकार, साल 2017 में उन्होंने ‘कारंत फूड्स’ शुरू किया और अब ‘फ्रूट ट्रीट’ ब्रांड नाम के तहत वह कटहल, केला, चीकू, पपीता, भिंडी, आम, शकरकंद, चकुंदर और लहसुन आदि के 12 किस्म के स्नैक्स बना रहे हैं। हर साल वह लगभग 100 जैविक किसानों से लगभग 100 टन फल खरीदते हैं।

भारद्वाज के यूनिट में चिप्स वैक्यूम ड्राई तकनीक से बनाए जाते हैं। इस तकनीक से लगभग 80-90% कम तेल का इस्तेमाल होता है। ये स्नैक्स 100% प्राकृतिक हैं मतलब कि इनमें कोई केमिकल, प्रेजरवेटिव, और चीनी आदि का इस्तेमाल नहीं किया गया है। भारद्वाज के ये स्नैक्स लगभग 110 आईटी कंपनियों के कैफेटेरिया सहित सीसीडी, एयरपोर्ट्स, इ-कॉमर्स प्लेटफार्म पर बिक रहे हैं। साथ ही, मिडिल ईस्ट देशों में भी इनका निर्यात किया जा रहा है।

Chips of Okra, Garlic, Banana, Jackfruit, etc

जब उन्होंने कंपनी शुरू की तो इसका नाम ‘सुविधा फूड्स एंड बेव्रजीज’ था, जिसे बाद में उन्होंने बदल दिया। कई ट्रायल के बाद जनवरी 2018 में उनके प्रोडक्ट्स का पहला बैच मार्केट के लिए बनकर तैयार हुआ। उन्होंने 1500 स्क्वायर फीट में किराए की जगह से अपनी शुरूआत की और अब 7000 स्क्वायर फीट में अपनी फैक्ट्री यूनिट चला रहे हैं।

उनकी इस कंपनी से सबसे ज्यादा फायदा किसानों को हुआ है। हालांकि, उन्हें किसानों का विश्वास जीतने में काफी समय लगा। शुरू में वह खुद किसानों से फल और सब्ज़ियां लेने जाते थे लेकिन अब किसान खुद उनके यहाँ माल पहुंचाते हैं। किसानों को अब उनकी ताज़ा फसल का उचित दाम मिलता है और अब उन्हें अपने फसल को बेचने के लिए कई दिन इंतज़ार नहीं करना पड़ता है।

24 वर्षीय किसान निखिल एमएम बताते हैं कि बाज़ार पास न होने से अक्सर उनकी ताज़ा फसल खराब हो जाती थी। लेकिन अब यह समस्या खत्म हो गई है।

“अब मैं जब भी यूनिट आता हूँ तो अपने खेत और अन्य किसानों के खेतों से ताज़ा फल और सब्जियां ले आता हूँ। हमें अपनी उपज का अच्छा दाम मिलता है और ट्रांसपोर्टेशन का जो खर्च होता है उसे हम किसान आपस में बाँट लेते हैं,” उन्होंने आगे कहा।

His Processing Unit

भारद्वाज ने अपने ग्राहकों से अच्छा रिश्ता बना लिया है। बेंगलुरु में रहने वाले सुब्रमण्यम भट ने अपने एक दोस्त से भारद्वाज के स्नैक्स के बारे में सुना था। उन्होंने लगभग 2 साल पहले इसे ट्राई किया था और अब ये उनके फेवरेट चिप्स में से एक है। सुब्रमण्यम कहते हैं, “भारद्वाज की पहल ने काफी प्रभावित किया क्योंकि वह किसानों की फसल को खराब होने से भी बचा रहे हैं।”

अपने इस सफर में भारद्वाज को कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा। बड़े शहरों से दूर किसी इलाके में कंपनी चलाने में बहुत सी समस्याएं हैं। सबसे पहले तो उन्हें मशीनरी के लिए पैसा इकट्ठा करने में ही काफी चुनौतियों का सामना करना पड़ा। इसके बाद उन्हें अपने प्रोडक्ट्स के टेस्ट को मेन्टेन करना था। वह कहते हैं, “इन सभी प्रोडक्ट्स के रॉ मटेरियल में नमी सबसे ज्यादा होती है। इसलिए अगर 1 किलो रॉ मटेरियल को प्रोसेस किया जाए तो यह मात्र 100-150 ग्राम रह जाता है। ऐसे में, प्रोडक्शन कॉस्ट बढ़ जाती है।”

His new brand, Ruchira

हालांकि, इन सभी परेशानियों के बावजूद उनके स्नैक्स के टेस्ट और गुणवत्ता ने उन्हें बाजार में अपनी जगह बनाने में मदद की। जिस कॉलेज में वह पढ़ाते हैं वहाँ एक आयोजन के दौरान मणिपाल ग्रुप के चेयरमैन रंजन पै का आना हुआ। यहाँ उन्हें भारद्वाज की यूनिट के स्नैक्स ऑफर किए गए। उन्हें स्नैक्स बहुत अच्छे लगे और उन्होंने भारद्वाज को बेंगलुरु मिलने बुलाया। रंजन पै ने उनके आईडिया को समझा और उनकी कंपनी में इन्वेस्ट भी किया।

यह इन्वेस्टमेंट भारद्वाज और उनकी कंपनी के लिए बहुत बड़ी उपलब्धि थी। अब वह एक नए ब्रांड नाम, रुचिरा के तहत मसालों और सीजनिंग की वैरायटी भी लॉन्च कर चुके हैं।

अंत में भारद्वाज सिर्फ इतना कहते हैं कि उनका उद्देश्य इलाके में और रोज़गार उत्पन्न करना है। अक्सर लोगों को लगता है कि इस तरह के दूर-दराज के इलाकों में बिज़नेस संभव नहीं। लेकिन यह सोच गलत है, अगर आप मेहनत करें और ईमानदारी से आगे बढ़ें तो सब कुछ मुमकिन है!

भारद्वाज कारंत से 097436 40415 पर संपर्क कर सकते हैं!

यह भी पढ़ें: मेघालय: बांस और मिर्च के अचार से शुरू किया व्यवसाय, अब विदेशों तक जाते हैं प्रोडक्ट्स

मूल स्त्रोत: अंगरिका गोगोई 


यदि आपको इस कहानी से प्रेरणा मिली है, या आप अपने किसी अनुभव को हमारे साथ साझा करना चाहते हो, तो हमें hindi@thebetterindia.com पर लिखें, या Facebook और Twitter पर संपर्क करें। आप हमें किसी भी प्रेरणात्मक ख़बर का वीडियो 7337854222 पर व्हाट्सएप कर सकते हैं।

Exit mobile version