जी हाँ, जिंदगी आपको नेटफ्लिक्स की सोहबत के लिए नहीं मिली थी और न ही यह मिली थी यूट्यूब से रेसिपियाँ टीपकर दिन-भर किचन में तड़के लगाने के लिए! सुप्रसिद्ध घुमंतू राहुल सांकृत्यायन कह गए हैं-
‘’मेरी समझ में दुनिया की सर्वश्रेष्ठ वस्तु है घुमक्कड़ी। घुमक्कड़ से बढ़कर व्यक्ति और समाज का कोई हितकारी नहीं हो सकता। दुनिया दु:ख में हो चाहे सुख में – सभी समय यदि सहारा पाती है, तो घुमक्कड़ों की ही ओर से।”
आप भी अगर इस ‘घुमक्कड़ पंथ’ के अनुयायी हैं तो सोच में होंगे कि यात्राओं पर पड़ी बेड़ियों से कैसे मुक्त हुआ जाए।
समय हर सवाल का जवाब लेकर आता है। हड़बड़ी में बुकिंग करने की जिद की बजाय यह समय है विचार-मंथन करने का कि जब सचमुच अगली बार घर से निकलना होगा अपने ट्रैवल बैग के साथ तो कैसा होगा वह सफर?
निजी वाहनों में रोड ट्रिप्स से दूर होगी शुरुआती हिचक
लॉकडाउन खत्म होने का मतलब यह नहीं होगा कि वायरस पूरी तरह से खत्म हो गया है। शुरू में पब्लिक ट्रांसपोर्ट बरतने के ख्याल से आप बेचैन हो सकते हैं, विमानयात्राओं की अनगिनत शर्तें और रेलगाड़ियों से सफर में हजारों लोगों के संपर्क में आने का खतरा आपको असहज बना सकता है। ऐसे में सैल्फ ड्राइविंग हॉलीडे या रेन्टेड कार से रोड ट्रिप्स बेहतर विकल्प होंगे। इसका एक सीधा-सीधा मतलब यह भी है कि आप अपने घर के 400-500 किलोमीटर तक के दायरे में ही सफर के साथ शुरुआत करोगे।
ट्रैवल लाइट का मंत्र
कोरोना का आतंक अभी आने वाले लंबे समय तक किसी न किसी रूप में बना रहेगा। पराई ज़मीन पर, अनजानी सतहों पर, नए ठिकानों में, नए बर्तनों में, अनदेखे हाथों से खान-पीन स्वीकार करने को लेकर मन में बैठा वहम, बहुतों की जिंदगी से आसानी से नहीं निकलने वाला। यानी, सैनीटाइज़र, मास्क, ग्लव्स, तौलिया, डेटोल, साबुन और यहाँ तक कि डिटर्जेंट साथ लेकर चलेंगे घुमक्कड़। बार-बार इनका इस्तेमाल भी करेंगे। ऐसे में आसानी तभी होगी जब हाथ खाली रहेंगे, पीठ पर बोझ हल्का होगा, फालतू के झमेले कम होंगे। आखिर लगेज और बैग्स के अलावा चश्मे-फोन, कैमरे, सनग्लास को संभालते हाथों से मल्टीटास्किंग करने की भी एक सीमा होगी, इसे मत भूल जाना।
यात्रा का पड़ाव होगा सबसे अहम्
सफर कभी बंद हुए हैं क्या जो अब होंगे? गुफा मानव चला करता था शिकार की तलाश में, घुमंतू जातियां घूमती थीं कुछ कमाने की आस में, साधु—संत घूमते रहे ज्ञान प्राप्ति के लिए, कारोबारियों से लेकर योद्धाओं तक के पैरों में भी यात्राओं ही तो बंधी रहती थीं। लॉकडाउन ने हम घुमक्कड़ों के पैरों को विश्राम की मुद्रा में जरूर खड़ा कर दिया है, मगर सच्ची बतायें अपना हाल—ए—दिल? स्मृतियों के पंख लगाकर रोज़ उड़ जाते हैं यहाँ—वहाँ और जाने कहाँ—कहाँ! और असल वाली यात्राओं की संभावनाएं भी टटोल आते हैं।
