झारखंड के हजारीबाग जिले में एक गांव है, लराही। भारत के ज़्यादातर गांवों की तरह पक्की सड़क का न होना यहाँ भी एक बुनियादी समस्या है। साल-दर-साल चुनावी मौसम में नेता ग्रामीणों से गाँव में सड़क बनवाने का वादा करते रहे और ये वादे बारिश के पानी की तरह बहते रहे। जब 20 साल तक सड़क बनाने की अर्जी नहीं सुनी गई तो गाँव वालो ने इस काम का बीड़ा खुद ही उठा लिया और लगभग पूरा भी कर दिखाया।
लराही गाँव झारखंड में हजारीबाग से 50 किलोमीटर दूर है। यहाँ से निकटतम शहर कोडरमा पड़ता है जो कि 40 किलोमीटर दूर है।
गाँव में करीब 81 घर हैं और यहाँ की आबादी लगभग 500 है। इन 500 लोगों के लिए गाँव में कोई अस्पताल नहीं है। इलाज के लिए इन्हें 40 किमी दूर कोडरमा जाना पड़ता है। अब तक गाँव के कई लोग सही वक्त पर इलाज न मिलने के कारण दम तोड़ चुके हैं।
लराही गाँव में सिर्फ एक प्राथमिक विद्यालय है और प्राथमिक शिक्षा के बाद यहाँ के अधिकतर बच्चों को पढ़ाई छोड़नी पड़ती है।
“प्राइमरी के बाद हमारे बच्चे स्कूल छोड़ देते हैं। बच्चों को कोडरमा या हजारीबाग भेजकर पढ़ाने का खर्च उठाना सबके बस की बात नहीं है। 45 किमी रोज आना-जाना भी मुमकिन नहीं है,” गाँव के बिनय कुमार ने बताया।
गाँव में 1.5 किमी लंबी कच्ची सड़क है जो गाँव को कोयला नदी से होकर राष्ट्रीय राजमार्ग-2 से जोड़ती है। लेकिन इस सड़क पर अक्सर पानी भरा रहता है। बारिश के मौसम में इसमें 15 से 20 फीट तक पानी जमा हो जाता है।
इस सड़क के अलावा भी गाँववालों को राजमार्ग तक पहुँचने के लिए कोयला नदी पार करना पड़ती है।
पर विपरीत स्थितियों में गाँववालों के पास कोडरमा तक पहुँचने के लिए इस खतरनाक रास्ते से गुजरने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं है।
गाँव को शहर से जोड़ता हुआ छोटा रास्ता हमेशा पानी से भरा रहता था
साल 1996 में 12 लोगों को लेकर जा रही एक नाव कोयला नदी में पलट गई। इस घटना में 6 लोगों की मौत हो गई। गाँव के त्रिलोकी यादव जो तब 15 साल के थे, ने अपनी आँखों से ये सब देखा और उनपर इस घटना का बहुत प्रभाव पडा।
त्रिलोकी ने गाँववालो को तब से ही सरकार से गाँव में पक्की सड़क और कोयला नदी पर पुल बनावाने की गुहार करते देखा था। चुनाव के समय अक्सर नेता इस सड़क और पुल को बनवाने का आश्वासन दिया करते पर चुनाव होते ही अपने किये वादे भूल जाते।
इसी बीच 2012 में त्रिलोकी को माउंटेन मैन दशरथ माँझी के बारे में पता चला। माँझी के पहाड़ तोड़कर रास्ता खोद निकालने की कहानी त्रिलोकी को छू गई। और इसी से प्रेरणा लेकर उन्होंने अपने कुछ दोस्तों के साथ मिलकर सड़क बनाने की योजना बनाई।
“मुझे लगा कि जब एक इंसान अकेले पहाड़ तोड़कर रास्ता बना सकता है तो हम गाँववाले मिलकर सड़क क्यों नहीं बना सकते! माँझी ने 22 साल में रास्ता बना लिया था और हम 20 साल से सरकार से गुहार कर रहे हैं। अगर हम सरकार के भरोसे न बैठे होते तो अब तक हमारे गाँव में सड़क बन गई होती,” त्रिलोकी कहते है।
इसकी शुरूआत 2012 में गाँववालों से चंदा इकट्ठा करने से हुई। गाँव के अधिकाँश लोग प्रवासी मजदूर हैं इसलिए उन्हें सड़क बनाने का काम पहले से आता था। पैसों के साथ साथ उन्होंने श्रमदान करने का भी फैसला किया।
2016 तक गाँववाले सड़क और पुल बनाने के लिए 50 लाख के बजट के साथ तैयार थे।
बिनय कुमार ने कहा, “ये पैसे बहुत मुश्किल से इकट्ठे हुए हैं। गाँव के ज्यादातर लोग किसान या मजदूर हैं। हमारे लिए हमारे बच्चों का पेट भरना भी मुश्किल हो जाता है। फिर भी सभी ने अपनी-अपनी क्षमता के मुताबिक पैसे जोड़े।”
आखिरकार, 28 फरवरी 2016 को सड़क और पुलिया बनाने का काम शुरू हुआ।
गाँववालों ने कंस्ट्रक्शन साइट पर टेन्ट लगा लिए औऱ जरूरत के हिसाब से वहीं ठहरने लगे। ये टेन्ट ही इनके घर बन गए। इन्होंने होली और रामनवमी तक यही मनाई।
एक बार सड़क पूरी बन जाए तो लराही से कोडरमा की दूरी 15 किलोमीटर तक घट जाएगी। बरही कस्बा भी गाँव से सिर्फ 7 किमी दूर रह जाएगा।
अब तक सड़क बनाने का 85% काम हो चुका है। लेकिन मंजिल के इतने करीब आकर एक चिंता ने इन मेहनतकशों की नींद उड़ा दी है।
त्रिलोकी अपनी समस्या बताते हुए कहते हैं, “हमने सड़क पर 15 से 17 फीट तक मिट्टी डाल दी है। अब अगर बरसात का मौसम आने से पहले हमारा काम पूरा नहीं हुआ तो हमारी सारी मेहनत भी पानी में बह जाएगी। मैं सरकार से गुजारिश करता हूँ कि अब हमारी मदद करें।”
हम आशा करते है कि इन मेहनती और साहसी गांववालों की गुहार सरकार तक पहुंचे और उन्हें जल्द से जल्द इस सड़क को पूरा करने के लिए सहायता मिले!
यदि आप इन गांववालों की मदद करना चाहते है तो उन्हें 8521514773 या 9934151150 पर संपर्क कर सकते है।