‘फागुनिया’ जैसे ठिकाने होंगे मेरी पहली पसंद। मालूम क्यों? ऐसे फार्मस्टे में रुकने का ख्याल बुरा नहीं होगा जहाँ आसपास न कोई बड़ा शहर है, न ज्यादा आबादी। यहाँ टीवी और पूल नहीं है, नज़दीक कोई बाजा़र-मॉल, सफारी, क्लब-पब, स्पा जैसा आकर्षण भी नहीं हैं। यानी, बहुतों के आवारा कदम इस तरफ आसानी से नहीं आएँगे।
इस आंगन में शाम की चाय का ख्याल भी बुरा नहीं है।
पहाड़ी आबोहवा में भूख जमकर लगती है, इसलिए इस डाइनिंग हॉल में अड्डेबाजी लंबी खिंचने का खतरा हमेशा रहता है। और हाँ, यहाँ से सामने की घाटी और घाटी के उस पार खड़े पहाडों का दीदार आपको बोर नहीं होने देगा।
लौटते हुए मनपसंद सब्जियों की खेप अपनी गाड़ी में लदवाकर ही लौटना। ये सब्जियाँ ही यात्रा की ‘सुविनर्स’ होंगी।
इस छुटकू से ठिकाने में एक वक्त में सिर्फ दो-तीन परिवार ठहर सकते हैं, यानी आप अपने बड़े परिवार या दोस्तों संग जा रहे हैं तो पूरा स्टे बुक कर लें।
नज़दीक एक गाँव है, गाँव की हद पर से टहलाती चली गई एक नदी है, एक मौसमी झरना है जिसका ‘शोर’ आपको बार-बार अपनी ओर खींचेगा। और रोमांटिक वॉक के लिए एक पतली पगडंडी है जो इस दिलचस्प ‘काफल कॉर्नर’ तक लाती है। अपने पार्टनर के साथ यहाँ बिताया वक़्त आपकी यादों में लंबे समय तक घुसपैठ करता रहेगा। अब तय आपको करना है कि वो पार्टनर कौन होगा, कोई संगी-साथी या अर्सा पहले खरीदी मगर आज तलक अनपढ़ी रह गई वो किताब जिसे पढ़ने की ख्वाहिश ज़ेहन में अटकी पड़ी है!
तो चलें फागुनिया के सफर पर, उत्तराखंड के सफर पर। दिल्ली से दूरी सिर्फ 285 किलोमीटर है।
लंबे वीकेंड आते ही ‘आ कहीं उड़ चलें’ वाली जो बेताबियाँ आपको कहीं भी ले जाया करती थीं, उनमें थोड़ा फेरबदल अब जरूरी होगा। मंजिल चाहे जो हो, स्टे के मामले में लापरवाही भारी पड़ सकती है। बेशक, भव्य पांच सितारा होटलों ने आपको ललचाने के लिए भारी छूट देने और आकर्षक पैकेज का ऐलान करना शुरू कर दिया है, यहाँ तक कि वे अपने ‘हाइजिन प्रोटोकॉल’ के बाबत भी हर दिन घोषणाएँ कर रहे हैं, मगर यह भी सच है कि आपका नन्हा-सा दिल थोड़ा-थोड़ा घबराया हुआ है। मन में सवाल हैं कि उस बड़े से होटल को चुना जाए जिसमें एक वक्त में सैंकड़ों ‘फुटफॉल’ दर्ज होते हैं या छोटी, मिडल रेंज, बुटिक प्रॉपर्टी को चुनें? होमस्टे बुक करें कि एयरबीएनबी?
हम कहेंगे ऐसी प्रॉपर्टी चुनिए जिसमें मेहमानों के ठहरने का इंतज़ाम भी ऐसा हो कि ‘सोशल डिस्टेंसिंग’ का इंतज़ाम खुद-ब-खुद हो जाए। तो चलिए उत्तराखंड में गंगोलीहाट के सफर पर। यहाँ है झालतोला एस्टेट। करीब 1000 एकड़ में फैली इस एस्टेट में कुल जमा 8 कॉटेज हैं, जो ज़ाहिर है एक दूसरे से अच्छी खासी दूरी पर हैं और यह प्रॉपर्टी चाइल्ड एवं पेट फ्रैंडली है। प्रकृति और इतिहास प्रमियों के अलावा एकांतवास पसंद करने वालों, एकांत में रहकर लेखन या पेंटिंग में जुटने की प्रेरणा पाने का इरादा रखने वालों के लिए भी यह बेहतरीन है।
दिल्ली से करीब 485 किलोमीटर दूर बसे इसे ठिकाने की यात्रा का सबसे आकर्षक पहलू नहीं जानना चाहोगे? हिमालयी संसार की कितनी ही जटिल पहेलियों को सुलझाने के लिए ब्रिटिश सरकार ने शुरू किया द ग्रेट ट्रिगनोमीटरी सर्वे ऑफ इंडिया और उससे जुड़े थे महान हिमालयी एक्सप्लोरर बंधु – पंडित नैन सिंह और पंडित किशन सिंह। झालतोला एस्टेट किसी ज़माने में पंडित किशन सिंह का निवास हुआ करता था और आज भी उनका करीब डेढ़-पौने दो सौ साल पुराना घर यहाँ मौजूद है। आर्कियोलॉजी, कार्टोग्राफी, एक्सप्लोरेशन में दिलचस्पी रखने वालों को यहां आकर किसी खज़ाने के हाथ लगने जैसा अनुभव होता है।
यादों को सहेजने पर रहेगा ज़ोर
लॉकडाउन ने दो टूक कह दिया है – ‘सब ठाट पड़ा रह जाएगा जब लाद चलेगा बंजारा’। तो क्यों न यादों को तवज्जो दी जाए? क्यों न फैशन और डिजाइनर वियर, ज्यूलरी, कंज्यूमर गुड्स की खरीदारी को, खालिस शॉपिंग को, हवाई उड़ानों को, विदेश के मंहगे नज़ारों को ही ट्रैवल मान लेने की अपनी भूल सुधारी जाए? हृदयस्पर्शी अनुभव हासिल किए जाएँ? क्यों न अगली यात्रा को, चाहे वो जब भी हो, ऐसा टि्वस्ट दिया जाए कि वो न हमारे पर्यावरण पर भारी पड़े और न स्थानीय वातावरण पर।
प्रकृति के साथ संवाद पसंद हों तो नेचर वॉक, ट्रैकिंग चुनें। किसी लोकल के घर पर ठहरना चुनें। उन एजेंसियों का हाथ थाम लें जो लोकल लाइफस्टाइल का अनुभव दिलाती हैं, जो आपको आपकी अपनी रफ्तार से घुमाती हैं, जो भगाती नहीं बल्कि आपको हौले-हौले पर्यटन रस चखने का आमंत्रण देती हैं।
अपने ही देश के सफर पर निकल पड़ें। हिमाचल से अरुणाचल तक, कुर्ग से कच्छ तक एक नए अंदाज़ में टटोलें अपना देश।
होमस्टे, फार्मस्टे, जंगल लॉज, ट्री हाउस, हेरिटेज विला, बंगले, बुटिक होटल कुछ भी चुनें, बस इतना ध्यान रहे कि आनन-फानन में कहीं भी नहीं निकल पड़ना। राज्यों की सीमाओं को पार करने के नियमों की पूरी जानकारी, क्वारंटीन के नियमों को समझने के बाद जहां भी जाने का फैसला करे वहां हाइजिन और सैनीटाइज़ेशन की ताज़ा स्थिति की पड़ताल अवश्य करें।
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